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नया आईडिया-लघु हिन्दी हास्य व्यंग्य (new idea-laghu hindi hasya vyangya or short comic satire article)


     उस्ताद ने शागिर्द से कहा-“मेरी तौंद बहुत बढ़ गई है, इसे कम करना होगा, वरना लोग मेरे उपदेशों पर यकीन नहीं करेंगे जिसमें मैं उनको कम खाने गम खाने और कसरत करो तंदुरुस्ती पाओ जैसी बातें कहता हूँ। आजकल मोटे लोगों को कोई पसंद नहीं करता, नयी पीढ़ी के लड़के लड़कियां मोटे लोगों को बूढ़ा और बीमार समझते हैं। सोच रहा हूँ कल सुबह से सैर पर जाना शुरू करूँ।”
     शागिर्द ने कहा-“उस्ताद सुबह जल्दी उठने के लिए रात को जल्दी सोना पड़ेगा। जल्दी सोने के लिए सोमरस का सेवन भी छोडना होगा।”
    उस्ताद ने कहा-“सोमरस का सेवन बंद नहीं कर सकता, क्योंकि उसी समय मेरे पास बोलने के ढेर सारे आइडिया आते हैं जिनके सहारे अपना समाज सुधार अभियान चलता है। ऐसा करते हैं सोमरस का सेवन हम दोनों अब शाम को ही कर लिया करेंगे।”
     शागिर्द ने कहा-“यह संभव नहीं है क्योंकि आपके कई शागिर्द शाम के बाद भी देर तक रुकते हैं, उनको अगर यह इल्म हो गया कि उनके उस्ताद शराब पीते हैं तो हो सकता है कि वह यहाँ आना छोड़ दें।”
    उस्ताद ने कहा-“ऐसा करो तुम सबसे कह दो कि हम अपना चित्तन और मनन का कार्यक्रम बदल रहे हैं इसलिए वह शाम होने से पहले ही चले जाया करें।”
    उस्ताद कुछ दिन तक अपने कार्यक्रम के अनुसार सुबह घूमने जाते रहे पर पेट था कि कम होने का नाम नहीं ले रहा था। उस्ताद ने शागिर्द से अपनी राय मांगी। शागिर्द बोला-“उस्ताद आप देश में फ़ेल रही महंगाई रोकने के लिए अनशन पर बैठ जाएँ। इससे प्रचार और पैसे बढ्ने के साथ आपका पेट भी कम होगा।”
    उस्ताद ने कहा-“कमबख्त तू शागिर्द है या मेरा दुश्मन1 मैं पतला होना चाहता हूँ,न कि मरना।
शागिर्द बोला-“मैं तो आपको सही सलाह दे रहा हूँ। सारा देश परेशान है। इससे आपको नए प्रायोजक और शागिर्द मिल जाएंगे। फिर आपका स्वास्थ भी अच्छा हो जाएगा।”
      उस्ताद ने कहा-“हाँ और तू बैठकर बाहर सोमरस पीना, मैं उधर अपना गला सुखाता रहूँ।”
शागिर्द ने कहा-“ठीक है,फिर आप ऐसा करें की शाम को कहीं अंदर घुस जाया करें। तब मैं बाहर बैठकर लोगों को भाषण वगैरह दिया करूंगा। अलबत्ता मेरे यह शर्त है कि मैं आपसे पहले ही जाम पी लूँगा।”
      उस्ताद ने पूछा-“वह तो ठीक है पर शराब पीकर खाली पेट कैसे सो जाएंगे?
    शागिर्द ने कहा-” आप शराब कोई नमकीन के साथ थोड़े ही पीएंगे, बल्कि काजू और सलाद भी आपको लाकर दूँगा। उस समय हमारे पास ढेर सारा चंदा होगा। वैसे आप चाहें तो कभी कभी भोजन में मलाई कोफता के साथ रोटी भी खा लेना। अपने तो ऐश हो जाएंगे।”
      उस्ताद ने कहा-“पर इससे मेरी तौंद कम नहीं होगीc”
     शागिर्द ने कहा- आप अब अभी तक तौंद करने के मसले पर ही सोच रहे हैं? अरे, आप तो नए शागिर्द बनाने के लिए ही यह सब करना चाहते हैं न! जब नया आइडिया आ गया तो फिर पुराने पर सोचना छोड़ दीजिए।”
        उस्ताद ने मुंडी हिलाते हुए कहा-“हूँ, हूँ !”
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर

क्रिकेट के साथ बल्ले बल्ले और फिक्सिंग मिक्सिंग चालू आहे-हिन्दी हास्य व्यंग्य (ramance with cricket-hindi hasya vyangya)


बल्ले बल्ले और फिक्सिंग मिक्सिंग-हिन्दी हास्य व्यंग्य
लेखक -दीपक भारतदीप
आखिर क्रिकेट में चल क्या रहा है? बल्ले बल्ले कि फिक्सिंग मिक्सिंग! सुबह दो चैनल अपने कार्यक्रम इस तरह प्रस्तुत कर रहे थे जैसे कि क्रिकेट इस देश का जीवन हो। उनकी प्रस्तुति इस तरह की थी जैसे पहले नौटंकी वालों के ढिंढोरची ढोलक बजाकर कहते थे कि ‘देखो, देखो आपके शहर में आ गयी नौटंकी। कल से शुरु!’
दूसरी तरफ दो चैनल बता रहे थे कि विश्व कप प्रतियोगिता में सात मैच फिक्स होने का संदेह है। दो सटोरिये घूमकर खिलाड़ियों को फिक्स कर रहे हैं। उनके लिये ‘क्रिकेट के गद्दार’ शब्द का उपयोग किया गया। पाकिस्तान, वेस्टइंडीज और आस्ट्र्रेलिया के खिलाड़ियों की तरफ उंगली उठाई। बीसीसीआई की टीम जिसे टीम इंडिया बताकर क्रिकेट में देशप्रेम की भावना को उबारा जा रहा है उसके खिलाड़ियों की तरफ कोई संकेत नहीं! मतलब सभी पाक साफ हैं। हां होंगे! जिन दो खिलाड़ियों पर क्रिकेट मैच फिक्सिंग का आरोप लगाकर उन पर आजीवन क्रिकेट खेलने की सजा दी गयी वह अब विशेषज्ञ की भूमिका में हैं। उनके इतिहास की चर्चा से टीवी चैनल कतराते हैं क्योंकि वह आजकल उनके स्टूडियो में जो शोभायमान हैं। वैसे देखा गया है जिस पर क्रिकेट खेलने पर प्रतिबंध लगता है उसे प्रचार माध्यम भी अपने कार्यक्रमों से बहिष्कृत कर देते हैं, पर अब सब चलने लगा है। पाकिस्तान का एक फिक्सर भी आजकल भारत में विशेषज्ञ बनकर घूम रहा है।
एक टीवी चैनल में उद्घोषक ने मजेदार बात कही कि ‘जिन पत्रकारों पर फिक्सिंग में संलिप्त होने का संदेह है वह खिलाड़ियों से बाकायदा मिल रहे हैं।’
अब हम उनसे कैसे पूछें कि ‘जिन खिलाड़ियों पर मैच फिक्सिंग के आरोप प्रमाणित हो चुके हैं वह उनके स्टूडियो में क्या कर रहे हैं?’’
कुछ लोग संशय में हैं कि आखिर क्रिकेट को क्या समझें? खेल या जुआ! हम दोनों से परे तीसरी बात कहते हैं कि क्रिकेट अब एक व्यापार है। व्यापार मतलब कि उसमें एक सीमा तक छल कपट जायज है। फिक्सिंग भी उसमें शामिल है। हम फिक्सिंग वगैरह को लेकर देशद्रोह या गद्दार जैसा शब्द उपयोग नहीं करते। सीधी सी बात है कि जब तुम्हें मालुम है कि सभी न हों पर कोई भी मैच फिक्स हो सकता है तो काहे देख रहे हो क्रिकेट!
आजकल हम क्रिकेट पर लिखते अधिक बोलते ज्यादा हैं! कहीं क्रिकेट की चर्चा हो जाये तो कभी कभार पूछ लेते हैं कि ‘जनाब, यह फिक्सिंग का क्या चक्कर है?’
लोग आस्ट्रेलिया, पाकिस्तान और वेस्टइंडीज के खिलाड़ियों पर शक करते हैं पर अपने देश के क्रिकेट क्लब बीसीसीआई की टीम के खिलाड़ियों को पवित्र मानते हैं। उनकी नज़र में तो केवल क्रिकेट खिलाड़ी ही राष्ट्र की पहचान हैं जिन पर लगी कालिख उनके मन में बैठे राष्ट्रप्रेम को तकलीफ दे सकती है। दरअसल हमारे देश का हर इंसान भारी तकलीफ में जी रहा है। वह सुंदर चीजें, व्यक्ति तथा हालत केवल सपने में देखता है और फिर अपने अंदर बहुत सारे भ्रम पाल लेता है जिनके टूटने का भय उसे हमेशा ही रहता है। ऐसे में अगर हम कह दें कि ‘हमने सुना है क्रिकेट के अब अतंर्राष्ट्रीय मैच फिक्स होते हैं तो लोग ऐसे देखते हैं जैसे कि कोई विदेशी या मूर्ख आदमी बोल रहा है।
हम देखते हैं कि कड़वी सच्चाई से उनकी आखों की चमक कम हो जाती है यह सोचकर कि कहीं यह बात वाकई सच तो नहीं है। लोग अपने देश के क्रिकेट क्लब बीसीसीआई को ऐसे मानता है जैसे कि वह देश की सरकार है जो बिना किसी दबाव के सारे काम करती है। दुनियां की सबसे अमीर क्रिकेट संस्था बीसीसीआई प्रायोजकों की दम पर है जिनके पीछे कंपनियां हैं। कुछ ए हैं तो कुछ बी और कुछ सी। यह विज्ञापन देने वाली कंपनियंा हैं जिनके प्रचार के लिये बनी फिल्मों में क्रिकेट खिलाड़ी अभिनयक कर चुके होते हैं। संदेह किया जाता है कि यह अपने उत्पाद के प्रचार मॉडलों को खिलाड़ी के रूप में टीमो के लिये फिक्स करती हैं। एक डी कपंनी भी है जिस पर आरोप है कि वह तो खेल ही फिक्स करती है। इस कंपनी को तो कहना ही क्या? वह देश की नहीं है और कार्यकर्ता देश के ही होते हैं जो इतनी आसानी से नहीं मिलते।
लोग हैरान हैं। क्या सच, क्या झूठ! एक मित्र ने पूछा-‘आखिर बताओ, क्या सच समझें? यह चैनल वाले तो कभी बल्ले बल्ले तो कभी फिक्सिंग फिक्सिंग करते हैं। हां, अपने देश के खिलाड़ियों पर सभी खामोश हैं, इसे क्या समझें!’
हमने उससे कहा कि ‘कम से कम एक बात अच्छी है कि वह बल्ले बल्ले के बाद कम से कम फिक्सिंग की बात तो करते हैं। अब यह जरूरी है कि वह निष्कर्ष प्रस्तुत करें! यह उनका काम नहीं है। तुम स्वयं देखो और देखकर तय करो कि देखना है कि नहीं देखना! जहां तक बीसीसीआई की टीम जिसे तुम देश की मान रहे हो उस पर खामोश रहना ही बेहतर हैं। भला कोई अपने परिवार के बच्चों की बुराई कोई बाहर कहकर कोई उनके विरुद्ध दुष्प्प्रचार करता है? हां, दूसरे परिवार के बच्चों की बुराई कर अपने बच्चों को यह हर कोई समझाता है कि वह उससे बचें।’
बहरहाल यह बल्ले बल्ले और फिक्सिंग मिक्सिंग का मैच अब चालू आहे।
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जो बहलाये वही गुरु-हिन्दी कविता (bahlane wala guru-hindi kavita)


लोगों को जो धर्म के नाम पर बहलाये
वह धर्म गुरु बन जायेगा,
अपनी कमर को चाहे जैसे लचकाये
वह अभिनेता बन जायेगा,
मुखौटा लगाये बुत की तरह कुर्सी पर सज जाये
वह शासक बन जायेगा,
बशर्ते किसी दौलतमंद को यह बताये
कि उसका बंदर बन जायेगा,
वैसे नाचेगा, उसका पैसा जैसा नचायेगा।
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कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com

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लुटेरों का वजूद नायक जैसा बताया-हिन्दी व्यंग्य कविता


ऊंचे सिंहासन पर बैठने से
चरित्र ऊंचा नहीं हो जाता,
अगर हो इंसान ईमानदार तो
ऊंचा सिंहासन नसीब में नहीं आता।
पर मजबूरी है चारणों की जो स्तुति करते हैं,
शब्दों में स्वामी के काल्पनिक गुण भरते हैं,
ज़माने की मजबूरी कहें,
या कुदरत की मंजूरी कहें,
सिंहासन पर बैठे राजा का
फरिश्ते जैसा दिखना जरूरी है,
शैतान भी आकर बैठ जाये तो
उसको ईमानदार बताना मज़बूरी है
शायद इसलिये ही चंद टुकड़ों की खातिर
लिखे गये चमत्कारी अफसाने
दिखाये कातिलों के बहादुरी के कारनामे
लूट लिया जिन्होंने जमाने को
पर नायकों जैसा उनका वजूद बताया जाता।
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कवि लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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कुछ भ्रम, कुछ सत्य- हिन्दी हास्य व्यंग्य ( Some confusion, some truth – Hindi comedy satire)


इस देश में भ्रम भी सच की तरह बिकता है यह तो बहुत समय से देखते आ रहे है पर इस कदर विवेकवान और पढ़े लिखे लोग भी वाद और नारों की बाढ़ में बह सकते हैं यह कभी सोचा नहीं था। टीवी चैनल,अखबार और अंतर्जाल पर कई ऐसी घटनाओं की विवेचना देखता हूं जो यथार्थ से परे केवल कल्पना या झूठ पर आधारित होती हैं।

बात शुरु करें ‘चक दे इंडिया फिल्म से’। उसका गाना बहुत हिट हुआ और जहां देखों वही गाना बज रहा है। फिल्म में दिखाया गया था कि भारत की महिला टीम विश्व कप विजेता बन जाती है। ऐसा कभी नहीं हुंआ पर फिल्म पर ऐसी बहस हो रही थी जैसे कि कोई वास्तविक घटना हो। सच बात तो यह है कि भारत ने पिछले पच्चीस वर्ष में किसी भी खेल में विश्व कप नहीं जीता था पर लोग ऐसे झूम रहे थे कि गोया कि वास्तव में भारत ने विश्व कप जीत लिया हो। उस दौरान कहीं भारतीय क्रिकेट टीम कोई मैच जीत लेती थी तो बस यही गाना बजता था। भारतीय क्रिकेट टीम 1906 में जब विश्व खेलने जा रही थी तब उसके ऐसे प्रचार हुआ कि जैसे वह विश्व कप जीत कर लाई हो।

अभी हाल ही में स्लमडाग मिलेनियर फिल्म बनी है। वह एक काल्पनिक कथा है-और गरीब लड़के के अमीर बनने की अनेक कहानियों पर हमारे देश में फिल्म बनी है- पर इस फिल्म पर ऐसे बहस हो रही है जैसे कि वास्तव में कोई गंदी बस्ती का लड़का अमीर बन गया हो।
हमारे देश में ‘फिल्मों’’ और उर्दू शायरों ने इश्क को ऐसी आराधना के रूप में स्थापित किया है जिसमें एक स्त्री पुरुष का प्रेम ही इस सृष्टि का अंतिम बताया जाता है। इसमें स्त्री को तो जीवन में एक बार वह भी युवावस्था में ही प्रेम करने की इजाजत है पर पुरुष को बाल बच्चे और पत्नी जीवित रहते हुए दूसरा विवाह करने की इजाजत है। उमर का पुरुष के लिये कोई बंधन नहीं है।
वैसे तो दुनियां कोई भी धर्म अपनी स्त्री को एक विवाह करने की इजाजत देता है पर पुरुष के लिये कोई बंधन नहीं है। हां, कुछ देशों ने ऐसे कानून बनाये हैं जिसमें किसी धर्म विशेष के पुरुषों को एक ही विवाह करने की इजाजत है। अपने देश में ही केवल एक ही धर्म के लोगों को चार विवाह करने की छूट है पर बाकी धर्म वालों की इसकी इजाजत नहीं है। ऐसे में हुआ यह है कि फिल्मों के एक दो अभिनेताओं ने धर्म बदल कर पहली पत्नी को तलाक दिये बिना ही दूसरा विवाह कर लिया। बस उससे देश में ऐसी परंपरा शुरु हुई। प्रचार माध्यमों में सक्रिय लोग स्त्रियों के कल्याण के लिये बहुत सक्रिय रहते हैं पर इश्क ही है इबादत के नारे में वह ऐसे लोगों का समर्थन करते हैं जो अपनी पत्नी को बेसहारा छोड़कर दूसरी के साथ हो जाते हैं। तब इन प्रचार माध्यमों को बस इश्क दिखाई देता है। आदमी की पहली पत्नी तो उनके लिये परिदृश्य मे रहने वाली एक निर्जीव वस्तु की तरह हो जाती है।

अभी कुछ दिनों पहले ही एक घटना हुई थी जिसमें आदमी ने धर्म बदलकर दूसरा विवाह कर लिया। उसकी पत्नी और युवा बच्चे भी हैं पर प्रचार माध्यम और बुद्धिजीवियों ने इस इश्क की कथित दास्तान पर खूब लिखा। समाज को हजारों गालियां दी। उस आदमी के पूरे परिवार को इश्क का दुश्मन बताया तब यह भी विचार नहीं किया कि उसकी पहली पत्नी और बच्चों के मन पर ऐसे प्रचार से क्या गुजरेगी? अब सुनने में आया कि उस आदमी की दूसरी पत्नी ने आत्महत्या का प्रयास किया। ऐसे में कुछ बुद्धिजीवी और लेखक -जिसमें महिलायें भी शामिल हैं-फिर इस बात पर बहस कर रहे हैं कि किस तरह एक स्त्री पूरे समाज से संघर्ष कर रही है-वह उनके लिये लिये नायिक बन गयी है। सभी उसे क्रांतिकारी साबित करने में लगे हैं पर पहली पत्नी और बच्चों के जीवन पर प्रकाश उालने के लिये न तो उनके पास शब्द हैं और न ही समय। गनीमत है किसी ने उनको खलनायक बनाने का प्रयास नहीं किया। अगर इस तरह प्रकरण चला तो हो सकता है कि प्रचार माध्यम इश्क को पवित्र बनाने के लिये पहली पत्नी और बच्चों को खलनायक ही घोषित करने वाली कहानियां बनाने लगें।

भई, हम तो कहते हैं कि अगर इतना ही इश्क का मोह है तो क्यों नहीं यह मांग करते हो कि सभी धर्मो में स्त्री पुरुषों को चाहे जब शादी और तलाक लेने के लिये आसान या बिना तलाक लिये दोनों प्रकार के जीवों-मनुष्यों में स्त्री पुरुष के लिये ही कानून बनते हैं- को ही चाहे जितने विवाह करने का कानून बनाया जाये। अगर स्त्री को अधिक अधिकार नहीं देना तो सभी धर्मों के पुरुषों को ही अधिक विवाह की आजादी देने की मांग तो की ही जा सकती है। इश्क को इबादते मानने वाले ऐसे कानून का विरोध यह कहकर करेंगे कि इससे तो दूसरा विवाह करने वाले पुरुष की स्त्रियां असहाय हो जायेंगी? तुब उनके इश्क का नारा छोड़कर वह प्रगतिवाद का विषय पकड़ने लगते हैं मगर जिस आदमी ने धर्म बदल कर दूसरा विवाह किया है उसकी पहली पत्नी का क्या? तब वह फिर इश्क तो इश्क है के नारे लगाने लगेंगे।
मजे की बात यह है कि पुरुष बुद्धिजीवी और लेखक ही नहीं महिलायें भी दूसरी बीबी के समर्थन में खड़ी हैंं। उन्हें उस क्रांतिकारी दूसरी पत्नी से हमदर्दी है। ऐसे में जो पहली पत्नी और बच्चों की बात करेगा तो वह उनके गुस्से का शिकार हो जायेगा। सभी पुरुषों को इश्क पर चलने की आजादी दिलाने की बात करो तो यही सब लोग बवाल मचा देंगे। ऐसे में सोचते सोचते दिमाग में भ्रम हो जाता है कि आखिर सही रास्ता क्या है? पहली पत्नी जिसने अपना पूरा जीवन एक आदमी के लिये गुजार दिया। उसके बच्चों को जन्म दिया। जब वह बच्चे बड़े हुए और पिता के सहारे आगे बढ़ने के उनको आवश्यकता हुई तब वह दूसरा विवाह कर बैठ गया। उस पर कोई नहीं लिखता।
इन सब बातों को देखकर यह कहना ही पड़ता है कि हमारा आध्यात्मिक ज्ञान वाकई संपूर्ण है और उसको प्रमाणित करने के लिये और बहर बेकार है क्योंकि े सारे विश्व में उसकी मान्यता है। जैसे कमल कीचड़ में और गुलाब कांटों में खिलता है वैसे ही सच की खोज वहीं होती है जहां भ्रम होता है। हमारे मनीषियों ने जीवन के रहस्यों को जानकर जिस सत्य को इस अध्यात्मिक ज्ञान के रूप में प्रस्तुत किया उसके लिये उनका आभारी नहीं होना चाहिये क्योंकि उनको यहां हमेशा ही भ्रम मेंे रहने वाला एक बड़ा समाज मिल गया जिससे सीखकर वह अनुसंधान और प्रयोग कर सके। बल्कि उन ऋषियों,मुनियों और तपस्वियों को इस समाज का आभार मानना चाहिये जिन्होंने उनको अपने भ्रम के कारण सत्य की खोज करने के के लिये प्रेरित किया। यह ज्ञान निरंतर बृहद रूप लेता गया पर इसका कारण भी यहां के लोग हैं क्योंकि भ्रम में रहने की उनकी आदत ही इसके लिये जिम्मेदार है। गनीमत है कि उन महान ऋषियों और तपस्वियों द्वारा प्रदाय अध्यात्मिक ज्ञान की वजह से अनेक लोग उसके अध्ययन के कारण भ्रम में आने से बचे रहते हैं वरना तो पूरे देश का हाल यही होता कि सूर्य की बजाय चंद्रमा की रौशनी को वास्तविक मान लिया जाता। इस भ्रम का निवारण कोई आसान नहीं होता। बहरहाल देश में इतना बड़ा भ्रम भी चलता है यह आश्चर्य की बात है। टीवी चैनल, समाचार पत्र पत्रिकायें और अंतर्जाल पर पढ़ते हुए तो कई बार अपने आप पर भी संदेह होता है कि हम ही तो कहीं गलत नहीं कह रहे? कहीं हम तो गलत सवाल नहीं उठा रहे? अतर्जाल पर यही सोचकर लिख रहे हैं कि हम तो फ्लाप है और पढ़ने वाले अधिकतर ब्लाग लेखक अपने मित्र हैं इसलिये अगर वाकई हम भ्रम में है तो इसे हमारी मूर्खता मानकर चुप्पी साघ लेंगे। जो अन्य पाठक हैं वह भी इसे मूर्खतापूर्ण बात कहकर भूल जायेंगे। वैसे पाठकों से कभी कोई किसी पाठ पर प्रतिकूल टिप्पणी नहीं मिली इसलिये यह लिखने का साहस कर सके। अब तो इस बात की आशंका है कि इश्क की इबादत को संपूर्णता प्रदान करने वाली दूसरी शादी करने वाली कहानियों में बिचारी पहली पत्नी और बच्चों को खलनायक साबित करने की परंपरा न बन जाये।
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बहु ने लिखी कविताएँ-व्यंग्य शायरी


नयी बहू कवियित्री है
जब सास को पता लगी
तो उसकी परीक्षा लेने की बात दिमाग में आयी
उसने उससे अपने ऊपर कविता लिखने को कहा
तो बहू ने बड़ी खुशी से सुनाई
‘मेरी सास दुनियां में सबसे अच्छी
जैसे मैंने अपनी मां पायी
बोलना है कोयल की तरह
चेहरा है लगता है किसी देवी जैसा
क्यों न सराहूं अपना भाग्य ऐसा
चरण धोकर पीयूं
ऐसी सास मैंने पायी’

सास खुश होकर बोली
‘अच्छी कविता करती हो
लिखती रहना
मेरी भाग्य जो ऐसी बहू पाई’

दो साल बाद जब वह
कवि सम्मेलन जाने को थी तैयार
सास जोर से चिल्लाई
‘क्या समझ रखा है
घर या धर्मशाला
मुझसे इजाजत लिये बिना
जब जाती और आती हो
भूल जाओं कवि सम्मेलन में जाना
हमें तुम्हारी यह आदत नहीं समझ मंें आयी’

गुस्से में बहू ने अपनी यह कविता सुनाई
‘कौन कहता है कि सास भी
मां की तरह होती है
चाहे कितनी भी शुरू में प्यारी लगे
बाद में कसाई जैसी होती है
हर बात में कांव कांव करेगी
खलनायिका जैसा रूप धरेगी
समझ लो यह मेरी आखिरी कविता
जो पहली सुनाई थी उसके ठीक उलट
अब मत रोकना कभी
वरना कैसिट बनाकर रोज
सुनाऊंगी सभी लोगों को
तुम भूल जाओ अपना रुतवा
मैं नहीं छोड़ सकती कविताई’

सास सिर पीटकर पछताई
‘वह कौनसा मुहूर्त था जो
इससे कविता सुनी थी
और आगे लिखने को कहा था
अब तो मेरी मुसीबत बन आई
अब कहना है इससे बेकार
कहीं सभी को न सुनाने लगे
क्या कहेगा जब सुनेगा जमाई
वैसे ही नाराज रहता है
करने न लगे कहीं वह ऐसी कविताई

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कवि एंव संपादक-दीपक भारतदीप

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कभी तृष्णा तो कभी वितृष्णा-व्यंग्य कविता



कभी तृष्णा तो कभी वितृष्णा
मन चला जाता है वहीं इंसान जाता
जब सिमटता है दायरों में ख्याल
अपनों पर ही होता है मन निहाल
इतनी बड़ी दुनिया के होने बोध नहीं रह जाता
किसी नये की तरह नजर नहीं जाती
पुरानों के आसपास घूमते ही
छोटी कैद में ही रह जाता

अपने पास आते लोगों में
प्यार पाने के ख्वाब देखता
वक्त और काम निकलते ही
सब छोड़ जाते हैं
उम्मीदों का चिराग ऐसे ही बुझ जाता

कई बार जुड़कर फिर टूटकर
अपने अरमानों को यूं हमने बिखरते देखा
चलते है रास्ते पर
मिल जाता है जो
उसे सलाम कहे जाते
बन पड़ता है तो काम करे जाते
अपनी उम्मीदों का चिराग
अपने ही आसरे जलाते हैं जब से
तब से जिंदगी में रौशनी देखी है
बांट लेते हैं उसे भी
कोई अंधेरे से भटकते अगर पास आ जाता
………………………………

रोटी का इंसान से बहुत गहरा है रिश्ता-हिंदी शायरी


पापी पेट का है सवाल
इसलिये रोटी पर मचा रहता है
इस दुनियां में हमेशा बवाल
थाली में रोटी सजती हैं
तो फिर चाहिये मक्खनी दाल
नाक तक रोटी भर जाये
फिर उठता है अगले वक्त की रोटी का सवाल
पेट भरकर फिर खाली हो जाता है
रोटी का थाल फिर सजकर आता है
पर रोटी से इंसान का दिल कभी नहीं भरा
यही है एक कमाल
………………………
रोटी का इंसान से
बहुत गहरा है रिश्ता
जीवन भर रोटी की जुगाड़ में
घर से काम
और काम से घर की
दौड़ में हमेशा पिसता
हर सांस में बसी है उसके ख्वाहिशों
से जकड़ जाता है
जैसे चुंबक की तरफ
लोहा खिंचता

…………………………………..

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शब्दों के फूल कभी नहीं मुरझाये-हिंदी शायरी


कुछ पाने के लिये

दौड़ता है आदमी इधर से उधर

देने का ख्याल कभी उसके

अंदर नहीं आता

भरता है जमाने का सामान अपने घर में

पर दिल से खाली हो जाता

दूसरे के दिलों में ढूंढता प्यार

अपना तो खाली कर आता

कोई बताये कौन लायेगा

इस धरती पर हमदर्दी का दरिया

नहाने को सभी तैयार खड़े हैं

दिल से बहने वाली गंगा में

पर किसी को खुद भागीरथ
बनने का ख्याल नहीं आता
……………………………….
अपने नाम खुदवाते हुए

कितने इंसानों ने पत्थर लगवाये

पर फिर भी अमर नहीं बन पाये

जिन्होंने रचे शब्द

बहते रहे वह समय के दरिया में

गाते हैं लोग आज भी उनका नाम

कुछ पत्थरों पर धूल जमी

कुछ टूट कर कंकड़ हो गये

पर


……………………….

दीपक भारतदीप

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दूसरे के दर्द में अपनी तसल्ली ढूंढता आदमी-हिंदी शायरी


शहर-दर-शहर घूमता रहा

इंसानों में इंसान का रूप ढूंढता रहा
चेहरे और पहनावे एक जैसे

पर करते हैं फर्क एक दूसरे को देखते

आपस में ही एक दूसरे से

अपने बदन को रबड़ की तरह खींचते

हर पल अपनी मुट्ठियां भींचते

अपने फायदे के लिये सब जागते मिले

नहीं तो हर शख्स ऊंघता रहा

अपनी दौलत और शौहरत का

नशा है

इतराते भी उस बहुत

पर भी अपने चैन और अमन के लिये

दूसरे के दर्द से मिले सुगंध तो हो दिल को तसल्ली

हर इंसान इसलिये अपनी

नाक इधर उधर घुमाकर सूंघता रहा
……………………………
दीपक भारतदीप

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