Tag Archives: हिन्दू छोटी कहानी

भिखारी से साक्षात्कार-लघुकथा (intervew with bagger-hindi laghu kahani)


            वह लेखक मंदिर के अंदर गया और वहां से बाहर लौटा तो गेहूंआ कुर्ता और सफेद धोती पहले और माथे पर लाल तिलक लगाये एक भिखारी ने अपना हाथ उसकी तरफ बढ़ा दिया और बोला-‘बाबूजी जरा चाय के लिये दो रुपये दे दो।’
लेखक ने मंदिर के अंदर करते हुए देखा था कि कोई दानी व्यक्ति भिखारियों के बीच खाने का सामान बांट रहा था और उसे लेकर वही भिखारी भी खा रहा था।
          लेखक ने उसे घूर कर देखा तो वह बोला-‘‘आज खाना तो मिला नहीं। अब चाय पीकर ही काम चलाऊंगा।”

         वह हाथ फैलाये उसके सामने खड़ा होकर झूठ बोल रहा था। लेखक ने उससे कहा-“मैं तुम्हें दस रुपये दूंगा, पर इससे पहले तुम्हं साक्षात्कार देना होगा। आओ मेरे साथ!”

         थोड़ी दूर जाकर उस लेखक ने उससे पूछा-“तुम्हारे घर में क्या तुम अकेले हो?”

          भिखारी-“नही! मुझे दो लड़के हैं और दो लडकियां हैं। सबका ब्याह हो गया है?”

           लेखक-“फिर तुम भीख क्यों मांगते हो? क्या तुम्हारे लड़के कमाते नहीं हैं या फिर तुम्हें पालनेको तैयार नहीं है?।”

           भिखारी-“बहुत अच्छा कमाते हैं, पर आजकल बाप को कौन पूछता है? वैसे वह मेरे को घर पर मेरे को सूखी रोटी देते हैं क्योंकि उनको लगता है कि मैं बीमार न हो जाऊँ। मैं चिकनी चुपड़ी और माल खाने वाला आदमी हूं,इसलिए भीख मांगकर मजे ही करता हूँ।”

        लेखक-“इस उमर में वैसे भी कम चिकनाई खाना चाहिए। गरिष्ठ भोजन नहीं करने से अनेक बीमारियाँ पैदा होती हैं। डाक्टर लोग यही कहते हैं।”

         भिखारी-“यह काड़ा तो वह तो सेठों के लिये कहते हैं जो सारा दिन एक जगह बैठे रहते हैं। हम भिखारियों के लिये नहीं जो सारा दिन यहाँ से वहाँ चलते रहते हैं।”

         लेखक-“मंदिर में अंदर जाते हो।”

भिखारी-“मंदिर के अंदर हमें आने भी नहीं देते और न हम जाते। हम तो बाहर भक्तों के दर्शन ही कर लेते हैं। भगवान ने कहा भी है कि मेरे से बड़े तो मेरे भक्त हैं। भक्तों का दान हमारे लिए भगवान का प्रसाद है भले ही लोग इसे भीख कहते हैं।”

    लेखक-“रहते कहां हो?”

       भिखारी-“एक दयालू सज्जन ने हम भिखारियों के लिये एक मकान किराये पर ले रखा है। उसमें वही किराया भरता है।”

        लेखक-“तुम्हारे लड़के तुम्हें अपने घर नहीं रखते या तुम उनके साथ रहना नहीं चाहते?”

यह लघुकथा इस ब्लाग दीपक भारतदीप की ई-पत्रिका पर मूल रूप से प्रकाशित है। इसके प्रकाशन के लिये अन्य कहीं अनुमति प्रदान नहीं की गयी है।
लेखक संपादक-दीपक भारतदीप

         भिखारी-“वह तो मिन्नतें करते हैं पर इसलिए नहीं कि मुझसे  कोई उनको प्रेम करते हैं बल्कि इसलिए कि उनको मारे भीख मांगने से इज्ज़त खराब होती दिखती है इसलिए अपने यहाँ रहने के लिए कहते हैं।   वहां कौन उनकी चिकचिक सुनेगा इसलिए भीख मांगना अच्छा लगता है।  मैं तो बचपन से ही आजाद रहने वाला आदमी हूं। पूरी ज़िंदगी भीख के सहारे गुजर दी, अब क्या पवाह करना? वह बच्चा मुझे  क्या खिलायेंगे मैंने ही अपनी भीख से उनको बड़ा किया है।  मैंने खाने के मामले में बाप की परवाह नहीं की। वह भी सूखी खिलाता था पर बाहर मुझे भीख मांगने पर जो खाने का मिलता था वह बहुत अच्छा होता था।”

         लेखक-“बचपन से भीख मांग रहे हो। बच्चों की शादी भी भीख मांगते हुए करवाई होगी?”

        भिखारी-“नहीं! पहले तो मेरा बाप ही मेरे परिवार को पालता रहा। उसने मेरी  बीबी  को किराने  कि दुकान खुलवा दी कुछ दिन उससे काम चला  फिर बच्चे थोड़े बड़े हो गये तो नौकरी कर वही काम चलाते रहे। मैं अपनी बीबी के लिये ही कुछ सामान घर ले जाता हूं। वह बच्चों के पास ही रहती है। आजकल की औलादें ऐसी हैं उसकी बिल्कुल इज्जत नहीं करतीं। मैं सहन नहीं कर सकता।’

       लेखक-तुम्हें भीख मांगते हुए शर्म नहीं आती।’

         भिखारी ने कहा-‘जिसने की शर्म उसकी फूटे कर्म।’

        लेखक उसको घूर कर देख रहा था! अचानक उसने पीछे से आवाज आई-‘बाबूजी, इससे क्या बहस कर रहे हो। भीख मांगना एक आदत है जिसे लग जाये तो फिर नहीं छूटती। कोई मजबूरी में भीख नहीं मांगता। जुबान का चस्का ही भिखारी बना देता है।’

       लेखक ने देखा कि थोड़ी दूर ही एक बुढ़िया  भिखारिन पुरानी चादर बिछाये बैठी थी। उसके पास एक लाठी रखी थी और सामने एक कटोरी । उसके पास रखी पन्नी में कुछ खाने का सामान रखा हुआ था जो शायद दानी भक्त दे गये थे और वह अभी खा नहीं रही थी।

         लेखक ने उस भिखारी को दस रुपये दिये और फिर जाने लगा तो वह भिखारिन बोली-‘बाबूजी! कुछ हमको भी दे जाओ। भगवान के नाम पर हमें भी कुछ दे जाओ।’

          लेखक ने पांच रुपये उसके हाथ में दे दिये और अपने होठों में बुदबुदाने लगा-‘भीख मांगना मजबूरी नहीं आदत होती हैं।

कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’ग्वालियर
jpoet, Writer and editor-Deepak ‘Bharatdeep’,Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
 
यह कविता/आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की अभिव्यक्ति पत्रिका’ पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका

४.दीपकबापू कहिन
5.हिन्दी पत्रिका 
६.ईपत्रिका 
७.जागरण पत्रिका 
८.हिन्दी सरिता पत्रिका 
९.शब्द पत्रिका