इतिहास क्यों पुराना सुनाते हो,
यहां घट रहा है रोज नया घटनाक्रम
तुम पुरानी कथा क्यों सुनाते हो।
पढ़ लिखकर किताबें क्यों ढूंढ रहे हो
जमाने को दिखाने का रास्ता,
अपनी खुद की सोच बयान करो
मत दो रद्दी हो चुके ख्यालों का वास्ता,
पुराने समय के नायकों की याद में
नये खलनायकों की चुनौती क्यों भुलाते हो।
———-
राजशाही लुट गयी
लुटेरे बन गये
ज़माने के खैरख्वाह।
उठाये थे पहले भी गरीब
साहुकारों का बोझ
भले ही भरकर रह जाते थे आह,
अब भी कहर बरपा रहे
लुटेरे तमंचों के जोर पर रोज
फिर भी बोलना पड़ता है वाह वाह।
———
कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
—————————
यह कविता/आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की अभिव्यक्ति पत्रिका’ पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका
दीपक भारतदीप द्धारा
|
हिन्दी में प्रकाशित किया गया
|
Also tagged मनोरंजन, मस्ती, शायरी, शेर, समाज, हिन्दी साहित्य, hindi litrature, masti, mastram, shayri, sher
|
कैसे यकीन करें
उनके वादों पर
खड़े कर लिये अपने रहने के लिये महल,
करते हैं गरीबों के लिये झुग्गियों की पहल,
लोहे के चलते किलें में करते हैं सफर,
टूटी सड़कों बनाने का वादा करते मगर,
हर बार चमकते हैं आंखों के सामने
जब वादों का मौसम आता है।
उनकी ईमानदारी की कसमों पर यकीन
कैसे करें
क्योंकि दौलत का किला तो
बेईमानी और छलकपट से ही बन पाता है।
————-
संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://rajlekh.blogspot.com
——————————
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.शब्दलेख सारथि
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
दीपक भारतदीप द्धारा
|
अभिव्यक्ति, मस्तराम, हिन्दी पत्रिका, हिन्दी शायरी, हिन्दी शेर, deepak bapu, deepak bharatdeep, E-patrika, FAMILY, friends, hindi friends, hindi litreture, hindi megzine, hindi nai duinia, mastram, web bhaskar, web dunia, web duniya, web express, web panjab kesri, web patrika में प्रकाशित किया गया
|
Also tagged मनोरंजन, मस्ती, व्यंग्य कविता, शायरी हिन्दी, समाज, हिन्दी साहित्य, shyari hindi, vyangya kavita
|
एक दिल था जो
उन्होंने खिलौने की तरह तोड़ दिया,
मोहब्बत को समझा खेल
अपना रिश्ता दिल्लगी से जोड़ लिया।
जिंदगी के सुकून का मतलब नहीं समझे
जज़्बातों को समझा लोहे लंगर की तरह
अपना ख्याल कार की तरह मोड़ लिया।
———
एक दोस्त ने दूसरे को समझाया
‘‘यह ‘आई लव यू’ लिखकर
प्रेम पत्र भेजने से काम नहीं चलेगा,
इस तरह तो तू जिंदगी पर आहें भरेगा।
अपने पत्र में
तमाम तरह के तोहफों की पेशकश कर,
जज़्बातों से ज्यादा वादों के शब्द भर,
भले ही बाद में कार में न घुमाना
पहाड़ों पर हनीमून मनाने की बात भुलाना
मित्र, अब केवल दिल से दिल नहीं जीते जाते,
होटलों के बिल से ही इश्क के गीत लिखे जाते,
जो बताई मैंने तुझ राह
मंजिल तुझे तभी मिलेगी
जब आजकल के इश्क की राह चलेगा।’
———
कवि, लेखक और संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
यह आलेख/हिंदी शायरी मूल रूप से इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान-पत्रिका’पर लिखी गयी है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन के लिये अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की हिंदी पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.अनंत शब्दयोग
दीपक भारतदीप द्धारा
|
अनुभूति, अभिव्यक्ति, हास्य कविता, हिन्दी पत्रिका, हिन्दी शायरी, हिन्दी शेर, deepak bapu, deepak bharatdeep, hasya, hindi bhasakar, hindi internet, hindi megzine, hindi mitra, hindi web, inglish, internet, mastram, web dunia, web duniya, web express, web panjab kesri, web patrika में प्रकाशित किया गया
|
Also tagged मनोंरजन, मस्त राम, मस्ती, शेर, हास्य, हिन्दी शायरी, hindi comic poem, hindi shayri, masti
|