योगासन, प्राणायाम, ध्यान और धारणा-हिन्दी लेख (hindi lekh on yogasan)


                प्राचीन भारतीय योग साधना पद्धति की तरफ पूरे विश्व का रुझान बढ़ना कोई अस्वाभाविक घटना नहीं है। आज से दस वर्ष पूर्व तक अनेक लोग योगसाधना को अत्यंत गोपनीय या असाधारण बात समझते थे। ऐसी धारणा बनी हुई थी कि योग साधना सामान्य व्यक्ति के करने की चीज नहीं है। इसका कारण यह था कि शरीर के लिये विलासिता की वस्तुओं का उपभोग बहुत कम था और लोग शारीरिक श्रम के कारण बीमार कम पड़ते थे।
आज की नयी पीढ़ी के लोगों जहां भी वाहन का स्टैंड देखते हैं वहां पर पैट्रोल चालित वाहनों को अधिक संख्या में देखते हैं जबकि पुरानी पीढ़ी के लोगों के अनुभव इस बारे में अलग दिखाई देते हैं। पहले इन्हीं स्टैंडों पर साइकिलें खड़ी मिलती थीं। सरकारी कार्यालय, बैंक, सिनेमाघर तथा उद्यानों के बाहर साइकिलों की संख्या अधिक दिखती थी। फिर स्कूटरों की संख्या बढ़ी तो अब कारों के काफिले सभी जगह मिलते हैं। पहले जहां रिक्शाओं, बैलगाड़ियों तथा तांगों की वजह से जाम लगा देखकर मन में क्लेश होता था वहीं अब कारें यह काम करने लगी हैं-यह अलग बात है कि गरीब वाहन चालकों को लोग इसके लिये झिड़क देते थे पर अब किसी की हिम्मत नहीं है कार वाले से कुछ कह सके।

         योगसाधना की शिक्षा बड़े लोगों का शौक माना जाता था। यह सही भी लगता है क्योंकि परंपरागत वाहनों तथा साइकिल चलाने वालों का दिन भर व्यायाम चलता था। उनकी थकान उनको रात को चैन की नींद का उपहार प्रदान करती थी। उस समय ज्ञानी लोगों का इस तरफ ध्यान नहीं गया कि लोगों को योगासन से अलग प्राणायाम तथा ध्यान की तरफ प्रेरित किया जाये। संभवतः योगासाधना के आठों अंगों में से पृथक पृथक सिखाने का विचार किसी ने नहीं किया। अब जबकि विलासिता पूर्ण जीवन शैली है तब योगसाधना की आवश्यकता तीव्रता से अनुभव की जा रही है तो उसमें आश्चर्य नहीं करना चाहिए। पहले जब लोग पैदल अधिक चलने के साथ ही परिश्रम करते थे इसलिये उनका स्वास्थ्य सदैव अच्छा रहता था । बाद में साइकिल युग के चलते भी लोगों के स्वास्थ्य में शुद्धता बनी रही। फिर योग साधना को केवल राजाओं, ऋषियों और धनिकों के लिये आवश्यक इसलिये भी माना गया क्योंकि वह शारीरिक श्रम कम करते थे जबकि बदलते समय के साथ इसे जनसाधारण में प्रचारित किया जाना चाहिये था। भले ही शारीरिक श्रम से लोगों का लाभ होता रहा है पर प्राणायाम से जो मानसिक लाभ की कल्पना किसी ने नहीं की। श्रमिक तथा गरीब वर्ग के लिये योगासन के साथ प्राणायाम और ध्यान का भी महत्व अलग अलग रूप से प्रचारित किया जाना जरूरी लगता है। यह बताना जरूरी है कि जो लोग शारीरिक श्रम के कारण रात की नींद आराम से लेते हैं उनको भी जीवन का आनंद उठाने के लिये प्राणायाम और ध्यान करना चाहिये।

             अब योग साधना के आठ भाग देखकर तो यही लगता है कि उसके आठ अंगों को -यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि-एक पूरा कार्यक्रम मानकर देखा गया। सच तो यह है कि जो लोग परिश्रम करते हैं या सुबह सैर करके आते हैं उनको नियम, प्राणायम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि जैसे अन्य सात अंगों का भी अध्ययन करना चाहिये। योगासन या सुबह की सैर के बाद प्राणायम और ध्यान की आदत डालना श्रेयस्कर है। जो लोग गरीब, मजदूर तथा अन्य शारीरिक श्रम करते हैं उनके लिये भी प्राणायाम के साथ ध्यान बहुत लाभप्रद है। इस बात का प्रचार बहुत पहले ही होना चाहिये था इसलिये अब इस पर भी इस पर काम होना चाहिये। प्राणायाम से प्राणवायु तीव्र गति से अंदर जाकर शरीर और मन के विकारों को परे करती है। उसी तरह ध्यान भी योगासन और प्राणायाम के बाद प्राप्त शुद्धि को पूरी देह और मन में वितरित करने की एक प्रक्रिया है। जब कभी आप थक जायें और सोने की बजाय आंखें बंद कर केवल बैठें और अपने ध्यान को भृकुटि पर केंद्रित करके देखें। शुरुआत में आराम नहीं मिलेगा पर पांच दस मिनट बाद आप को अपने शरीर और मन में शांति अनुभव होगी। जैसे मान लीजिये आप किसी समस्या से परेशान हैं। वह उठते बैठते आपको परेशान करती है। आप ध्यान लगा कर बैठें। समस्या हल होना एक अलग मामला है पर ध्यान के बाद उससे उपजे तनाव से राहत अनुभव करेंगे। सच बात तो यह है कि हम अपने दिमाग और शरीर को बहुत खींचते हैं और उसको बिना ध्यान के विराम नहीं मिल सकता। यह को व्यायाम नहीं है एक तरह से पूर्णाहुति है उस यज्ञ की जो हम अपनी देह के लिये करते हैं। शेष फिर कभी। संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior http://terahdeep.blogspot.com …………………………..

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टिप्पणियाँ

  • Pradip Rathod  On 16/01/2010 at 09:51

    yogasan

  • ram parajapati  On 14/05/2010 at 18:26

    i am very faty boy so please give me some tipes

  • anu  On 14/06/2010 at 11:46

    Hi, Mr.deepak,

    Nice to about ur e-magazine.what is “yoga”?

  • mayuri gandhi  On 23/06/2010 at 21:11

    send your articles

  • D.R. Prajapati  On 12/07/2010 at 21:16

    Gyanvardhak lekh hai.
    Thnaks.

  • K.R.Chouhan  On 21/10/2010 at 13:32

    आदरणीय श्री,
    इस लेख मे योग के आठों अंगों के अभ्‍यास की बात लिखकर आपने आम आदमी के लिए योग की उपयोगिता को काफी बढा दिया. ऋर्षि-मुनियों द्वारा प्रदत्‍त इस जीवनोपयोगी ज्ञान को जन साधारण के काम की विद्या बताकर लोगों का मार्गदर्शन करने के लिए आप साधुवाद के पात्र् है.
    आज के मानव की विडंबना देखिए कि जो ज्ञान उसे समस्‍त बाहरी पदार्थो के आकर्षण से बचाने की क्षमता से परिपूर्ण है,उस अम़तमय ज्ञान को भी आज के स्‍वार्थी मानव ने बाजार की वस्‍तु बना दिया और इसे यहां तक बाजारू बना दिया कि मानव की द़श्‍य और अद़श्‍य समस्‍त क्षमताओं मे अपार बढोतरी का मार्ग दिखाने वाला योग आज अपनी जन्‍म भूमि में गली चौराहों पर दिखाया जाने वाला मदारी का तमाशा बनकर रह गया है.
    जिस प्रकार दांत साफ करने के पचास उत्‍पाद बाजार मे मौजूद है,ठीक उसी तरह से आज हजारों प्रकार के योग भी बाजार में मौजूद है.
    अपने स्‍वास्‍थ्‍य के प्रति जागरूक आम जन को यह पहले से ही भली भांित तय कर लेना चाहिए कि ‘योग’ तो केवल योग ही है, न तो उसके आगे कुछ लगाया जा सकता है और न ही उसके बाद ा हां इतना अवश्‍य है कि जिन लोगो ने भी योग के आगे पीछे कुछ नया शब्‍द लगाकर उसे अपनी दुकानदारी चलाने के लिए बाजार मे उतारा है,वे निश्चित तौर पर जनता के हितैषी नही हो सकते अत- सभी से निवेदन है कि पहले तो योग सिखाने वाले का शैक्षणिक,सामाजिक,आध्‍यात्मिक और नैतिक स्‍तर भलीभांति देख लें और फिर यह भी पता लगाएं कि एक्‍स योगा या वाई योगा जो भी नए नाम से ये सज्‍जन अपनी दुकार चला रहें है,उसकी प्रमाणिकता क्‍या है.
    परख के बगैर योग का अभ्‍यास कुछ विशेष लाभदायक साबित नहीे होता
    तथास्‍तु
    के.आर.चौहान

  • khandu  On 27/04/2011 at 08:39

    perfect health

  • khandu  On 27/04/2011 at 08:40

    week body

  • hardik katiyar  On 12/08/2012 at 10:29

    what a wonder full information given here

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