सत्य से लोग घबड़ाते हैं-हिन्दी व्यंग्य कविताये


कत्ल की खबर

प्रचार के बाज़ार में

महंगी बिक जाती है।

व्याभिचार का विषय हो तो

दिल दहलाने के साथ

 मनोरंजन के तवे पर विज्ञापन की

रोटी भी सिक जाती है।

कहें दीपक बापू साहित्य को

समाज बताया जाता था दर्पण,

शब्दों का अब नहीं किया जाता

पुण्य के लिये तर्पण,

अर्थहीन शब्द

चीख कर बोलने पर

प्रतिष्ठा पाता

जिसके भाव शांत हों

उसकी किसी के दिल पर स्मृति

टिक नहीं पाती है।

———————–

सत्य से सभी लोग

बहुत कतराते हैं,

झूठे अफसानों से

अपना दिल

इसलिये बहलाते हैं।

सड़क पर पसीने से

नहाये चेहरों से

फेरते अपनी नज़र

खूबसुरत तस्वीरों से

अपनी आंखें सहलाते हैं।

कहें दीपक बापू सोच का युद्ध

ज़माने में चलता रहा है,

घमंड में डूबे लोग

अक्ल का खून बहा है,

सौेदागर ख्वाब बेचकर

पैसा कमा रहे हैं,

ज़माने पर अपना

राज भी जमा रहे हैं,

बगवात रोकने वाले

सबसे बड़े चालाक कहलाते हैं।

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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poem-Deepak Raj Kukreja “”Bharatdeep””
Gwalior, madhyapradesh

कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर

poet, Editor and writer-Deepak  ‘Bharatdeep’,Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com

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यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
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