कवि, लेखक और संपादक-दीपक “भारतदीप”,ग्वालियर
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कभी शिकायत नहीं की अपने दर्द की
शायद इसलिये उन्होंने बेकद्री का रुख दिखाया,
इशारों को कभी समझा नहीं
काम निकलते ही अपनों से अलग परायों में बिठाया,
जब अपने मसले रखे उनके सामने
बागी कहकर, हमलावरों में नाम लिखाया
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नयी पीढ़ी को आगे लाने के वास्ते,
खोल रहे हैं सभी अपने रास्ते।
पुरानों को बरगलाना मुश्किल है
उनकी जेबें हैं खाली, बुझे दिल हैं
खून जल चुका है जिन बेदर्दो की तोहीन से
वही ताजे खून के लिये, ढूंढ रहे गुमाश्ते।
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वह देश और समाज का भविंष्य
सुधारने के लिये उठाते हैं कसम,
जबकि अपनी आने वाले सात पुश्तों का
खाना जुटाने के लिये लगाते दम।
उनके काम पर क्या उठायें उंगली
आखें खुली है
पर अक्ल के पर्दै मिराये बैठे हम।
कवि, लेखक और संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
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प्यार मांगने की चीज होती तो
किसी से भी मांग लेते,
इज्जत छीनने की चीज होती तो
किसी से भी छीन लेते।
लोग नहीं सुनते अपने ही दिल की बात,
मारते हैं अपने ही जज़्बात को लात,
दिमाग को ही अपना मालिक समझते,
बड़े अक्लमंद दिखने को सभी हैं तैयार
पर लुटती होती कहीं अक्ल तो सभी लूट लेते।
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कुछ पल का साथ मांगा था
वह सीना तानकर सामने खड़े हो गये।
गोया अपनी सांसे उधार दे रहे हों
हमें अपनी जिंदगी को ढोने के लिये
जो ऊपर वाले ने बख्शी है,
फरिश्ता होने के ख्याल में
वह फूलकर कुप्पा हो गये।
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ताली दोनों हाथ से बजती है,
दिल की बात दिल से ही जमती है,
हाथ तो दो है
चाहे जब बजा लेंगे,
पर दिल तो एक है क्या करेंगे?
लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, Gwalior
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इतने वर्षों से बहुत दान किया है
कि इस देश से पीढ़ियों तक
गरीबी मिट जाती।
अगर कमबख्त
यह कमीशन की रीति
दान बांटने वालों की नीति न बन जाती।
———
नया बनाने के लिये
पुराना समाज टुकड़े टुकड़े
किये जा रहे हैं।
कुछ नया नहीं बन पा रहा है
इसलिये हर टुकड़े को समाज बता रहे हैं।
कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, Gwalior
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