मनोरंजन के नाम पर जिस तरह के कार्यक्रम विभिन्न टीवी कार्यक्रमों में अंधविश्वासों और रूढियों को प्रतिपादित किया जा रहा है उससे तो ऐसा लगता है कि कुछ लोगों के मन में आज भी यह बात है कि इस देश के लोग ज्ञान की दृष्टि से अंधेरे में ही रहे ताकि उनका उल्लू सीधा होता रहे।
आचार्य चाणक्य, विद्वान विदुर, संत कबीर और रहीम के संदेशों को जब मैं अपने ब्लागों पर रखता हूं तो अपना ज्ञान नही बघारता बल्कि उनका उपयोग मैं अपना ज्ञान बढ़ाने के लिये भी करता हूं। मैं नही जानता बाकी ब्लागर मेरे बारे में क्या सोचते हैं पर एक बात मुझे लगने लगी है कि उससे मेरी अच्छी छवि बनी है। मुझे याद है मैने शब्दलेख सारथि पर जब छद्म नाम से चाणक्य और कबीर दास जी के संदेश अपने ब्लाग पर रख रहा था तब मेरा कोई प्रयोजन नहीं था। हां, बस यह सोचता था कि अगर यह रखूंगा तो लोग शायद मुझे व्यंग्य और अन्य आलेख लिखते नहीं देखना चाहें इसलिये अपना असली नाम नही लिख रहा था। हालत ऐसे बने कि मुझे उस पर असली नाम लिखना पड़ा। इसके बावजूद मेरे मन में यह भाव कभी नहीं रहा कि लोग मेरे इस काम को अधिक महत्व दें। मेरा सोचना यह है कि जब सब लोग हमारे महापुरुषों के संदेश सुनाकर अपनी पूजा करवा रहे है और मैं उनका विरोध करता हूं तो मैं अपने लिये कोई ऐसी अपेक्षा रखकर अपने उस उद्देश्य की पूर्ति नहीं कर पाउंगा जिसके लिये मैने इतनी तकलीफ से ब्लाग बनाकर लिखना शुरू किया।
इस देश का जितना अध्यात्म स्वर्ण की खदान है जो हमेशा अक्षुण्ण रहेगा उतना ही अंधविश्वास भी एक कीचड़ की तरह हमेशा रहेगा। यह विरोधाभास ही है जिस कारण यहां विदेशी विचारधाराओं को पनपने का अवसर मिला। होता यह है कि लोग अपने देश के अंधविश्वासों और रूढियों से तंग आकर यह सोचते हैं कि यही हमारा धर्म है और दूसरी विचारधारा की तरफ आकर्षित हो जाते हैं। इसका कारण यह है कि जिन लोगों ने धर्म के प्रचार का ठेका लिया है वह अध्यात्म के नाम अंधविश्वास की स्थापना करते हैं। ऐसा नहीं है कि यह आजकल से हो रहा है। कबीर और रहीम के समय में भी यह होता आया है और उन्होंने इसका जमकर विरोध किया।
उम्मीद यह थी कि बढ़ती शिक्षा के साथ यह सब समाप्त हो जायेगा। हुआ उल्टा ही पहले फिल्मों ने और अब टीवी चैनलों के मुख्य पात्र मंदिरों और दरगाहों के चक्कर लगाते हैं जहां कथित पंडित या पीर उनको ऊपर आकाश की तरफ इशारा कर उस पर विश्वास करने का संदेश देते हैं।
इससे भी काम नही चलता तो फिल्मों और टीवी के हीरो ऐसे धार्मिक स्थानों पर आर्शीवाद लेने जाते हैं और उनकी खबरें फिर अखबार और टीवी चैनलों पर आतीं हैं। इससे भी बात नहीं बने तो ऐसे धार्मिक स्थानों पर कुछ विवाद खड़े किये जाते हैं ताकि लोग उनके बारे में अधिक जाने। मतलब यह कि देश अंधविश्वासों और रूढियों में जकड़ा रहे ताकि उसकी आड़ में उस आर्थिक और सामाजिक शासन बना रहे। जिनका सामाजिक सीरियल कहा जाता है मेरे हिसाब से वह तो अपराध या हारर शो कहे जाने चाहिए क्योंकि उसमें अपनी तकलीफों से घबड़ाये पात्र को ऐसे धार्मिक स्थानों से ही आशीर्वाद मिलता है और जब कुछ अपराध दिखाये जाते हैं तो वह भयानक होते हैं।
अगर देखा जाये तो धर्म और अध्यात्म की आड़ में लोगों की भावनाओं को दोहन आज से नहीं सदियों से ही चल रहा है। पहले आदमी को उसे तथा पुरखों को मोक्ष और स्वर्ग दिलाने के नाम पर कर्मकांडों की जंजीर में बांधा गया तो अब भी वही चल रहा है। सच तो यह है कि दैहिक आजादी तो सबको दिखती है पर जजबातों के नाम आदमी जो मानसिक गुलामी कर रहा है वह दिखाई नही देती।
टिप्पणियाँ
दीपक जी आप की सभी बाते, ओर आप के विचार सच मे उचित हे,मे आप की सभी बातओ से सहमत हु, ओर मुझे अच्छा लगता हे आप के ब्लोग पर आना कुछ ना कुछ पाता हु हमेशा
यदि कोई महापुरुषों के संदेश सुना कर अपनी पूजा करवाता है तो क्या बुरा है /यह व्यापार है / कम से कम महापुरुषों के संदेश तो सुना रहा है /यह इन लोगों की नई बात नहीं है मुंशी प्रेमचंद के वाक्य आपको याद होंगे ==सम्पूर्ण वेश उन महात्माओं का सा था जो रईसों के प्रासादों में तपस्या -हवा गाड़ियों पर देव स्थानों की परिक्रमा और योग सिद्धि प्राप्त करने के लिए रुचिकर भोजन करते हैं /
जहाँ तक नेता अभिनेता को मन्दिर पर दिखाने का प्रश्न है तो यह भी व्यापार है आख़िर टी आर पी भी तो कोई चीज़ होती है /
लीक से हट कर बात बताऊ सुप्रीम कोर्ट से क्लीन चिट के कुछ अंतराल के पश्चात् ही घंटो यह बताया गया था की रजिस्ट्री में अमिताभ ने ६९० रूपये कम दिया था /लाखों रजिस्ट्री रोज़ होती है /पक्षकार वलुँशन करता है रजिस्ट्रार चेक करता है कोर्ट फीस कम हो तो पूरी करबा ली जाती है और ऐसे कितने मामले दिखाए गए क्या ५० हेक्टर की रजिस्ट्री रजिस्ट्रार दो हजार रूपये में कर देगा /
आप अपने उदगार प्रकट नहीं करेंगे तो कौन करेगा लेखक ही चुप बैठ जायेंगे और वह भी आलोचना के डर से तो क्या होगा आपसे उम्मीद है की ज्वलंत समस्या पर जल्दी ही आपका नया लेख पड़ने को मिलेगा
आप अच्छी सोच रखते हैं. पढ़ कर अच्छा लगा.