सपना सभी का होता है
मगर राज सिंहासन तक
चतुर ही पहुंच पाते हैं।
बादशाहों की काबलियत पर
सवाल उठाना बेकार हैं
दरबार में उनकी
अक्लमंद भी धन के गुलाम होकर
सलाम बजाने पहुंच जाते हैं।
कहें दीपक बापू इंसानों ने
अपनी जिंदगी के कायदे
कुदरत से अलग बनाये,
ताकतवरों ने लेकर उनका सहारा
कमजोरों पर जुल्म ढहाये,
हुकुमतों के गलियारों में
जज़्बातों के कातिल भी पहरेदारी
करने पहुंच जाते हैं।
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भोजन जल्दी खाना है
या पकाना
पता नहीं
मगर जहर तो न पकाओ।
दुनियां में अधिक खाकर
आहत होते हैं लोग
भूख से मरने का
भय दिल में न लाओ।
कहें दीपक बापू जिंदगी में
पेट भरना जरूरी है
जहर खायेंगे
यह भी क्या मजबूरी है
घर की नारी के हाथ से बने
भोजन के मुकाबले
कंपनी दैत्य के विषैले
चमकदार लिफाफे में रखे
प्रसाद को कभी अच्छा न बताओ।
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लेखक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’
लश्कर, ग्वालियर (मध्य प्रदेश)
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
hindi poet,writter and editor-Deepak ‘Bharatdeep’,Gwalior
http://dpkraj.blgospot.com
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