एक टुकड़ा बरफी-हास्य कविता


एक पड़ौसन ने दूसरी से कहा
‘तुम्हें बधाई हो बधाई
तुम्हारे पतिदेव जहां करते हैं
मदद का काम
वहां आई जमकर भारी बाढ़
वहां बरसात हुई है जाम
अब तो तुम्हारे घर लक्ष्मी बरसेगी
सारी दुनियां तुम्हें देखकर
अपने अच्छे भाग्य को तरसेगी
यह खबर आज अखबार में आई
तुम हमें खिलाना अब अच्छी मिठाई‘

सुनकर दूसरी पड़ौसन भड़की और बोली
‘मैं क्यों खिलाऊं तुम्हें मिठाई
तुम्हारे जहां करते हैं
लोगों की सेवा का काम
वहां भी तो पड़ा था भारी सूखा
तुम्हारे घर में यहां बन रहे थे पकवान
वहां खाने को तरसे थे लोग रूखा सूखा
तब तो तुमने किसी को यह
खबर तक नहीं बताई
मिठाई मांगने के लिये तो
बिना टिकट चली आई
पर जब आ रहा था सूखे के समय
रोज घर में नया सामान
तब तुमने एक टुकड़ा बरफी भी नहीं भिजवाई
इसलिये तुम भूल जाओ मिठाई
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यह पाठ/कविता इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की ई-पत्रिका’पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
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लेखक संपादक-दीपक भारतदीप

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टिप्पणियाँ

  • balkishan  On 08/08/2008 at 15:09

    बहुत गहरा और मारक व्यंग्य किया आपने इस कविता के माध्यम से.
    बहुत खूब.
    बधाई.

  • ashish  On 02/09/2008 at 14:32

    verybad better luck next time

  • krishna  On 13/07/2010 at 17:08

    ihi krishna

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