जिनको नहीं चलने का तरीका
दौड़ने में मजा वही बताते हैं,
कभी दिल का हाल जाना नहीं
इश्क के गीत वही गाते हैं।
कहें दीपक बापू
ज़माने की समझदारी,
बन गयी है एक बीमारी,
खाने का सामान लेकर
पहुचंते उद्यानों में
जीभ के स्वाद में लोग डूबते,
पेट भरकर जल्दी ऊबते,
गंदगी छोड़कर चल देते अपने घर,
शीतल हवाओं में विष घोलते उसके दर,
सुख के लिये इधर उधर दौड़ते हुए
ऐसे लोग मरे जाते हैं,
दूसरों की आंखों और सांसों में
करते हैं दर्द पैदा
स्वयं भी तनावों से नहीं परे रह पाते हैं।
……………………………………..
लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा “भारतदीप”
ग्वालियर, मध्यप्रदेश
Writer and poet-Deepak Raj Kukreja “Bharatdeep”
Gwalior, Madhya pradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’ग्वालियर
jpoet, Writer and editor-Deepak ‘Bharatdeep’,Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
यह कविता/आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की अभिव्यक्ति पत्रिका’ पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका