अन्ना हजारे (अण्णा हजारे) और बाबा रामदेव के आंदोलन और टीवी चैनलों के विज्ञापन (movement of anna hazare and baba ramdev and TV edvertisement-hindi lekh)


        अन्ना हजारे और बाबा रामदेव के आंदोलनों पर टीवी समाचार चैनलों और समाचार पत्रों में इतना प्रचार होता है कि अन्य विषय दबकर रह जाते हैं। एक दो दिन तक तो ठीक है पर दूसरे दिन बोरियत होने लगती है। इसमें     कोई संदेह नहीं है कि जब जब इस तरह के आंदोलन चरम पर आते हैं तब लोगों का ध्यान इस तरफ आकृष्ट होता है। अब यह कहना कठिन है कि प्रचार माध्यमों के प्रचार की वजह से भीड़ आकृष्ट होती है या उसकी वजह से प्रचार कर्मी स्वतः स्फूर्त होकर आंदोलन के समाचार देते हैं। एक बात तय है कि आम      ज जनमानस  पर उस समय गहरा प्रभाव होता है। यही कारण है कि इस दौरान समाचार चैनल ढेर सारे ब्रेक लेकर विज्ञापन भी चलाते हैं। हालांकि समाचार चैनलों के विज्ञापनों के दौरान लोग अपने रिमोट भी घुमाकर विभिन्न जगह समाचार देखते रहते हैं। इन समाचारों का प्रसारण इतना महत्वपूर्ण हो जाता है कि टीवी समाचार चैनल क्रिकेट और फिल्म की चर्चा भूल जाते हैं जिसकी विषय सामग्री उनके लिये मुफ्त में आती है। वैसे इन आंदोलनों के दौरान भी उनका कोई खर्च नहीं आता क्योंकि वेतन भोगी संवाददाता और कैमरामेन इसके लिये राजधानी दिल्ली में मुख्यालय पर नियुक्त होते हैं।
           इन आंदोलनों के प्रसारण को इतनी लोकप्रियता क्यों मिलती है? सीधा जवाब है कि इस दौरान इतनी नाटकीयतापूर्ण उतार चढ़ाव आते हैं कि फिल्म और टीवी चैनलों की कल्पित कहानियों का प्रभाव फीका पड़ जाता है। कभी कभी तो ऐसा लगता है कि पूर्ण दिवसीय कोई फिल्म देख रहे हैं। अन्ना हजारे की गिरफ्तारी के बाद समाचारों में इतनी तेजी से उतार चढ़ाव आया कि ऐसा लगता था कि जैसे कोई मैच चल रहा हो। स्थिति यह थी िएक मोड़ पर विचार कर ही रहे थे कि दूसरा आ गया। फिर तीसरा और फिर चौथा! अब सोच अपनी राय क्या खाक बनायें!
          बाबा रामदेव के समय भी यही हुआ। घोषणा हो गयी कि समझौता हो गया! हो गया जी! मगर यह क्या? जैसे किसी फिल्म के खत्म होने का अंदेशा होता है पर पता लगता है कि तभी एक ऐसा मोड़ आ जिसकी कल्पना नहीं की थी। कहने का अभिप्राय यह है कि इस नाटकीयता के चलते ऐसे आंदोलन प्रचार माध्यमों के लिये मुफ्त में सामग्री जुटाने का माध्यम वैसे ही बनते हैं जैसे क्रिकेट और फिल्में। हमने आज एक आदमी को यह कहते हुए सुना कि ‘इस समय लोग शीला की जवानी और बदनाम मुन्नी को भूल गये हैं और अन्ना का मामला गरम है।’ ऐसे में हमारे अंदर यह ख्याल आया कि फिल्म और क्रिकेट वाले जिस तरह मौसम का अनुमान कर अपने प्रदर्शन की तारीख तय करते हैं उसी तरह उनको अखबार पढ़कर यह भी पता करना चाहिए कि देश में कोई इस तरह का आंदोलन तो नहीं चल रहा क्योंकि उस समय जनमानस पूरी तरह उनकी तरफ आकृष्ट होता है।
         हमने पिछले दो दिनों से इंटरनेट को देखा। अन्ना हजारे और बाबा रामदेव शब्दों से खोज बहुत हो रही है। यह तब स्थिति है जब टीवी चैनल हर पल की खबर दे रहे हैं अगर वह कहीं प्रतिदिन की तरह फिल्म और क्रिकेट में लगे रहें तो शायद यह खोज अधिक बढ़ जाये क्योंकि तब लोग इंटरनेट की तरफ ताजा जानकारी के लिये भागेंगे। हमने यह भी देखा है कि इन शब्दों की खोज पर ताजा समाचार लेख लगातार आ रहे थे। अगर समाचार चैनल ढील करते तो शायद इंटरनेट पर खोज ज्यादा हो जाती।
        अब खबरों की तेजी देखिये। पहले खबर आयी कि अन्ना हजारे कारावास से बाहर आ रहे हैं। अभी हैरानी से उभरे न थे कि खबर आयी कि उन्होंने बिना शर्त आने से इंकार कर दिया है। खबर आयी कि अन्ना साहेब की तबियत खराब है। मन में उनके लिये सहानुभूति जागी और यह भी विचार आया पता नहीं क्या होगा? पांच दो मिनट में पता लगा कि वह ठीक हैं।
        ऐसी नाटकीयता भले ही आम आदमी को व्यस्त रखती हो पर गंभीर लोगों के लिये ऐसे आंदोलन मनोरंजन की विषय नहीं होते। कभी कभी तो यह लगता है कि मूल विषय चर्चा से गायब हो गया है। खबरांे की नाटकीयता का यह हाल है कि अब बहस केवल अन्ना साहेब के अनशन स्थल और समय के आसपास सिमट गयी । जबकि मूल विषय देश के भ्रष्टाचार का निरोध पर चर्चा होना चाहिए था । इस पर अनेक लोगों का अपना अपना सोच है। अन्ना साहेब का अपना सोच है। ऐसे में निष्कर्ष निकालने के लिये सार्थक बहस होना चाहिए। देश में बढ़ता भ्रष्टाचार कोई एक दिन में नहीं आया न जाने वाला है। जब हम जैसे आम लेखक लिखते हैं तो वह इधर या उधर होने के दबाव से मुक्त होते हैं इसलिये कहीं न कहीं प्रचार के साथ ही प्रायोजन की धारा में सक्रिय बुद्धिजीवियों से अलग ही बात लिखते हैं पर संगठित समूहों के आगे वह अधिक नहीं चलती। स्थिति यह थी कि भ्रष्टाचार निरोध से अधिक अनशन स्थल पर ही बहस टिक गयी। हमारा तो सीधा मानना है कि आर्थिक, सामाजिक तथा धार्मिक संगठनों पर धनपति स्वयं या उनके अनुचर बैठ गये हैं। पूरे विश्व में प्रचार और समाज प्रबंधक उनके सम्राज्य के विस्तार तथा सुरक्षा के लिये आम जानमानस को व्यस्त रखते हैं। इससे जहां धनपतियों को आय होती है तो समाज के एकजुट होकर विद्रोह की संभावना नहीं रहती। हम अगर किसी देशी की वास्तविक स्थिति पर चिंतन करें तो यह बात करें तभी बात समझ में आयेगी। हमें तो इंटरनेट पर एक प्रकाशित एक लेख में यह बात पढ़कर हैरानी हुई थी कि अन्ना हजारे की गिरफ्तारी पर दुबई और मुंबई में भारी सट्टा लगा था। जहां भी सट्टे की बात आती है हमारे दिमाग में बैठा फिक्सिंग फिक्सिंग की कीड़ा कुलबुलाने लगता है। अभी तक क्रिकेट और अन्य खेलों के परिणामों पर सट्टेबाजों के प्रभाव से फिक्सिंग की बात सामने आती थी जिससे उनसे विरक्ति आ गयी पर जब ऐसी खबरें आयी तो यकीन नहीं हुआ। अन्ना साहेब भले हैं इसलिये उनके आंदोलन पर आक्षेप तो उनके विरोधी भी नहीं कर रहे पर इस दौरान हो रही नाटकीयता विज्ञापन प्रसारण के लिये बढ़िया सामग्री बन जाती है।

————–

संकलक, लेखक और संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर 
athor and editor-Deepak  “Bharatdeep”,Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
Post a comment or leave a trackback: Trackback URL.

एक उत्तर दें

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  बदले )

Twitter picture

You are commenting using your Twitter account. Log Out /  बदले )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  बदले )

Connecting to %s

%d bloggers like this: