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कवि का हिंदी दिवस यूं मना-हिंदी हास्य कविता


रास्ते में मिला फंदेबाज और बोला

‘‘दीपक बापू, आप बरसों से

हिन्दी में लिखते हो,

फिर भी फ्लाप दिखते हो,

अब हिन्दी दिवस आया है

कोई कार्यक्रम कर

अपनी पहचान बढ़ाओ,

लोग तुम्हें ऐसे ही पढ़ें

यह तुम भूल जाओ,

आजकल प्रचार का जमाना है,

हाथ पांव मारो अगर नाम कमाना है,

तुम भी करो स्थापित कवियों की चमचागिरी,

अपने से कमतर पर जमाओ नेतागिरी,

वरना लिखना छोड़ दो,

सन्यास से अपना नाता जोड़ लो।’’

सुनकर हंसे दीपक बापू

‘‘हिन्दी दिवस का प्रचार देखकर

तुम्हारा मन भी उछल रहा है,

अपने दोस्त को फ्लाप

दूसरों को हिट देखकर

तुम्हारा दिमाग जल रहा है,

लगता है तुमने ऐसे कार्यक्रमों

कभी गये नहीं हो,

इसलिये ऐसी सलाहें दे रहे हो

भले दोस्त नये नहीं हो,

हिन्दी दिवस पर लिखने के अलावा

हमें कुछ नहीं आता है,

ऐसे कार्यक्रमों में लेखन पर कम

नाश्ते और चाय के इंतजाम पर

ध्यान ज्यादा जाता है,

बाज़ार के इशारे पर नाचता है जमाना,

सौदागरों के रहम के बिना मुश्किल है कमाना,

अंग्रेजी के गुंलाम

हिन्दी से ही कमाते हैं,

यह अलग बात है कि

ज़माने से अलग दिखने के लिये

अंग्रेजी का रौब जमाते हैं,

सच यह है कि

हिन्दी कमाकर देने वाली भाषा है,

इसलिये भविष्य में भी विकास की आशा है,

चीजें बनायें अंग्रेजी जानने वाले

मगर बेचने के लिये हिन्दी में

पापड़ बेलना पड़ते हैं,

यह अलग बात है कि

हिन्दी लेखक होने पर

उपेक्षा के थपेड़े झेलना पड़ते हैं,

कार्यक्रमों की भीड़ में जाकर

हमारी लिखी रचना क्या करेगी,

अकेली आहें भरेगी,

इसलिये तुम्हारी सलाह नहीं मान सकते

भले ही तुम दोस्ती से मुंह मोड़ लो।

लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा “भारतदीप”

ग्वालियर, मध्यप्रदेश 

Writer and poet-Deepak Raj Kukreja “Bharatdeep”

Gwalior, Madhya pradesh

कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’ग्वालियर
jpoet, Writer and editor-Deepak ‘Bharatdeep’,Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
 

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हिंदी दिवस पर हास्य कविता-राष्ट्रभाषा का महत्व अंग्रेजी में समझाते


हिन्दी दिवस हर बार

यूं ही मनाया जायेगा,

राष्ट्रभाषा का महत्व

अंग्रेजी में बोलेंगे बड़े लोग

कहीं हिंग्लिश में

नेशनल लैंग्वेज का इर्म्पोटेंस

मुस्कराते समझाया जायेगा।

कहें दीपक बापू

पता ही नहीं लगता कि

लोग तुतला कर बोल रहे हैं

या झुंझला कर भाषा का भाव तोल रहे हैं,

हिन्दी लिखने वालों को

बोलना भी सिखाया जायेगा,

हमें तसल्ली है

अंग्रेजी में रोज सजती है महफिलें

14 सितम्बर को हिन्दी के नाम पर

चाय, नाश्ता और शराब का

दौर भी एक दिन चल जायेगा।

लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश

writer and poet-Deepak raj kukreja “Bharatdeep”,Gwalior madhya pradesh

संकलक, लेखक और संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर  

athor and editor-Deepak  “Bharatdeep”,Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com

हिंदी दिवस पर लेख-इस हिंदी ब्लॉग समूह ने २५ लाख पाठक/पाठ पठन संख्या पार की-सम्पादकीय


                  अंतर्जाल पर हिन्दी ब्लॉग लेखन एक तरह से थम गया है। इसका मुख्य कारण नयी पीढ़ी का फेसबुक की तरफ मुड़ जाना है। संवाद संप्रेक्षण की बृहद सीमा के बावजूद हिन्दी के ब्लॉग जगत में कोई ऐसी रचना पढ़ने को नहीं मिल रही जिससे याद रखा जा सके। समसामयिक विषयों पर भी वैसा ही पढ़ने को मिल रहा है जैसा कि परंपरागत प्रचार माध्यमों में-टीवी चैनल और पत्र पत्रिकाऐं-पढ़ने को मिल रहा है। दरअसल जब इस लेखक ने अपना लेखन ब्लॉग पर प्रारंभ किया था तब न तो सामने कोई लक्ष्य था न ही आशा। जिज्ञासावश प्रारंभ किये गये इस लेखन के दौरान समाज के पहले से ही मस्तिष्क में कल्पित रूप को सच में सामने देखा जिसे अपनी रचनाओं में भी व्यक्त किया। सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि अध्यात्मिक लेखन ने न केवल जीवन में परिपक्व बनाया बल्कि लक्ष्य की तरफ बढ़ने का संकल्प मजबूत करने के साथ ही अभिव्यक्ति को तीक्ष्ण बनाया। अब आंखें बंदकर कंप्यूटर पर उंगलियों से टंकण करते हैं तो देखने वाले लोग हैरान होकर पूछते हैं कि आखिर यह करते कैसे हो?
                प्रारंभ में इस हिन्दी ब्लॉग जगत में कुछ दोस्त बने थे। अंतर्जाल पर हिन्दी में ब्लॉग लेखन उस समय प्रारंभिक दौर में था। पहले लगा कि वह वास्तविक दुनियां हैं पर जल्द लगा कि यह केवल आभास भर था। मित्र एक था या दो या पांच, कहना कठिन है। यह संभव है कि एक मित्र हो और पांच रूप धरता हो। संभव है दो हों। एक बात तय रही कि कम से कम एक आदमी ऐसा है जो हम जैसा सोच रखता है। वह दो भी हो सकते हैं यह हम नहीं मानते। अद्वितीय हम हैं यह हम मानते हैं पर बुद्धिमान या अज्ञानी यह दूसरों के लिये विश्लेषण का विषय है। जीवन में लेखन प्रारंभ करते समय हमारे एक मित्र ने हमें बता दिया था कि तुम्हारा सोच अद्वितीय है और इसे अद्वितीय आदमी ही समझेगा। एक हमारे परिचित लेखक मित्र हैं वह भी ब्लॉग लेखन करते हैं और उनकी प्रवृत्तियां भी अद्वितीय श्रेणी की है। इसका मतलब यह कि कम से हम जैसे दो लोग हैं जो हमारी बात समझते हैं। अगर इस ब्लॉग लेख्न की बात की जाये तो हमारे लिये यही संतोष का विषय है कि हम जैसे विचार वाला एक आदमी तो यहां है।
              इधर हिन्दी दिवस आ रहा है। ब्लॉग लेखन अब हमारे लिये एकाकी यात्रा हो गयी है। हिन्दी लेखन में यह दुविधा है कि अगर आप अकेले होकर लिखते हैं तो प्रचार के प्रबंधन के अभाव में आपको कोई पूछता नहीं है और अगर प्रबंधन करने जाते हैं तो लिखने की धार खत्म हो ही जाती है। हिन्दी में ब्लॉग लेखन बेपरवाह होकर ही किया जा सकता है। शुरुआती दौर में हमें एक दो मित्र ऐसे मिले जिनसे यह अपेक्षा थी कि शायद वह लंबी लड़ाई के साथी हैं पर बाद में पता लगा कि वह प्रबंध कौशल दिखाते हुए हमें अपने साथियों की भीड़ में शािमल किये हुए थे। अब शायद भीड़ बढ़ गयी तो वह उनके अगुवा होकर प्रचार अभियान में इस तरह जुटे कि हमारा नाम तक उनको याद नहीं रहा है। हिन्दी लेखन की यह दूसरी दुविधा यह है कि वही लेखक बड़ा या महान कहलाता है जिसके चार छह लेखक शागिर्द हों। हम भी किसी के शागिर्द बन जाते पर चूंकि व्यवसायिक रूप से इसका कोई लाभ हमें मिलने की संभावना नहीं लगी तो बराबरी का व्यवहार करते रहे। अखबारों में कभी हमारा नाम ब्लॉगर के रूप में दर्ज नहीं हो्रता इसलिये हमारे पाठक कभी किसी समाचार पत्र या पत्रिका ब्लॉग से संबंधित सामग्री देखकर हमारा नाम न खोजें तो अच्छा ही है। उस दिन हमारे एक दोस्त ने हमसे पूछा कि ‘‘यार तुम अंतर्जाल पर हिन्दी भाषा में इतना सारा लिखते हो पर कोई सम्मान वगैरह की खबर नहीं आती।’’
          हमने उत्तर दिया कि-‘‘एक लेखक के रूप में तुम ही क्या सम्मान देते हो कि दूसरा देगा।’’
लिखते तो हम पहले भी थे पर मानना पड़ेगा कि अंतर्जाल पर लिखते हुए हम श्रद्धेय गणेश जी भगवान की ऐसी कृपा बरसती है कि एक बार लिखना प्रारंभ करते है तो फिर रुकते नही। रचना स्वतः प्रवाहित होकर आती है। कभी कभी पुराने ब्लॉग मित्रों की याद आती है पर लेखन व्यवसाय से जुड़े उन लोगों से यह आशा करना उनके साथ ज्यादती करना है कि वह हमारे साथ जुड़े रहें या कहीं हमारी चर्चा करें।
          फेसबुक पर नयी पीढ़ी सक्रिय है और ब्लॉग लेखन में उनकी रुचि नहीं है। फिर भी जो लोग ब्लॉग लिखना चाहते हैं वह मानकर चलें कि उनकी एकाकी यात्रा होगी। हिन्दी ब्लॉग लेखन में पूरी तरह से क्षेत्रीयता तथा जातीयता उसी तरह हावी है जिस तरह पुराने समय में थी। बड़े शहर या प्रतिष्ठित प्रदेश का निवासी होने का अहंकार यहां भी लेखकों में है। इस अहंकार की वजह से लिखने की बात हम नहीं जानते पर पढ़ना कई लोगों का बिगड़ गया। पहले उनको हमारी रचनाऐं दिखती थी पर अब हम उनके लिये लापता हो गये हैं। यह कोई शिकायत नहीं है। सच बात तो यह है कि इस एकाकीपन ने हमें बेपरवाह बना दिया है। हमारी पाठक संख्या लगातार बढ़ी है। साथ ही यह विश्वास भी बढ़ा है कि जब हम कोई गद्य रचना करेंगे तो लोग उसे पूरा पढ़े बिना छोड़ेंगे नहीं। इसका कारण यह कि श्रीमद्भागवत गीता के अध्ययन ने हमें ऐसा बना दिया है कि हमारी गद्य रचनाओं में आई सामग्री कही अन्यत्र मिल ही नहीं सकती। यह सब इसी अंतर्जाल पर श्रीगीता पर लिखते लिखते ही अनुभव हुआ है। फुरसत और समर्थन के अभाव में कभी कभी कुछ बेकार कवितायें लिखते हैं तो उनमें भी कुछ ऐसा होता है कि व्याकररण की दृष्टि से अक्षम होते हुए भी सामग्री अपने भाव के कारण लोकप्रिय हो जाती है।
         ग्वालियर एक छोटा शहर है तो मध्यप्रदेश एक ऐसा प्रदेश है जिसकी प्रतिभाओं को वहीं रहते स्वीकार नहीं किया जाता। बड़े शहर में जाकर बड़े हिन्दी व्यवसायिक प्रतिष्ठानों में कथित बड़े विद्वानों की चरणसेवा किये बिना राष्ट्रीय पटल पर स्थापित होना कठिन है पर अंतर्जाल पर हमें पढ़ने वाले पाठक जानते होंगे रचनायें हमेशा ही व्यापक दायरों में सोचने वाले लोगों के हाथ से होती है। कथित हिन्दी लेखक साम सामयिक विषयों में लिखकर आत्ममुग्ध होते हैं पर आम पाठक के लिये वह कोई स्मरणीय रचना नहीं लिख पाते। हमारे ब्लॉग पर ऐसी कई रचनायें हैं जो लोग पढ़कर आंदोलित या उत्तेजित होने की बजाय चिंत्तन में गोते लगाते हैं। बहरहाल यह बकवास हमने इसलिये कि हमारे बीस ब्लॉग कुल पच्चीस लाख की पाठक/पाठ पठन संख्या पार कर कर गये हैं। इस पर हम अपने पाठक तथा टिप्पणीकर्ताओं के आभारी है जिनके प्रोत्साहन की वजह से यह सब हुआ। अब चूंकि ब्लाग लेखक मित्रों से संपर्क बंद है इसलिये उनको इस बात के लिये धन्यवाद देना व्यर्थ है क्योंकि उनको तो यह मालुम भी नहीं होगा कि हमने ब्लॉग लिखना बंद नहीं किया भले ही अखबार वगैरह में हमारा नाम नहीं देते। जय श्री राम, जय श्री कृष्ण!
लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,

ग्वालियर मध्यप्रदेश

writer and poem-Deepak Raj Kukreja “”Bharatdeep””

Gwalior, madhyapradesh

कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
poet, Editor and writer-Deepak  ‘Bharatdeep’,Gwalior

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हिंदी भाषा का महत्व और गरीब-हिन्दी व्यंग्य (hindi ka mahtav aur garib-hindi vyangya)


                14 सितंबर 2011 बुधवार को हिन्दी दिवस मनाया जाने वाला है। इस अवसर पर देश में हिन्दी बोलो, हिन्दी सुनो और हिन्दी समझो जैसे भाव का बोध कराने वाले परंपरागत नारे सुनने को मिलेंगे। प्रचार माध्यम बतायेंगे कि हिन्दी अपने देश में ही उपेक्षित है। हिन्दी को निरीह गाय की तरह देखा जायेगा भले ही वह असंख्य बुद्धिजीवियों को शुद्ध दूध, देशी की तथा मक्खन खिलाती हो। इसी दिन अनेक कार्यक्रम होंगे तो नाश्ता वगैरह भी चलेगा।
           शायद इस लेखक ने अपने ब्लागों पर कई लेखों मे खुशवंत सिंह नामक अंग्रेजी के लेखक की चर्चा की है। दरअसल उन्होंने एक बार लंदन में कहा था कि ‘ भारत में हिन्दी गरीबों की भाषा है।’ इस पर देश में भारी बवाल मचाया गया। समस्त प्रचार माध्यम राशन पानी लेकर उनके पीछे पड़ गये। उनका बयान यूं सुनाया गया कि खुशवंत सिंह ने कहा है कि हिन्दी गरीबों भाषा है। इस लेखक ने वह समाचार पढ़ा। हिन्दी को गरीब भाषा कहने पर मन व्यथित हुआ था तो एक अखबार में संपादक के नाम पत्र में उनकी खूब बखिया उधेड़ी। उसके बाद कुछ समाचार पत्रों में उनका पूरा बयान भी आया। उससे साफ हो गया कि उन्होंने हिन्दी को गरीबों की भाषा कहा है। तब भी मन ठंडा नहीं हुआ क्योंकि तब जीवन का ऐसा अनुभव नहीं था। समय ने करवट बदली। दरअसल इस प्रचार के बाद से खुशवंत सिंह के लेख हिन्दी भाषा में अनुवाद होकर छपने लगे। तब यह सोचकर हैरानी होती थी कि जिस शख्स पर यह अखबार वाले इस कदर पिल पड़े थे उनके लेख अनुवाद कर क्यों हिन्दी पाठकों के सामने प्रस्तुत कर उनको चिढ़ा रहे हैं? अब यह बात समझ में आने लगी है कि इस तरह के प्रचार से उस समय के बाज़ार प्रबंधक एक ऐसा नायक गढ़ रहे थे जिसे हिन्दी में पढ़ा जाये। उस खुशवंत सिंह को बता दिया गया होगा कि यह सब फिक्स है और अब आपकी रचनायें हिन्दी में छपा करेंगी।
        खुशवंत सिंह ने अपने उसी बयान में हिन्दी भाषा में चूहे के लिये रेट और माउस अलग अलग शब्द न होने पर अफसोस जताया था। इससे उन पर हंसी आयी थी। दरअसल वह अंग्रेजी भाषा के लेखक हैे पर उसका सही स्वरूप नहीं जानते। वह कहते है कि भारत में हिन्दी गरीबों की भाषा है यह हमने मान लिया मगर वह इस लेखक की बात-उनको हिन्दी आती नहीं और हम कोई बड़े लेखक नहीं है कि उन तक पहुंच जायेगी पर इंटरनेट पर यह संभावना हम मान ही लेते हैं कि उनके शुभचिंतक पढ़ेंगे तो उन्हें बता सकते हैं-मान लें कि अंग्रेजी भाषा इस धरती पर दो ही प्रकार के लोग लिखते और बोलते हैं एक साहब दूसरे गुलाम! जिनको अंग्रेजी से प्रेम है वह इन्हीं दो वर्गों में अपना अस्तित्व ढूंढे तीसरी स्थिति उनकी नहीं है। याद रखें यह संसार न साहबों की दम पर चलता है न गुलामों के श्रम पर पलता है। उनके अपने रिश्ते होंगे पर स्वतंत्र वर्ग वाले अपनी चाल स्वयं ही चलते हैं। स्वतंत्र वर्ग वाले वह लोग हैं जो अपनी बुद्धि से सोचकर अपने ही श्रम पर जिंदा हैं। उनका न कोई साहब है न गुलाम।
          बहरहाल हम यह तो मानते हैं कि इस देश में हिन्दी अब गरीबों की भाषा ही रहने वाली है और यहीं से शुरु होता है इसका महत्व! इंटरनेट पर हिन्दी के महत्व पर लिखे गये एक लेख पर अनेक लोग उद्वेलित हैं। वह कहते हैं कि हिन्दी का आपने महत्व तो बताया ही नहीं। उनका जवाब देना व्यर्थ है। दरअसल ऐसे लोग एक तो अपनी बात रोमन लिपि में लिखते हैं। अगर हिन्दी में लिखते हैं तो उनका सोच अंग्रेजी का है। मतलब कहंी न कहंी गुलामी से ग्रसित हैं। हम यह बात स्पष्ट करते रहते हैं कि हिन्दी अनेक लोगों को कमा कर दे रही है। अगर ऐसा नहीं है तो हिन्दी फिल्मों, समाचार पत्रों और टीवी धारावाहिकों में हिन्दी के प्रसारण प्रकाशन में अंग्रेजी शब्द क्यों घुसेड़ते हैं? अपनी बात पूरी अंग्रेजी में ही क्यों नहीं करते? हिन्दी चैनल चला ही क्यों रहे हैं? अपने चैनल में अंग्रेजी ही चलायें तो क्या समस्या है?
      नहीं! वह ऐसा कतई नहीं करेंगे! इसका सीधा मतलब है कि अंग्रेजी हमेशा हर जगह कमाने वाली भाषा नहीं हो सकती। दूसरा यह भी कि अंग्रेजी पढ़ने वाले सभी साहब नहीं बन सकते! जो साहब बनते हैं उनके हिस्से में भी ऐसी गुलामी आती है जो पर्दे के पीछे वही अनुभव कर सकते हैं भले उनके सामने सलाम ठोकने वालों का जमघट खड़ा रहता हो। आप किसी माता पिता से पूछिये कि‘‘अपने बच्चे को अंग्रेजी क्यों पढ़े रहे हैं?’
          ‘जवाब मिलेगा कि ‘‘आजकल इसके बिना काम नहीं चलता!’’
         देश के सभी लोग अमेरिका, कनाडा या ब्रिटेन  नहीं जा सकते। जायें भी तो अंग्रेजी जानना आवश्यक नहीं जितनी कमाने की कला उनके होना चाहिए। एक पत्रिका में हमने पढ़ा था कि आज़ादी से पहले एक सिख फ्रांस गया। उसे अंग्रेजी क्या हिन्दी भी नहीं आती थी। इसके बावजूद अपने व्यवसायिक कौशल से वह वहां अच्छा खासा कमाने लगा। अब हो यह रहा है कि लोगबाग अपनी भाषा से परे होकर अंग्रेजी भाषा को आत्मसात करने के लिये इतनी मेहनत करते हैं कि किसी अन्य विषय का ज्ञान उनको नहीं रहता। बस उनको नौकरी चाहिए। सच बात कहें तो हमें लगता है कि हमारी शिक्षा पद्धति में अधिक शिक्षा प्राप्त करने का मतलब है निकम्मा हो जाना। बहुत कम लोग हैं जो अंग्रेजी में शिक्षा प्राप्त करने के बाद निजी व्यवसायों में सफलता प्राप्त कर पाते हैं। उनसे अधिक संख्या तो उन लोगों की है जो कम पढ़े हैं पर छोटे व्यापार कर अपना स्वतंत्र अस्तित्व बनाये रखते हैं। अंग्रेजी में शिक्षा प्राप्त करने के बाद रोजगारी की कोई गारंटी नहीं है पर इससे एक खतरा है कि हमारे यहां के अनेक लोग परंपरागत व्यवसायों को हेय समझ कर उसे करते नहीं या उनको शर्म आती है जिसकी चरम परिणति बेरोजगार की उपाधि है।
        अंग्रेजी पढ़कर कंपनियों के उत्पादों की बिक्री करने के लिये घर घर जाने को भले ही सेल्समेनी कहा जाता हो पर अंततः पर इसे फेरी लगाना ही कहा जाता है। यह काम कम शिक्षित लोग बड़े आराम से कर जाते हैं। अलबत्ता सेल्समेन के बड़े व्यापारी बनने के संभावना क्षीण रहती है जबकि फेरीवाले एक न एक दिन बड़े व्यापार की तरफ बढ़ ही जाता है। न भी बने तो उसका स्वतंत्र व्यवसाय तो रहता ही है।
         पता नहीं हिन्दी का महत्व अब भी हम बता पाये कि नहीं। सीधी बात यह है कि हिन्दी गरीबों की भाषा है और उनकी संख्या अधिक है। वह परिश्रमी है इसलिये उपभोक्ता भी वही है। उसकी जेब से पैसा निकालने के लिये हिन्दी भाषा होना जरूरी है वह भी उसके अनुकूल। अपने अंदर हिन्दी जैसी सोच होगी तो हिन्दी वाले से पैसा निकलवा सकते हैं। उसके साथ व्यवहार में अपने हित अधिक साध सकते हैं। देखा जाये तो इन्हीं गरीबों में अनेक अपने परिश्रम से अमीर भी बनेंगे तब उनकी गुलामी भी तभी अच्छी तरह संभव है जब हिन्दी आती होगी। वैसे तो गुलामी मिलेगी नहीं पर मिल भी गयी तो क्लर्क बनकर रह जाओगे। उसकी नज़रों में चढ़ने के लिये चाटुकारिता जरूरी होगी और वह तभी संभव है जब गरीबों की भाषा आती होगी। अंग्रेजी अब बेरोजगारों की भाषा बनती जा रही है। साहबनुमा गुलामी मिल भी गयी तो क्या? नहीं मिली तो बेरोजगारी। न घाट पर श्रम कर सके न घर के लिये अनाज जुटा सके। इतना लिख गये पर हमारे समझ में नहीं आया कि हिन्दी का महत्व कैसे बखान करें। अब यह तो नहीं लिख सकते कि देखो हिन्दी में इंटरनेट पर लिखकर कैसे मजे ले रहे हैं? यह ठीक है कि इसे गरीबों की भाषा कह रहे हैं। हम इस लिहाज से तो गरीब हैं कि हमें अंग्रेजी लिखना नहीं आती। पढ़ खूब जाते हैं। वैसे लिखना चाहें तो अंग्रेजी में सौ पचास लेखों के बाद अच्छी अंग्रेजी भी लिखने लगेंगे पर यकीनन उसमें मजा हमको नहीं आयेगा। वैसे हिन्दी दिवस पर प्रयास करेंगे कि हिन्दी का महत्व जरूर बतायें। यह लेख तो इसलिये लिखा क्योंकि हिन्दी दिवस के नाम से सर्च इंजिनों पर हमारे पाठ खूब पढ़े जा रहे हैं।
कवि, लेखक और संपादक-दीपक “भारतदीप”,ग्वालियर 
poet, writer and editor-Deepak “BharatDeep”,Gwalior

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