रहिमन जगत बडाई की, कूकुर की पहिचानि
प्रीती करे मुख छाती, बैर करे तन हानि
कविवर रहीम कहते हैं की अपनी बडाई सुनकर फूलना और आलोचना से गुस्सा हो जाना कोई अच्छी बात नहीं है क्योंकि यह कुत्ते का गुण है. उसे थोडा प्यार करो तो मालिक को चाटने लगता है और फटकारने पर उसे काट भी लेता है.
भावार्थ-संसार में कई प्रकार के लोग हैं और कुछ लोग ऐसे होते हैं कि जो चापलूसी कर काम निकालते हैं ऐसे लोगों से बचने का प्रयास करना चाहिए. उनकी प्रशंसा पर फूल जाना मूर्खता है क्योंकि उन्हें तो काम निकलना होता है और बाद में हमें मूर्ख भी समझते हैं कि देखो कैसे काम निकलवाया.
रहिमन जंग जीवन बडे, काहू न देखे नैन
जाय दशानन अछत ही,कापी लागे काठ लेन
कवि रहीम कहते हैं कि संसार के बड़प्पन को कोई व्यक्ति अपनी आँखों से नहीं देख सकता. रावण को अक्षत जाना जाता था, परन्तु वानरों ने उसके गढ़ को नष्ट कर दिया.
भावार्थ-अक्सर यह भ्रम होता है यहाँ सब कुछ कई बरसों तक स्थिर रहने वाला है पर यहाँ सब एक दिन बिखर जाता है. इसलिए अपने अन्दर किसी प्रकार का अहंकार नहीं पालना चाहिए. न ही यह भ्रम पालना चाहिए कि कोई हमसे छोटा है और यह कुंठा भी मन में नहीं लाना चाहिऐ कि कोई हमसे बड़ा है.