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अल्मारी में बंद किताब-हिन्दी कविताये


अमीरों के सिक्कों पर सारा संसार चल रहा है,

राजा का खजाना भरता उनकी भेंट से

तो गरीब का पेट उनकी चाकरी से पल रहा है।

कहें दीपक बापू अमीरों के कई इंसानी बुत प्रायोजित है

कोई उनके लिये बनता है पैसा लेकर खलनायक,

कोई उपहार लेकर बन जाता नायक,

जिसे कुछ नहीं मिलता

वह खाली बैठा हाथ मल रहा है

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स्वांत सुखाय शब्द रचना व्यर्थ हो जाती है,

सिक्के मिलें तो अर्थ खो जाती है।

कहें दीपक बापू अपना अपना नजरिया है

प्रायोजन से बाज़ार में सज गयी किताबें ढेर सारी,

अल्मारी में बंद है इस इंतजार में कि कब आयेगी

पाठक की नज़र में उसकी बारी,

इनमें कुछ ही पुरस्कारों का

बोझ भी ढो जाती हैं।

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 कवि एवं लेखक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’

ग्वालियर, मध्य प्रदेश

 

कवि, लेखक और संपादक-दीपक “भारतदीप”,ग्वालियर 

poet, writer and editor-Deepak “BharatDeep”,Gwalior

http://rajlekh-patrika.blogspot.com

यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है।
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