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कभी किसी का कड़वा सच उसके सामने नहीं कहना चाहिए-आलेख
लड़के के बाप की भी ऐसी टिप्पणी हम तक पहुंची। हमें बहुत अफसोस हुआ। वह अफसोस आज तक है क्योंकि हमारे उनसे अब भी रिश्ते हैं उस लड़के के माता पिता दोनों ही उसी की चिंता मेंं स्वर्ग सिधार गये। लड़का आज भी वैसा ही है जैसे पहले था। चालीस की उम्र पार कर चुकने के बाद उसका विवाह हुआ और पत्नी ने विवाह के छह माह बाद ही उसको छोड़ दिया। कहते हैं कि उसके हाथ में जो रकम आती है वह सट्टे में लगा आता है। उसके जेब में कभी दस रुपये भी नहीं होते। हां, उसके बाप ने जो पैसा छोड़ा उस पर बहुत दिनों तक उसका काम चला। उसका बड़ा भाई जैसे तैसे कर अभी तक उसे बचाये हुए है।
पिताजी के पैसे पर मजे करने के मुझे ं भी ऐसे ताने मिलते थे पर विचलित नहीं होता था पर चूंकि किसी गलत काम में अपव्यय नहीं करता था इसलिये कोई गुस्सा नहीं आता था। फिर वह विचलित क्यों हुआ? मेरा विचार है कि वह अपने पिता के पैसे जिस तरह पापकर्म पर खर्च कर रहा था वही उस समय उसके हृदय में घाव करने लगे, जब मैने यह बात उसके सामने कही थी।
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टिप्पणियाँ
मुझे लगता है, सच कड़बा या मीठा नहीं होता. सच सिर्फ़ सच होता है. हमारा मानस उसे कड़बा या मीठा मानता है. आपने एक सामान्य बात कही. उसने उसे दूसरे रूप में लिया. उसके माता पिता ने भी उसे दूसरे रूप में लिया. कोई और आपकी बात को सही रूप में लेकर अपना जीवन सुधार सकता था. हां यह बात अवश्य है कि अगर सच से किसी को तकलीफ होने की सम्भावना हो तो ऐसा सच कहने से बचना चाहिए.