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ज्ञान का चिराग-लघुकथा


डूबता हुआ सूरज रोज अट्टहास के साथ अपने से ही सवाल करता था कि ‘इस दुनियां में सबसे बड़ा कौन?’
फिर दोबारा अट्टहास करते हुए स्वयं ही जवाब देता था कि ‘मैं’! मेरी रौशनी के बिना इस संसार के उस हिस्से में अंधेरा छा जाता है जहां से मैं विदा लेता हूं।’
एक दिन डूबने से पहले उसने कुछ देर पहले धरती पर झांक कर देखा तो उसे एक औरत अपने घर के बाहर बने छोटे चबूतरे पर एक जलता चिराग रखते हुए दिखाई दी। पड़ौसन ने उससे कहा-‘यह चिराग तुम क्यों जलाकर रखती हो। अपने कमरे में ही चिराग जलते है, फिर यहां रखने से क्या लाभ? बेकार में तेल का अपव्यय करना भला कहां की अक्लमंदी है?’
उस महिला ने कहा-‘यहां गली में रात को अंधेरा रहता है। अनेक राहगीर यहां से गुजरते हैं। इस चिराग से उनको सहायता मिलती है। अपने लिये तो सभी रौशनी करते हैं पर दूसरे के लिये करने पर एक अलग प्रकार का ही आनंद आता है।’

सूरज वहां से विदा हो गया पर उस महिला की बात उसके मन में घर कर गयी। उसने अपने आप से कहा-’मैं भी तो यही करता हूं पर अपने अहंकार की वजह से कभी उस आनंद का अनुभव नहीं कर पाया जो वह महिला करती है। एक छोटा चिराग भी वही कर लेता है जो मैं करता हूं। मतलब न इस दुनियां में रौशनी करने वाला मै अकेला हूं, दूसरों को रौशनी देने की सोचने वाला’
यह सोचकर सूरज मौन हो गया। फिर कभी डूबते समय उसने अट्टहास नहीं किया। उस चिराग और महिला ने ज्ञान का प्रकाश दिखाकर उसके अहंकार को परे कर दिया।

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दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका पर लिख गया यह पाठ मौलिक एवं अप्रकाशित है। इसके कहीं अन्य प्रकाश की अनुमति नहीं है।
कवि एंव संपादक-दीपक भारतदीप

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लेखक संपादक-दीपक भारतदीप

जिंदगी क्या जंग से कम है-लघुकथा


उसकी मां आई.सी.यू में भर्ती थी। वह और उसका चाचा बाहर टहल रहे थे। उसने चाचा से पूछा-‘चाचाजी, आपको क्या लगता है कि पाकिस्तान से भारत की जंग होगी।’

चाचा ने कहा-‘पता नहीं! अभी तो हम दोनों यह जंग लड़ ही रहे हैं।’

इतने में नर्स बाहर आयी और बोली-‘तीन नंबर के मरीज को देखने वाले आप ही लोग हैं न! जाकर यह दवायें ले आईये।’

युवक ने पूछा-‘‘आप ने अंदर कोई दवाई दी है क्या?’

नर्स ने कहा-‘ नहीं! अभी तो चेकअप कर रहे हैं। उनके कुछ और चेकअप होने हैं जो आप जाकर बाहर करायें। हमारी मशीनें खराब पड़ीं हैं। अभी यह दवायें आप ले आयें।

लड़का दवा लेने चला गया। रास्ते में एक फलों का ठेला देखा और अपनी मां के लिये पपीता खरीदने के लिये वहां रुक गया। उसी समय दो लड़के वहां आये और उस ठेले से कुछ सेव उठाकर चलते बने।

ठेले वाला चिल्लाया-‘अरे, पैसे तो देते जाओ।’

उन लड़कों में एक लड़के ने कहा-‘अबे ओए, तू हमें जानता नहीं। अभी हाल जाकर ढेर सारे दोस्त ले आयेंगे तो पूरा ठेला लूट लेंगे।’

ठेले वाले ने कहा-‘ढंग से बात करो। मैं भी पढ़ा लिखा हूं। इधर आकर पैसे दो।’

उनमें एक लड़का आया और उसके गाल पर थप्पड़ जड़ दिया। वह ठेले वाला सकते में आया और लड़के वहां से चलते बने।’

ठेले वाला गालियां देता रहा। फिर पपीता तौलकर उस युवक से बोला-‘साहब, क्या लड़ेगा यह देश किसी से। आतंक आतंक की बात करते हैं तो पर यह घर का आतंक कौन खत्म करेगा? गरीब और कमजोर आदमी का इज्जत से जीना मुश्किल हो गया है और बात करते हैं कि बाहर से आतंक आ रहा है।

वह दवायें लेकर वापस लौटा। उसने अपनी दवायें नर्स को दी। वह अंदर चली गयी तो उसने अपने चाचा को बताया कि एक हजार की दवायें आयीं हैं। उसने चाचा से कहा-‘चाचाजी, यहां आते आते पंद्रह सौ रुपये खर्च हो गये हैं। अगर कुछ पैसे जरूरत पड़ी तो आप दे देंगे न! बाद में मैं आपको दे दूंगा।’

चाचा ने हंसकर कहा-‘अगर मुझे मूंह फेरना होता तो यहां खड़ा ही क्यों रहता? तुम चाहो तो अभी पैसे ले लो। बाद में देना। तुम्हारी मां ने मुझे देवर नहीं बेटे की तरह पाला है। उसकी मेरे ऊपर भी उतनी ही जिम्मेदारी है जितनी तुम्हारी।’

इतने में वही नर्स वहां आयी और एक पर्चा उसके हाथ में थमाते हुए बोली-‘डाक्टर साहब बोल रहे हैं यह इंजेक्शन जल्दी ले आओ।’

युवक वह इंजेक्शन ले आया और फिर चाचा से बोला-‘मेडीकल वाले में बताया कि यह इंजेक्शन तो अक्सर मरीजों को लगता है। वह यह भी बता रहा था कि इन अस्पताल वालों को ऐसे ही इंजेक्शन मिलते हैं पर यह कभी मरीज को नहीं लगाते बल्कि बाजार में बेचकर पैसा बचाते हैं।’

चाचा ने कहा-‘हां, यह तो आम बात है। सार्वजनिक अस्पताल तो अब नाम को रह गये हैं। वह दवाईयां क्या डाक्टर ही देखने वाला मिल जाये वही बहुत है।’

वह कम से कम तीन बार दवाईयां ले आया। धीरे धीरे उसकी मां ठीक होती गयी। एक दिन उसे अस्पताल से छुट्टी मिल गयी। बाद में वह युवक बाजार में अपने सड़क पर सामान बेचने के ठिकाने पर पहुंचा। उसने अभी अपना सामान लगाया ही था कि हफ्ता लेने वाला आ गया। युवक ने उससे कहा-‘यार, मां की तबियत खराब थी। कल ही उनको आई.सी.यू. से वापस ले आया। तुम कल आकर अपना पैसा ले जाना।’

हफ्ता वसूलने वाले ने कहा-‘ओए, हमारा तेरी समस्या से कोई मतलब नहीं है। हम कोई उधार नहीं वसूल नहीं कर रहे। हमारी वजह से तो तू यहां यह अपनी गुमटी लगा पाता है।’

युवक ने हंसकर कहा-‘भाई, जमीन तो सरकारी है।’

हफ््ता वसूलने वाले ने कहा-‘फिर दिखाऊं कि कैसे यह जमीन सरकारी है।’

युवक ने कहा-‘अच्छा बाद में ले जाना। कम से कम इतना तो लिहाज करो कि मैंने अपनी मां की सेवा की और इस कारण यहां मेरी कमाई चली गयी।’

हफ्ता वसूली करने वाले ने कहा-‘इससे हमें क्या? हमें तो बस अपने पैसे से काम है? ठीक है मैं कल आऊंगा। याद रखना हमें पैसे से मतलब हैं तेरी समस्या से नहीं। ’

वह हफ्तावसूली वाला मुड़ा तो उसी समय एक जूलूस आ रहा था। जुलूस में लोग देश भक्ति जाग्रत करने के लिये आतंक विरोधी तख्तियां लिये हुए थे। उसमें उसे वह दो लड़के भी दिखाई दिये जिन्होंने फल वाले के सेव लूटकर उसको थप्पड़ भी मारी थी। उन्होंने हफ्तावसूल करने वाले को देखा तो बाहर निकल आये और उससे हाथ मिलाया।’

उसके निकलने पर युवक के पास गुमटी लगाने वाले दूसरे युवक ने कहा-‘यार, तेरे को क्या लगता है जंग होगी?’

पहले युवक ने आसमान की तरफ देखा और कहा-‘अभी हम लोगों के लिये यह जिंदगी क्या जंग से कम है?’

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मैंने कुछ सुधार कर दिया है अगर आप मेरे ब्लॉग का और मेरा पूरा नाम दें तो अच्छा रहेगा. मेरी आपको शुभकामनाएं

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भलाई करने वाला फ़रिश्ता-लघु व्यंग्य


भरी दोपहर में वह इंसान सड़क पर जा रहा था। उसने देखा दूसरा इंसान बिजली के खंबे के नीचे अपने कुछ कागज उल्टे पुल्टे कर रहा था। अचानक वह बड़बड़ा उठा-‘यह बिजली वाले एकदम नकारा हैं। देखों बल्ब भी नहीं जलाकर रखा। खैर, कोई बात नहीं मैं अपने कागज ऐसे ही पढ़कर देखता हूं ताकि वक्त पड़ने पर इन्हें देखने में कोई समस्या न हो।’

पहला इंसान रुक गया और उसने दूसरे इंसान से पूछा-‘क्या बात है भई? भरी दोपहरियो में बल्ब न जलाने पर इन बिजली वालों को क्यों कोस रहे हो। अपने कागज तो तुम ऐसे ही पढ़ सकते हो। अभी तो सूरज की तेज रोशनी पड़ रही है जब रात हो जोयगी तब लाईट जल जायेगी।’

उस दूसरे इंसान ने कहा-‘ओए, तू भला कहां से आ टपका। तुझे पता नहीं मैं मोहब्बत और अमन का फरिश्ता हूं और जिनकों कागज कह रहा है इसमें मोहब्बत और अमन की कहानियां हैं। यह तेरे समझ के परे है क्योंकि तेरे साथ कभी को हादसा नहीं हुआ न! यह पीडि़त लोगों को सुनाने के लिये है इससे उनको राहत मिलती है। तू फूट यहां से।

फरिश्ते की बात सुनकर वहा इंसान आगे बढ़ने को हुआ तो अचानक एक लड़का चिल्लाता हुआ उसके पीछे आया और बोला-चाचा, जल्दी वापस चलो अपने चाय के ठेले में आग लग गयी है।’

वह इंसान भागने को हुआ तो पीछे से फरिश्ता चिल्लाया-‘रुक तेरे साथ हादसा हुआ है। अब सुन मेरे मोहब्बत और अमन का पैगाम। यह कहानी है और यह कविता!’

वह इंसान चिल्लाया-‘भाड़ में जाये तुम्हारी कविता और कहानी। मैं जा रहा हूं अपना ठेला बचाने।’

वह भागा तो फरिश्ता भी उसके पीछे ‘सुनो सुनो’ कहता हुआ भागा।

वह इंसान ठेले के पास पहुंचा तो उसने देखा कि कुछ लोग पास की टंकी से पानी लेकर आग बुझाने का प्रयास कर रहे हैं। वह स्वयं भी इसमें जुट गया। वह बाल्टी भरकर ठेले पर डालता तो इधर फरिश्ता कहता-‘सुन अगर यह आग गैस से लगी है तो कोई बात नहीं है। गैस वैसे तो हमेशा हमारे बहुत काम आती है पर अगर एक बार धोखा हो गया तो उस पर गुस्सा मत होना। इस संबंध में एक विद्वान का कहना है कि……………’’
वह इंसान चिल्लाया-‘तुम दूर हटो। मुझे तुम्हारी इस कहानी से कोई मतलब नहीं है।’

वह दूसरी बाल्टी भरकर लाया तो वह फरिश्ता बोला-‘अगर यह किसी माचिस की दियासलाई से लगी है तो कोई बात नहीं वह अगर सिगरेट जलाने के काम आती है तो सिगड़ी को प्रज्जवलित करने के काम भी आती है। यह कविता…………………’’

वह आदमी चिल्लाया-’दूर हटो। मुझे अपनी रोजी रोटी बचानी है।’

मगर फरिश्ता कुछ न कुछ सुनाता रहा। आखिर उस इंसान ने ठेले की आग बुझा ली। वह उसके ठेले के नीचे रखे कागजों में लगी थी और अभी ऊपर नहीं पहुंची थी। उसका कामकाज चल सकता था। आग बुझाकर उसने उस फरिश्ते से कहा-‘अब सुनाओं अपनी कहानियां और कवितायें। मेरे दिल को ठंडक हो गयी। कोई खास नुक्सान नहीं हुआ।’
फरिश्ते ने अपने कागज अपने बस्तें में डाल दिये और चलने लगा। उस इंसान ने कहा-‘जब मै सुनना नहीं चाहता तब सुनाते हो और जब सुनना चाहता हुं तो मूंह फेरे जाते हो।’

उस फरिश्ते ने कहा-‘आग खत्म तो मेरी कहानी खत्म। मेरी कहानी और कवितायें अमन और मोहब्बत की हैं जो केवल वारदात के बाद तब तक सुनायी जाती हैं जब तक उसका असर खत्म न हो। अब तुम्हें मेरी कहानी और कविता की जरूरत नहीं है।’
वह इंसान हैरानी से उसे देखने लगा
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