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नजारों की असलियत-हिन्दी कविता (nazaron ki asaliyat-hindi kavita or hindi poem)


पुराने सामान रंगने के बाद भी
बिकने के लिये बाज़ार में सज जाते हैं,
बूढ़े चेहरे भी पुतकर क्रीम से आते पर्दे पर
लोगों के हाथ उनकी तारीफ में बज जाते हैं,
ज़माने ने आंखें भले खोलकर रखी हैं,
मगर सभी के नजरिये पर ताले लग जाते हैं।
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आंखें खुली हों
मगर दिमाग बंद हो
नजारों की असलियत
लोग नहीं समझ पाते हैं,
जुबान से वह क्या बयान करेंगे
दूसरों की आवाज सुनकर
कान उनके झूमने लग जाते हैं,
कहें दीपक बापू
जगायें तो उन लोगों को
जो सो रहे हों,
यहां तो सभी जागते हुए भी
सोते नज़र आते हैं।
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संकलक, लेखक और संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर 
athor and editor-Deepak  “Bharatdeep”,Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com