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देश फिर भी अपना कमाकर खायेगा-हिन्दी व्यंग्य कविता (desh fir bhi kamakar khayega-hindi vyangya kavita)


यह खौफ क्यों सताता है तुमको
कि देश बिक जायेगा
कमबख्त, पहले लुटेरे
खुद लूटने आये इस देश का खजाना,
देश फिर भी फलाफूला
हो गये वह अपने देश रवाना,
अब उनके दलाल कमाकर दलाली
जमा कर रहे लुटेरों के घर दौलत,
फिर उसे उधार लेकर आते हैं,
ब्याज भी यहीं से कमाते हैं
अपने बनकर पा रहे वफादार जैसी शौहरत
सब मिट जायेंगे एक दिन
देश फिर भी अपना कमाकर खायेगा
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कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
poet, Editor and writer-Deepak  ‘Bharatdeep’,Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com

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यह आजादी-हिन्दी हाइकु (yah azadi-hindi hiq)


भ्रष्टाचार
जिंदगी का हिस्सा
बन गया है,

उठता दर्द
जब मौका न होता
अपने पास,

दुख यह है
कोई धनी होकर
तन गया है।
——–
गैरों ने लूटा
परवाह नहीं थी
गुलाम जो थे,

यह आजादी
अपनों ने पाई है
लूट वास्ते

नये कातिल
रचते इतिहास
हाथ खुले हैं,

कब्र में दर्ज
लगते है पुराने
यूं नाम जो थे।

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कवि, लेखक और संपादक-दीपक “भारतदीप” 
poet,writter and editor-Deepak “BharatDeep”
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क्रिकेट में महाभारत जैसा प्रसंग-हिन्दी व्यंग्य (cricket and mahabharat-hindi vyangya)


बीसीसीआई की क्रिकेट टीम टी-ट्वंटी विश्व कप से बाहर हो गयी। टीवी चैनल वाले इसको लेकर प्रलाप कर रहे हैं। अब उन्हें अपने देश की इज्जत लुट जाने का गम साल रहा है। वाह यार! क्या गजब़ है!
जब पाकिस्तान के खिलाड़ियों को भारत के आयोजित क्लब स्तरीय प्रतियोगिता में नहीं खरीदा गया तब यही चैनल वाले देशभक्ति की बात ताक पर रखकर इसका विरोध कर रहे थे। 26/11 के जख्म की वरसी पर मोमबत्तियां जलाने के दृश्य दिखाने वाले यह टीवी चैनल भूल गये थे कि यह कार्य उस पाकिस्तान ने किया है जहां की जनता भारत से नफरत करती है। अब फिर क्रिकेट में हारने पर देश के जज़्बातों की आड़ में गम बेचने का प्रयास कर रहे हैं जिसे अब कोई भी देख सकता है।
दरअसल इन चैनलों को इस बात का गम नहीं कि देश की इज्जत की लुटिया डूब गयी बल्कि उनको लग रहा है कि अब निकट भविष्य में उनके क्रिकेट के कार्यक्रम लोकप्रियता के अंक बढ़ाने में सहायक नहीं होंगे। दूसरे यह भी कि खिलाड़ियों के विरुद्ध अपने देश के आम लोगों में एक मानसिक विद्रोह पैदा होगा जिससे उनके अभिनीत विज्ञापनों के उत्पाद भी अलोकप्रिय हो सकते हैं। कुछ के विज्ञापन भी शायद उत्पादक वापस लेना चाहें जैसे कि 2007 के विश्व कप में बीसीसीआई की टीम की हार पर हुआ था। इसका सीधा आशय यह है कि इन टीवी चैनलों को आर्थिक नुक्सान हो सकता है-यहां यह बात साफ कर दें कि यह केवल अनुमान है क्योंकि बाज़ार और प्रचार के खिलाड़ी येनकेन प्रकरेण क्रिकेट की लोकप्रियता बचाने का प्रयास करेंगे।
एक चैनल इस हार के बाद धोनी के मुस्कराने पर एतराज जता रहा था। अरे भई, इस हार पर तो वह हर ज्ञानी आदमी खुश होगा जो सोचता है कि क्रिकेट की लोकप्रियता गिरे तो उस पर सट्टा खेलने वाली नयी पीढ़ी के सदस्यों का भविष्य अंधकारमय न हो। आये दिन ऐसी खबरे पढ़ने को मिलती हैं कि कर्ज में डूबे आदमी ने अपने परिवार के सदस्यों को मारा। अखबारों में आये दिन यह भी खबर आती है कि सट्टा खेलने और खिलाने वाले पकड़े गये। आज तक इस बात का आंकलन नहीं हुआ कि इस खेल का देश के परिवारों पर अप्रत्यक्ष रूप से कितना दुष्प्रभाव पड़ता है।
धोनी के मुस्कराने पर इतना एतराज करना ठीक नहीं है। ऐसा लगता है कि घटोत्कच वध जैसा प्रसंग उपस्थित हो गया है। महाभारत युद्ध में जब कर्ण की ब्रह्म शक्ति से घटोत्कच का वध हुआ तब सारे पांडव दुःखी होकर उसके शव के निकट गये पर कृष्ण प्रसन्नता से अपना शंख बचा रहे थे। वजह पूछने पर उन्होंने बताया कि ‘घटोत्कच राक्षस था। वह इस युद्ध से बचता भी तो मैं उसे मारता। दूसरे यह कि जब तक कर्ण के पास शक्ति के रहते मैं अर्जुन को मरा हुआ मानता था। कर्ण की उस शक्ति ने घटोत्कच का वध करके अर्जुन को जीवनदान दिया है।’
बात सीधी है कि क्रिकेट के कारण अनेक युवा बुरे रास्ते का शिकार हो रहे हैं। दूसरे यह खेल आलसी खेल है और इससे शरीर या मन को कोई लाभ नहीं होता। ऐसे में फुटबाल, टेनिस या अन्य खेलों को प्रोत्साहन मिले तो अच्छा ही रहेगा।
जहां तक देश भक्ति की बात है तो उसके लिये बहुत सारे क्षेत्र हैं। इस गुलामों के खेल में उसे देखने की आवश्यकता नहीं है। जिसमें समय और धन की बर्बादी क अलावा शारीरिक तथा मानसिक विकार पैदा होते है-यह बात खिलाड़ियों पर नहीं केवल दर्शकों के लिये लिखी जा रही है। हम तो अपने देश को भारत के नाम से जानते हैं और चैनल वाले भी इसे टीम इंडिया कहते हैं तब इसके प्रति आत्मीय भाव वैसे भी अनेक लोगों के मन में नहीं रह जाता। फिर बीसीसीआई की टीम है जिसकी एक कथित उपसमिति क्लब स्तरीय प्रतियोगितायें कराती हैं। यह बात भी आम लोगों को तब पता लगी जब उसमें तमाम गोलमाल की बात सामने आयी। तब यह भी प्रश्न उठा कि पिछली बार जब इनको भारत में प्रतियोगिता कराने की अनुमति नहीं मिली तब उसे दक्षिण अफ्रीका में उसे कराया गया। सीधी बात यह है कि बीसीसीआई को क्रिकेट से मतलब है देश से नहीं। वह एक कंपनी की तरह काम करती है और कोई भी कंपनी चाहे कितनी भी प्रसिद्ध या बड़ी हो वह देश की प्रतीक नहीं हो सकती।
हाकी हमारा राष्ट्रीय खेल है और उसमें अपनी टीम आजकल जोरदार प्रदर्शन कर रही है। आशा है वह आगे भी जारी रखेगी। अगर इस हार से देश में क्रिकेट की लोकप्रियता गिरती है और हमारी नयी पीढ़ी तमाम तरह की बुराईयों से बचती है तो यह बुरी नहीं है। हम तो यही चाहते हैं कि देश की युवा पीढ़ी को संबल मिले। अन्य खेलों में बढ़कर खिलाड़ी देश का नाम करें और उनको युवा पीढ़ी दर्शक के रूप में प्रोत्साहन दे। प्रसंगवश कर्ण की शक्ति से आहत होने की बावजूद घटोत्कच ने अपना कद बहुत बढ़ा लिया और जब गिरा तो उसने कौरवों की बहुत सारी सेना मारकर अपने बड़ों का भला किया। अब युद्ध तो होते नहीं खेल भी युद्ध जैसे हो गये हैं। दूसरे अब चौसर वाली जुआ नहीं खेली जाती कुछ खेलों ने उसकी जगह ले ली है। इसलिये अब बीसीसीआई की टीम की हार से देश क्रिकेटिया व्यसनों से बचता है तो अच्छा ही होगा।

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कवि लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
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