एक ब्लाग पर अपने एक आलेख में इस लेखक ने विश्व कप 2010 फुटबाल विश्व कप में स्पेन के विरुद्ध हालैंड के जीतने की भविष्यवाणी कर दी। क्यों की? न अब फुटबाल से वास्ता न ज्योतिष से। ज्योतिष गणना को तो सवाल ही अलबत्ता एक समय हॉकी और फुटबाल खेलने से वास्ता रहा जो समय के साथ छूट गया।
जब सवाल अपने से करें तो जवाब भी अपने को ही देना पड़ता है? अब अगर भविष्यवाणी गलत निकली तो अपने आप से मुंह छिपाना भी कठिन होगा। गनीमत है कि ब्लाग कम लोग पढ़ते हैं। पहला लेख कुछ बड़ा था इसलिये यह संभव नहीं है कि पढ़ने वालो को वह भविष्यवाणी याद रहे पर अपने को भूलना कठिन लगता है। गनीमत है कि यह पाठ लिखने जाने इस लेखक सहित अन्य पांच लोगों ने पढ़ा।
अपना लिखा लेख स्वयं ही पढ़ा-ऐसी गलती शायद पहली बार की होगी। दरअसल उस्मने जर्मनी के बारे में लिखते हुए उसकी जीत की भविष्यवाणी की पॉल बाबा से सहमति जताना था पर उसका आधार ज्योतिष नहीं बल्कि पिछले विश्व कप ंतक जर्मनी के खिलाड़ियों का प्रदर्शन देखकर था। यह बात लेख लिखते समय थी पर बाद में याद न रहा। यहां इस लेखक से चूक हो गयी क्योकि अगर वह भविष्यवाणी सही निकलती तो आज हालैंड के जीतने की भविष्यवाणी का तनाव नहीं रहता। पचास पचास फीसदी अवसर का लाभ मिल जाता।
दरअसल ऑक्टोपस यानि पॉल बाबा की अब तक सात भविष्यवाणियां सही निकल चुकी हैं। विश्व कप के खेल के साथ ऑक्टोपस का भी खेल चल रहा है। कुछ लोगों को आश्चर्य हो रहा है कि ऑक्टोपस की भविष्यवाणी सही कैसे निकल रही है।
दरअसल यह एक प्रायोजित खेल है। खेलों पर सट्टा लगाने में वैसे तो पूरे विश्व के लोग माहिर हैं पर आजकल पैसे के मामले में एशियाई देश आगे चल रहे हैं। इसक अलावा एशियाई लोग भूत, बाबा, प्रेत और सिद्धों के चक्कर में पड़े रहते हैं। भविष्य के चक्कर में अपना वर्तमान तबाह कर लेते हैं और तिस पर दो के चार होने की बात हो तो एक नहीं हजारों मूर्ख मिल जायेंगे।
जिस तरह अपने यहां क्रिकेट खिलाड़ी धन, प्रतिष्ठा और शक्ति अर्जित कर रहे हैं उसे देखते हुए फुटबाल गरीबों का खेल हो गया है और उसे एशियाई समर्थन की आवश्यकता है, शायद पॉल बाबा का प्रयोग इसलिये किया गया ताकि सेमीफायनल आते आते उसका लाभ एशियाई देशों में लिया जा सके।
अभी तक फुटबाल में सट्टबाजी की चर्चा नहीं हुई पर अब हो रही है। प्रचार माध्यम बता रहे थे कि इस फायनल मैच में दो हजार करोड़ का सट्टा लग रहा है। तब खोपड़ी में बात आयी कि कहीं केवल इस फायनल मैच में बड़ी रकम लगवाने के लिये प्रारंभ से ही इसकी कड़ी से कड़ी तो नहीं जोड़ी गयी। ऑक्टोपस-यह एक समुद्री जीव है-दिन में एक बार भविष्यवाणी करता था जबकि विश्व कप में अधिकतर दो मैच प्रतिदिन होते थे। इसका मतलब यह कि एक मैच में उसकी भविष्यवाणी नहीं होती। फिर इतने मैच हुए पर भविष्यवाणी छह या सात ही क्यों हुई? सीधी सी बात है कि फुटबाल के सट्टे में एशियाई देशों की सक्रियता कम रही होगी। इसलिये धीरे धीरे ऑक्टोपस बाबा को नायक के रूप में विकसित किया गया होगा। अपने यहां के प्रचार माध्यमों ने तीन बाबा और खड़े किये हैं-एक मगरमच्छ, एक तोता और बैल इन बाबाओं के प्रतिरूप हैं। दो हालैंड के तो दो स्पेन को संभावित विजेता बता रहे हैं।
इस विश्व कप फुटबाल के न हमने पहले मैच देखे न फायनल देखने का इरादा था । परिणाम भी हमें अगले दिन सुबह आठ बजे ही पता चलाना था जब अपने पोर्च में रखा अखबार उठाते । वैसे प्रयास तो यही होता कि प्रातः छह बजे उठकर योग साधना से पहले ही अखबार उठायें पर यह तभी संभव है कि हमें याद रहता कि कल रात कोई विश्व कप फुटबाल फायनल मैच हुआ है जिसके परिणाम की भविष्यवाणी हमने भी की है। वैसे हमारी दिलचस्पी फुटबाल मैच में कम ऑक्टोपस नामक उस जीव में ज्यादा थी जो इस विषय में कुछ नहीं जानता पर उसके नाम पर करोड़ों के वारे न्यारे हो रहे हैं। शायद इसलिये कहते हैं कि भगवान जिन पर कृपालु है उनको ही मनुष्य यौनि मिलती है। मनुष्य यौनि में अपने लोक नायक या नायिका हो जाने पर सुखद आनंद की अनुभूति की जा सकती है जबकि अन्य जीवों के लिये यह संभव नहीं है। चाहे वह बंदर हो या कुत्ता, तोता हो या ऑक्टोपस या बैल को यह पता नहीं होता कि वह लोक नायक बन रहे हैं।
अब तो यह कहना कठिन था कि कौन जीतेगा। जब सारी दुनियां में ऑक्टोपस की भविष्यवाणी और फुटबाल की चर्चा हो रही थी तब सट्टे वाले अपने मोबाइल, इंटरनेट तथा अन्य साधनों के द्वारा सक्रिय रहकर इस बात का हिसाब लगा रहे होंगे कि किसकी जीत में उनको फायदा है। फिर अपने आंकड़े बिठाने के प्रयास करते होंगे । यकीन करिये अगर स्पेन की हार में उनका फायदा होता तो ऑक्टोपस को भी खलनायक बना देंते और हालैंड की जीत में लाभ होता तो बैल को नंदी को भगवान शिव की सवारी कहकर सम्मानित करते -उस बैल का भी यही नाम बताया गया है जिसने हालैंड के जीतने की भविष्यवाणी की थी जो बात में गलत निकली।
वैसे आशंका यही थी कि ऑक्टोपस की भविष्यवाणी अधिक लोकप्रिय हुई है इसलिये लगाने वाले दाव स्पेन पर ही अधिक होंगे-इसका आधार यह है कि सट्टे पर पैसा लगाने वालों में अक्ल कम होती है और उनका पैसा बिना मेहनत का होता है इसलिये उसका महत्व नहीं जानते-ऐसे में हालैंड की जीत हो सकती थी पर नहीं हुई।
दो हजार करोड़ रुपये कम रकम नहीं होती। इसमें बड़े बड़े लोगों का ईमान डोल सकता है। दूसरों की बात तो छोड़िये कोई हमें दो हजार रुपये ही दे तो हम अभी हाल स्पेन के जीतने की भविष्यवाणी कर देते हैं-अधिक रकम इसलिये नहीं लिखी क्योंकि एटीएम से हम इससे अधिक रकम नही निकालते।
यह लेख कंप्यूटर पर दिख रहे टाईम कें अनुसार 10.49 पर लिखना प्रारंभ किया था और 10.25 मिनट पर समाप्त कर रहे थे। हमारे यहां सुबह बिजली पांच घंटे चली जाती है इसलिये अब कंप्यूटर पर शाम आठ बजे से पहले आना संभव नहीं है। ऐसे में अब इस लेख को जब दोबारा पढेंगे तब तक यह विषय ही बासी हो चुका होगा। बस इतना देखना है कि बाज़ार के इस महानायक ऑक्टोपस का क्या होता है और सट्टेबाज खेल को प्रभावित कितना कर पाते हैं? अलबत्ता रकम देखकर लगता है कि यह खेल भी अब पैसे को हो गया है। इतनी बड़ी रकम से व्यापार करने वाले सौदे में अपनी पकड़ आखिरी तक नहीं छोड़ते-चाहे वह फुटबाल हो या क्रिकेट! वह हर जगह अपने मोहरे इस तरह फिट रखते हैं कि जनता को खेल तो खेल की तरह लगे पर भले ही वह उनका व्यापार हो। अंतत स्पेन जीता गया मगर परदे के पीछे कौन जीता या हारा कहना कठिन है। इतना तय है कि यह खेल भी एक तरह से व्यापार हो गया। यह याद भी रखने लायक है कि व्यापारी कभी घाटे के सौदे नहीं करता।
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कवि लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
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दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका पर लिख गया यह पाठ मौलिक एवं अप्रकाशित है। इसके कहीं अन्य प्रकाश की अनुमति नहीं है।
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