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मग़र गज़ब है उनका हाज़मा–हिन्दी व्यंग्य कविताऐं



हलवाई कभी अपनी मिठाई नहीं खाते
फिर भी तरोताजा नज़र आते हैं।
बेच रहे हैं जो सामान शहर में
उनकी दवा और सब्जी शामिल हैं जहर में
कहीं न उनके मुंह में भी जाता है
मग़र गज़ब है उनका हाज़मा
ज़हर को अमृत की तरह पचा जाते हैं।
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सुनते हैं हर शहर में
दूध, दही और सब्जी के साथ
ज़हर बिक रहा है,
फिर भी मरने वालों से अधिक
जिंदा लोग घूमते दिखाई दे रहे हैं,
सच कहते हैं कि
पैसे में बहुत ताकत है
इसलिये नोटों से भरा है दिल जिनका
बिगड़ा नहीं उनका तिनका
बेशर्म पेट में जहर भी अमृत की तरह टिक रहा है।
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कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com

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एक टुकड़ा बरफी-हास्य कविता


एक पड़ौसन ने दूसरी से कहा
‘तुम्हें बधाई हो बधाई
तुम्हारे पतिदेव जहां करते हैं
मदद का काम
वहां आई जमकर भारी बाढ़
वहां बरसात हुई है जाम
अब तो तुम्हारे घर लक्ष्मी बरसेगी
सारी दुनियां तुम्हें देखकर
अपने अच्छे भाग्य को तरसेगी
यह खबर आज अखबार में आई
तुम हमें खिलाना अब अच्छी मिठाई‘

सुनकर दूसरी पड़ौसन भड़की और बोली
‘मैं क्यों खिलाऊं तुम्हें मिठाई
तुम्हारे जहां करते हैं
लोगों की सेवा का काम
वहां भी तो पड़ा था भारी सूखा
तुम्हारे घर में यहां बन रहे थे पकवान
वहां खाने को तरसे थे लोग रूखा सूखा
तब तो तुमने किसी को यह
खबर तक नहीं बताई
मिठाई मांगने के लिये तो
बिना टिकट चली आई
पर जब आ रहा था सूखे के समय
रोज घर में नया सामान
तब तुमने एक टुकड़ा बरफी भी नहीं भिजवाई
इसलिये तुम भूल जाओ मिठाई
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