एक इंसान वह हैं जो कृत्रिम वातानुकूलन यंत्र से सजे
महलों में लेते सांस
रास्ते पर वाहनों में सफर करते हुए भी
जिंदगी में बदलाव की हवा से कांपते हैं,
दूसरी तरफ वह मेहनतकश भी हैं जो
गर्मी की भरी दोपहरिया में
खेत खलिहान और चौराहों पर
पसीना बहाते हुए अपनी तकलीफों से दिखते लापरवाह
चाहे हांफते हैं।
कहें दीपक बापू उन अमीरों को
अपना दर्द सुनाने से कोई फायदा नहीं है,
कांपते जिनके बीमार दिल
मदद देना उनका कायदा नहीं है,
सच यह है कि जंग में खड़े रहते हैं वह यकीन के साथ,
पसीना बहाने में नही डरते जिनके हाथ,
उनकी सच्ची हमदर्दी की वीरता को हम भांपते हैं।
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इतिहास गवाह है सिंहासन के लिये हमेशा जंग होती रही है,
बड़े योद्धाओं के जीत दर्ज कर पहना ताज क्रांति के नाम पर
यह अलग बात है जनता अपने चेहरे का रंग खोती रही है।
कहें दीपक बापू आम इंसान लड़ता रहा हमेशा
अपने लिये रोटी जुटाने के वास्ते,
मदद मांगने कभी नहीं गया वह राजमहल के रास्ते,
घर पर अपना आसन लगाकर बैठा रहा
उसे मालुम है कोई नहीं बनेगा हमदर्द
वह लोग तो कतई नहीं
जिनकी शाही पालकी
उसकी भुजाओं की मेहनत ढोती रही है
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लेखक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’
लश्कर, ग्वालियर (मध्य प्रदेश)
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
hindi poet,writter and editor-Deepak ‘Bharatdeep’,Gwalior
http://dpkraj.blgospot.com
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