लिखे उन्होंने चंद शब्द
और दूसरों को लिखना सिखाने लगे
मुश्किल है कि बिना समझे लिखा था
पर दूसरों में समझ के दीप जलाने लगे
खरीद ली चंद किताबें और रट लिये कुछ शब्द
अब दूसरों को पढ़ाने लगे
खुद कुछ नहीं समझा था अर्थ
दूसरों का जीवन का मार्ग बताने लगे
जो भटके हैं अपने रास्ते
अपने लक्ष्य का पता नहीं
पर चले जा रहे सीना तानकर
सूरज की रोशनी में मशाल वह जलाने लगे
ज्ञानी रहते हैं खामोश
इसलिये अल्पज्ञानी
शब्दों का मायाजाल बनाने लगे
कहें दीपक बापू
समझदार भटक जाता है
तो पूछते पूछते लक्ष्य तक
पहुंच ही जाता है
पर नासमझ भटके तो
पूछने की बजाय रास्ता बताने लग जाता है
अपनी समझदारी दिखाने के लिये
तमाम नाम लेता है रास्तों का
शायद कोई बिना पूछे रास्ता बताने लगे
नहीं भी बताया तो
अपने जैसा ही रास्ता वह भी भटकने लगे
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टिप्पणियाँ
पर नासमझ भटके तो
पूछने की बजाय रास्ता बताने लग जाता है
अपनी समझदारी दिखाने के लिये
तमाम नाम लेता है रास्तों का
शायद कोई बिना पूछे रास्ता बताने लगे
नहीं भी बताया तो
अपने जैसा ही रास्ता वह भी भटकने लगे
bahut hi sahi baat,insaan ki shayad fitraat hi aisi hoti hai,jo malum nahi ya jiska aadha gyan ho wahi salah dusron ko dete hai,bahut khub badhai.
किस पर नजर गई है सर जी?? 🙂
लिखे उन्होंने चंद शब्द
और दूसरों को लिखना सिखाने लगे
मुश्किल है कि बिना समझे लिखा था
पर दूसरों में समझ के दीप जलाने लगे>
बहुत ही सुंदर प्रस्तुति। नमस्कार एवं सादर आभार।
aapki kavita bahu hi achhi laggi