रास्ते में मिला फंदेबाज और बोला
‘‘दीपक बापू, आप बरसों से
हिन्दी में लिखते हो,
फिर भी फ्लाप दिखते हो,
अब हिन्दी दिवस आया है
कोई कार्यक्रम कर
अपनी पहचान बढ़ाओ,
लोग तुम्हें ऐसे ही पढ़ें
यह तुम भूल जाओ,
आजकल प्रचार का जमाना है,
हाथ पांव मारो अगर नाम कमाना है,
तुम भी करो स्थापित कवियों की चमचागिरी,
अपने से कमतर पर जमाओ नेतागिरी,
वरना लिखना छोड़ दो,
सन्यास से अपना नाता जोड़ लो।’’
सुनकर हंसे दीपक बापू
‘‘हिन्दी दिवस का प्रचार देखकर
तुम्हारा मन भी उछल रहा है,
अपने दोस्त को फ्लाप
दूसरों को हिट देखकर
तुम्हारा दिमाग जल रहा है,
लगता है तुमने ऐसे कार्यक्रमों
कभी गये नहीं हो,
इसलिये ऐसी सलाहें दे रहे हो
भले दोस्त नये नहीं हो,
हिन्दी दिवस पर लिखने के अलावा
हमें कुछ नहीं आता है,
ऐसे कार्यक्रमों में लेखन पर कम
नाश्ते और चाय के इंतजाम पर
ध्यान ज्यादा जाता है,
बाज़ार के इशारे पर नाचता है जमाना,
सौदागरों के रहम के बिना मुश्किल है कमाना,
अंग्रेजी के गुंलाम
हिन्दी से ही कमाते हैं,
यह अलग बात है कि
ज़माने से अलग दिखने के लिये
अंग्रेजी का रौब जमाते हैं,
सच यह है कि
हिन्दी कमाकर देने वाली भाषा है,
इसलिये भविष्य में भी विकास की आशा है,
चीजें बनायें अंग्रेजी जानने वाले
मगर बेचने के लिये हिन्दी में
पापड़ बेलना पड़ते हैं,
यह अलग बात है कि
हिन्दी लेखक होने पर
उपेक्षा के थपेड़े झेलना पड़ते हैं,
कार्यक्रमों की भीड़ में जाकर
हमारी लिखी रचना क्या करेगी,
अकेली आहें भरेगी,
इसलिये तुम्हारी सलाह नहीं मान सकते
भले ही तुम दोस्ती से मुंह मोड़ लो।
लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा “भारतदीप”
ग्वालियर, मध्यप्रदेश
Writer and poet-Deepak Raj Kukreja “Bharatdeep”
Gwalior, Madhya pradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’ग्वालियर
jpoet, Writer and editor-Deepak ‘Bharatdeep’,Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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