बिना पूछे रास्ता बताने लगे-कविता


लिखे उन्होंने चंद शब्द
और दूसरों को लिखना सिखाने लगे
मुश्किल है कि बिना समझे लिखा था
पर दूसरों में समझ के दीप जलाने लगे

खरीद ली चंद किताबें और रट लिये कुछ शब्द
अब दूसरों को पढ़ाने लगे
खुद कुछ नहीं समझा था अर्थ
दूसरों का जीवन का मार्ग बताने लगे

जो भटके हैं अपने रास्ते
अपने लक्ष्य का पता नहीं
पर चले जा रहे सीना तानकर
सूरज की रोशनी में मशाल वह जलाने लगे
ज्ञानी रहते हैं खामोश
इसलिये अल्पज्ञानी
शब्दों का मायाजाल बनाने लगे

कहें दीपक बापू
समझदार भटक जाता है
तो पूछते पूछते लक्ष्य तक
पहुंच ही जाता है
पर नासमझ भटके तो
पूछने की बजाय रास्ता बताने लग जाता है
अपनी समझदारी दिखाने के लिये
तमाम नाम लेता है रास्तों का
शायद कोई बिना पूछे रास्ता बताने लगे
नहीं भी बताया तो
अपने जैसा ही रास्ता वह भी भटकने लगे
………………………….

Post a comment or leave a trackback: Trackback URL.

टिप्पणियाँ

  • mehek  On 18/06/2008 at 18:09

    पर नासमझ भटके तो
    पूछने की बजाय रास्ता बताने लग जाता है
    अपनी समझदारी दिखाने के लिये
    तमाम नाम लेता है रास्तों का
    शायद कोई बिना पूछे रास्ता बताने लगे
    नहीं भी बताया तो
    अपने जैसा ही रास्ता वह भी भटकने लगे
    bahut hi sahi baat,insaan ki shayad fitraat hi aisi hoti hai,jo malum nahi ya jiska aadha gyan ho wahi salah dusron ko dete hai,bahut khub badhai.

  • समीर लाल  On 18/06/2008 at 22:17

    किस पर नजर गई है सर जी?? 🙂

  • लिखे उन्होंने चंद शब्द
    और दूसरों को लिखना सिखाने लगे
    मुश्किल है कि बिना समझे लिखा था
    पर दूसरों में समझ के दीप जलाने लगे>

    बहुत ही सुंदर प्रस्तुति। नमस्कार एवं सादर आभार।

  • vinod  On 22/06/2008 at 06:44

    aapki kavita bahu hi achhi laggi

एक उत्तर दें

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  बदले )

Twitter picture

You are commenting using your Twitter account. Log Out /  बदले )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  बदले )

Connecting to %s

%d bloggers like this: