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कौटिल्य का अर्थशास्त्र-वस्तु छिन जाने का दुःख ज्ञान से ही शांत होता है (kautilya ka arthshastra-vastu aur Gyan)


       क्रोध के दुर्गुण से निपटने का उपाय अपने अंदर सहनशीलता का गुण पैदा करना ही है। जहां दो लोग आपस में क्रोध करते हैं उनका मन और बुद्धि संतप्त हो जाती है। अंततः वह स्वयं को ही ही हानि पहुंचाते हैं। अगर हम हिंसक घटनाओं को देखें तो लोगों पर तरस आता है। छोटी छोटी बातों पर लोग आपस में लड़ पड़ते हैं। यहां तक कि उनको अपनी जान से हाथ धो बैठते हैं।
          कबीर दास जी ने एक जगह कहा भी है कि ‘न सूत न कपास, जुलाहों में लट्ठमलट्ठा’। जब हम अपने समाज की सांस्कृतिक विरासत की बात करते हैं तो इस बात को भूल जाते हैं कि हमारे यहां परिवार तथा समाज में जरा जरा बात पर लोग आपस में लड़ पड़ते हैं। कई बार तो यह होता है कि लोग एक दूसरे की जान ले लेते हैं और बाद में जब उनके विवाद के विषय का पता चलता है तो लगता है कि वह तो एकदम महत्वहीन था और उसमें सार तो कुछ था ही नहीं। यह सब क्रोध के दुर्गुण का परिणाम था।
                          कौटिल्य का अर्थशास्त्र में कहा गया है कि
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                       अमर्षोप्रृहीतानां मन्युसन्तप्तचेतसाम्।
                     परस्परपकारेण पुंसां भवति विग्रह।।
           ‘‘दोनों और क्रोध होने पर परस्पर संतप्त चित्त वाले मनुष्य अपकार को प्राप्त होते हैं। पुरुषों में यह विग्रह सदैव उपस्थित होता है।
                    यानापहारस्मभूते ज्ञानशक्तिविधातजे
                     समस्तदर्थश्वांगन क्षान्त्या चोपेक्षणेन च।।
         “ज्ञान या ज्ञान शक्ति के अभाव में वस्तु के हरण का विग्रह प्राप्त होता है वह ज्ञान शक्ति के उपयोग से ही शांत होता है या फिर अपने अंदर सहनशीलता लाने पर ही शांति मिलती है।”
          यह जीवन तो नश्वर है और संसार के अनेक पदार्थ तो प्राणहीन हैं पर उनका आकर्षण मनुष्य के मन को बांधता है। सोना, चांदी, हीरा और जवाहरात टके के मोल नहीं है पर मनुष्य के मोह ने उनको कीमती बना दिया है। इन पदार्थों का वह संचय करता है और अगर कहीं उनसे विग्रह हो तो उसे पीड़ा होती है। इनको लेकर लोगों में आपसी विवाद होते हैं। लूटपाट तक हो जाती है। अपनी वस्तु के छिन जाने पर आदमी खिन्न हो जाता है यह जानते हुए कि यह मायारूपी लक्ष्मी तो चंचला है। अपनी वस्तु खोने या छिन जाने पर आदमी को निराशा से बचने के लिये अपने अंदर सहनशीलता के गुण की तरफ देखना चाहिए। ऐसे विग्रह होने पर जब हम अपने अंदर सहनशीलता के तत्वा को निहारेंगे तो मन शांत हो जायेगा।

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संकलक, लेखक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
writer and editor-Deepak Raj Kukreja ‘Bharatdeep’, Gwalior
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