चलो अच्छा ही हुआ कि आज दीपावली के दिन भारत ने एशिया हॉकी कप के फायनल में पाकिस्तान को 3-2 से हराकर खिताब जीत लिया। भारतीय प्रचार माध्यम अपनी श्रेष्ठता दिखाने के लिये खेलों को सनसनीपूर्ण बना देते हैं इसलिये दर्शकों के भावुक होने की पूरी संभावना रहती है-खासतौर से जब देशभक्ति और हिन्दू पर्व का संयुक्त विषय हो-ऐसे में हारने पर कुछ लोग तनाव ज्यादा अनुभव करते हैं। बहरहाल वह मैच हमने देखा। जैसा कि हम जानते हैं कि अब हॉकी का मैच 15-15 मिनट के चार भागों में खेला जाता है। भारतीय हॉकी टीम की यह रणनीति बन गयी है या उसकी स्वाभाविक प्रकृत्ति है कि वह पहले और चौथे भाग में बहुत ज्यादा आक्रामक खेलती है पर दूसरे व तीसरे भाग में उसका प्रदर्शन थोड़ा कमजोर रहता है।
इस मैच में भी भारत ने पहले ही भाग में 2-1 से बढ़त बना ली थी पर तीसरे भाग में पाकिस्तान ने एक गोल कर बराबरी की। चौथे भाग में हमारा यकीन था कि पाकिस्तान पर भारत की तरफ से गोला जरूर होगा। हारने जीतने की चिंता नहीं थी पर हम सोच रहे थे कि अन्य भावुक भारतीय अगर यह स्कोर देखेंगे तो चिंता में पढ़ जायेंगे। तीसरा गोल होने के बाद हमें भी लग रहा था कि जैसे तैसे समय पास हो तो ठीक है। बहरहाल भारत यह मैच जीत गया। यह कामयाबी पाकिस्तान के विरुद्ध है इसलिये ज्यादा महत्वपूर्ण है वरना तो वैश्विक स्तर पर भारतीय टीम को अपना प्रभाव दिखाने के लिये अभी बहुत मेहनत करनी है।
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हमारे अंदर भी पशु और पक्षियों के प्रति भारी संवेदनायें हैं पर दिखावा नहीं करते। इधर कुछ लोग पटाखे चलने से जानवरों पर संकट देख रहे हैं। अगर हिन्दूवादी पूछ रहे हैं कि उनके पर्वो पर ही सवाल क्यों उठते हैं तो इसका जवाब तो मिलना ही चाहिये। दिवाली पर पशुप्रेम दो प्रकार के लोगों को ही जागा है। एक वह जो निरपेक्ष हैं दूसरे जो कुत्ते पालते हैं जिनको इन पटाखों के शोर से बहुत परेशान होती है और उससे बचने के लिये वह स्वामी के शयनकक्ष तक बिना अनुमति के घुस जाते हैं। केवल हिन्दू पर्व पर विलाप करने वाले पशुप्रेमियों को हमारी यह राय है कि वह अपने पालतु बिल्ली और कुत्तों को शयन कक्ष में जाकर बिठा दें उन्हेें पटाखों के शोर से परेशानी नहीं होगी। हमारे पास एक टॉमी नामक कुत्ता-यह शब्द लिखते हुए पीड़ा होती है-तेरह साल रहा है उसे हम इसी तरह ही दिवाली और दशहरा पर इसी तरह बचाते हैं। आज पशुप्रेमियों का अभियान देकर उसकी याद आ रही है और मन भावुक हो रहा है। काश! वह होता तो आज उसे हम इसी तरह अपने शयनकक्ष के पलंग के नीचे दुबका देते।
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दीपावली पर चीनी सामान के बहिष्कार का अभियान तो चल रहा है पर बाज़ार में जिस तरह भीड़ लगी है तो दुकानदार से यह पूछना भी मुश्किल है कि यह चीनी है या देसी। फिर कोई पहचान भी नहीं है। इस बात की संभावना है कि कई दिनों से चीनी सामान के बहिष्कार की बात चलती रही है तो जिन व्यापारियों ने सामान खरीदा हो वह बाहर की पैकिंग भी बदल कर सामान बेच सकते हैं। अतः पूरी तरह यह प्रयास सफल नहीं हो सकता कि चीनी सामान बिके ही नहीं। वैसे भी हम आर्थिक दृष्टि से छोटे व्यापारियों की देशभक्ति पर सवाल नहीं उठायें तो अच्छा है पहले बड़े मगरमच्छों से सभी सवाल करें जो भारी मात्रा में सामान मंगवा रहे है।
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