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सहज योगी उपेक्षासन करना भी सीखें-21 जून अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस पर विशेष हिन्दी चिंत्तन लेख


                  21 जून विश्व योग दिवस जैसे जैसे करीब आता जा रहा है वैसे वैसे भारतीय प्रचार माध्यम भारतीय अध्यात्मिक विचारधारा न मानने वाले समुदायों के कुछ लोगों को ओम शब्द, गायत्री मंत्र तथा सूर्यनमस्कार के विरोध करने के लिये बहस में निष्पक्षता के नाम पर बहसों में आगे लाकर अपने विज्ञापन का समय पास कर रहे हैं। हमारा मानना है कि भारतीय योग विद्या को विश्व पटल पर स्थापित करने के इच्छुक लोगों को ऐसी तुच्छ बहसों से दूर होना चाहिये। उन्हें विरोध पर कोई सफाई नहीं देना चाहिये।

                 योग तथा ज्ञान साधक के रूप में हमारा मानना है कि ऐसी बहसों में न केवल ऊर्जा निरर्थक जाती है वरन् तर्क वितर्क से कुतर्क तथा वाद विवाद से भ्रम उत्पन्न होता है।  भारतीय प्रचार माध्यमों की ऐसे निरर्थक बहसों से योग विश्वभर में विवादास्पद हो जायेगा। विश्व योग दिवस पर तैयारियों में लगी संस्थायें अब विरोध की सफाई की बजाय उसके वैश्विक प्रचार के लिये योग प्रक्रिया तथा विषय का प्रारूप बनाने का कार्य करें। जिन पर इस योग दिवस का जिम्मा है वह अगर आंतरिक दबावों से प्रभावित होकर योग विद्या से छेड़छाड़ करते हैं तो अपने ही श्रम को व्यथ कर देंगे।

           हम यहां बता दें कि भारतीय अध्यात्मिक विचाराधारा का देश में ही अधिक विरोध होता है। इसका कारण यह है कि जिन लोगों ने गैर भारतीय विचाराधारा को अपनाया है वह कोई सकारात्मक भाव नहीं रखते। इसके विपरीत यह कहना चाहिये कि नकारात्मक भाव से ही वह भारतीय अध्यात्मिक विचाराधारा से दूर हुए हैं।  उन्हें समझाना संभव नहीं है।  ऐसे समुदायों के सामान्य जनों को समझा भी लिया जाये पर उनके शिखर पुरुष ऐसा होने नहीं देंगे। इनका प्रभाव ही भारतीय विचाराधारा के विरोध के कारण बना हुआ है। वैसे हम एक बात समझ नहीं पाये कि आखिर चंद लोगों को गैर भारतीय विचाराधारा वाले समुदायों का प्रतिनिधि कैसे माना जा सकता है?  समझाया तो भारतीय प्रचार माध्यमों के चंद उन लोगों को भी नहीं जा सकता जो निष्पक्षता के नाम पर समाज को टुकड़ों में बंटा देखकर यह सोचते हुए प्रसन्न होते हैं कि विवादों पर बहसों से उनके विज्ञापन का समय अव्छी तरह पास हो जाता है।

           योग एक विज्ञान है इसमें संशय नहीं है। श्रीमद्भागवत गीता संसार में एक मात्र ऐसा ग्रंथ है जिसमें ज्ञान तथा विज्ञान है। यह सत्य भारतीय विद्वानों को समझ लेना चाहिये।  विरोध को चुनौती समझने की बजाय 21 जून को विश्व योग दिवस पर समस्त मनुष्य योग विद्या को सही ढंग से समझ कर इस राह पर चलें इसके लिये उन्हें मूल सामग्री उलब्ध कराने का प्रयास करना चाहिये।  विरोधियों के समक्ष उपेक्षासन कर ही उन्हें परास्त किया जा सकता है। उनमें  योग विद्या के प्रति सापेक्ष भाव लाने के लिये प्रयास करने से अच्छा है पूरी ऊर्जा भारत तथा बाहर के लोगों में दैहिक, मानसिक तथा वैचारिक रूप से स्वस्था रहने के इच्छुक लोगों को जाग्रत करने में लगायी जाये।

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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’

कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक ‘भारतदीप”,ग्वालियर 

poet,writer and editor-Deepak ‘BharatDeep’,Gwalior

http://dpkraj.blogspot.com

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हर विषय पर योग दृष्टि से विचार करें-21 जून विश्व योग दिवस पर विशेष लेख


       पूरे विश्व में 21 जून को योग दिवस मनाया जा रहा है। इसका प्रचार देखकर ऐसा लगता है कि योग साधना के दौरान किये जाने वाले आसन एक तरह से ऐसे व्यायाम हैं जिनसे बीमारियों का इलाज हो जाता है।  अनेक लोग तो योग शिक्षकों के पास जाकर अपनी बीमारी बताते हुए दवा के रूप में आसन की सलाह दवा के रूप में मांगते हैं।  इस तरह की प्रवृत्ति योग विज्ञान के प्रति  संकीर्ण सोच का परिचायक है जिससे उबरना होगा।  हमारे योग दर्शन में न केवल देह वरन् मानसिक, वैचारिक तथा आत्मिक शुद्धता की पहचान भी बताई जाती है जिनसे जीवन आनंद मार्ग पर बढ़ता है।

पातञ्जलयोग प्रदीप में कहा गया है कि
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अनित्यशुचिदःखनात्मसु नित्यशुचिसुखात्मख्यातिरविद्या।।

हिन्दी में भावार्थ-अनित्य, अपवित्र, दुःख और जड़ में नित्यता, पवित्रता, सुख और आत्मभाव का ज्ञान अविद्या है।

         आज भौतिकता से ऊबे लोग मानसिक शांति के लिये कुछ नया ढूंढ रहे हैं।  इसका लाभ उठाते हुए व्यवसायिक योग प्रचारक योग को साधना की बजाय सांसरिक विषय बनाकर बेच रहे हैं। हाथ पांव हिलाकर लोगों के मन में यह विश्वास पैदा किया जा रहा है कि वह योगी हो गये हैं। पताञ्जलयोग प्रदीप के अनुसार  योग न केवल देह, मन और बुद्धि का ही होता है वरन् दृष्टिकोण भी उसका एक हिस्सा है। किसी वस्तु, विषय या व्यक्ति की प्रकृृत्ति का अध्ययन कर उस पर अपनी राय कायम करना चाहिये। बाह्य रूप सभी का एक जैसा है पर आंतरिक प्रकृत्तियां भिन्न होती हैं। आचरण, विचार तथा व्यवहार में मनुष्य की मूल प्रकृत्ति ही अपना रूप दिखाती है। अनेक बार बाहरी आवरण के प्रभाव से हम किसी विषय, वस्तु और व्यक्ति से जुड़ जाते हैं पर बाद में इसका पछतावा होता है। हमने देखा होगा कि लोहे, लकड़ी और प्लास्टिक के रंग बिरंगे सामान बहुत अच्छे लगते हैं पर उनका मूल रूप वैसा नहीं होता जैसा कि दिखता है। अगर उनसे रंग उतर जाये या पानी, आग या हवा के प्रभाव से वह अपना रूप गंवा दें तब उन्हें देखने पर अज्ञान की  अनुभूति होती है।  अनेक प्रकार के संबंध नियमित नहीं रहते पर हम ऐसी आशा करते हैं। इस घूमते संसार चक्र में हमारी आत्मा ही हमारा साथी है यह सत्य ज्ञान है शेष सब बिछड़ने वाले हैं। हम बिछड़ने वाले व्यक्तियों, छूटने वाले विषयों और नष्ट होने वाली वस्तुंओं में मग्न होते हैं पर इस अज्ञान का पता योग चिंत्तन से ही चल सकता है। तब हमें नित्य-अनित्य, सुख-दुःख और जड़े-चेतन का आभास हो जाता है।

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लेखक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’

लश्कर, ग्वालियर (मध्य प्रदेश)

कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
hindi poet,writter and editor-Deepak ‘Bharatdeep’,Gwalior
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बिना ‘एक्शन’ के योग साधना लोगों को प्रभाहीन लगती है-हिन्दी लेख (yog sadhna without action no popular-hindi lekh)


              बाबा रामदेव अब राष्ट्रीय प्रचार पटल से एकदम गायब है। अपना अनशन तोड़ने के बाद वह फिर लोगों के सम्मुख नहीं आये। एक अध्यात्मिक योगी के लिये राजयोग करना कोई आसान नहीं है यह अब समझ में आने लगा है। अगर कोई योगी राजयोग करने पर आमदा हो ही जाता है तो समझ लेना चाहिए कि वह राजस भाव के वशीभूत होकर अपनी साधना कर रहा था। यहां हम श्रीमद्भागवत के कर्म तथा गुण विभाग की विस्तृत चर्चा नहीं कर रहे पर इतना बताना जरूरी है कि आदमी सामान्य भक्त हो या योगी या फिर नास्तिक हो पर वह त्रिगुणमयी सृष्टि के चक्कर से नहीं बच सकता। सात्विक, राजस तथा तामस प्रवृत्ति के लोग हर जगह और हालत में मिलेंगे। तीनों गुणों से परे कोई महायोगी होता है हालांकि यह आवश्यक नहीं है कि वह सामान्य संसार कर्म में अपने देह व्यस्त न रखे और सन्यास लेकर हिमालय पर चला जाये। हमारा कहने का अभिप्राय यह है कि आदमी अपनी इन तीन प्रवृत्तियों से ही कर्म करते हुए लिप्त होता है पर महायोगी केवल काम करना है यही सोचकर काम करता है उसे उसके फल में कदापि रुचि नहीं होती। जिसके मन में संतोष है वही सात्विक है पर संतोष तथा असंतोष से परे है तो वह योगी है।
     आलोचकों का कहना है कि बाबा रामदेव ने लोगों को योग की गलत शिक्षा दी यह अलग से बहस का विषय है क्योंकि इसका निर्णय तो केवल प्रवीण योगशास्त्री ही कर सकते हैं। कुछ योग शास्त्री मानते हैं कि ध्यान और धारणा के पतंजलि योग साहित्य में प्रतिपादित सूत्रों का उनका अध्ययन अधिक नहीं है। उनके विचार, वाणी तथा भाव भंगिमा से यही लगता है। इतना तय ही कि उनकी योग से प्रतिबद्धता असंदिग्ध है।
                   पतंजलि योग विज्ञान के सूत्र के अनुसार परिणाम से कर्म का ज्ञान हो जाता है। दूसरे शब्दों में अगर किसी की व्यक्ति या उसकी गतिविधि से निकले परिणाम को देखते हुए उसके पूर्व कर्म का आभास किया जा सकता है। यह बहुत गंभीर अध्ययन करने वाला सूत्र है। इससे हम अपनी जिंदगी में किसी कर्म के नाकाम होने पर उसका विश्लेषण करते हुए अपनी गलतियों को ढूंढ सकते हैं। अपनी नाकामी पर हम चिंता में पड़े रहें या दूसरों को उसके लिये जिम्मेदार बताने लगें यह ठीक नहीं है। अपने संकल्प की शुद्धता और शुद्धता पर दृष्टिपात कर सकते हैं। परिणाम से कर्म का ज्ञान होने सूत्र. के लिये हमें जासूसी का नियम भी कह सकते हैं। जिस तरह कोई व्यक्ति कहीं बेहोश होकर घाायल पड़ा है और उसके पास कोई बड़ा पत्थर, चाकू या गोली का खोल पड़ा है। उसका घाव और खून देखकर जासूस यह अनुमान करता है कि उसे कौनसी चीज से मारा गया होगा। अगर आंधी तूफान के बाद राह चलतते हुए हम देखते हैं कहीं पेड़ के नीचे कोई जानवर दबा पड़ा है तो हम सहजता से यह अनुमान करते हैं कि वह पेड़ आंधी में गिरा होगा।
           योग विधा में पांरगत मनुष्य छोटी मोटी घटनाओं से ही नहीं बड़ी बड़ी राजनीतिक और एतिहासिक घटनओं का भी अनुमान कर सकते हैं कि उनमें सक्रिय लोगों की गतिविधियों किससे और कैसे प्रभावित होती होंगी। परिणामों से कार्य का अनुमान करना तभी संभव है जब ध्यान आदि के माध्यम से अपना बौद्धिक चिंत्तन विकसित करे। ज्ञानी लोग अभौतिक क्रियाओं का अनुमान सहजता से कर सकते हैं। बाबा रामदेव चूंकि प्रसिद्ध योग शिक्षक हैं इसलिये उनकी गतिविधियां अनेक ज्ञात अज्ञात योगियों और हम जैसे योग साधकों के लिये बहुत समय से अनुसंधान का विषय रही हैं। दिल्ली में अनशन के दौरान और उसके बाद उनके व्यक्त्तिव का पूरा स्वरूप सामने आ रहा था। उनकी राजनीतिक गतिविधियों में योगियों और योगसाधकों की दिलचस्पी कम थी पर उसके परिणाम और अभियान के संचालन को योग विज्ञान की कसौटी पर कसने का यह स्वर्णिम अवसर था। प्राणायामों तथा योगासनों की शिक्षा देने वाले बाबा रामदेव ने अपनी साधना से कैसा व्यक्तित्व पाया है यह देखने का इससे बेहतर अवसर नहीं मिल सकता था। अभी यह कहना कठिन है कि आगे उनकी क्या योजना है? वह विश्राम करने के बाद फि कौनसा काम करते हैं यह देखने वाली बात होगी पर इतना तय है कि भारतीय अध्यात्म की योग विधा को प्रचार दिलाने में उनका कम अनुकरणीय रहा यह अलग बात है कि बाज़ार और प्रचार के संयुक्त उपक्रम के प्रबंधकों ने उनकी मदद की। बाज़ार और प्रचार में सक्रिय महानुभावों का पूरे विश्व में दबदबा है और वह समय समय पर अपने नायक आम लोगों के सामने प्रस्तुत करते हैं। जब भारतीय समाज पर राजकीय विलासिता हावी हो रही है तो वहां राजरोगों का पनपना स्वाभाविक है। ऐसे बाबा रामदेव के योगासन उपयोगी  साबित रहे रहे थे। उनको नायकत्व का दर्जा मिला पर आलोचकों ने आरोप लगाया कि बाबा इस तरह समाज में व्यायाम का प्रचार कर लोगों की उपभोग क्षमता बढ़ा रहे हैं जिससे बाज़ार को अपने उत्पादों के ग्राहक बनाये रखने में मदद मिलेगी। उस समय अनेक लोगों ने इस बात की अपेक्षा की पर योग साधना में दक्ष लोगों ने स्पष्टतः कहा था कि उनकी शिक्षा पूरी तरह से योग विधा का प्रतिनिधित्व नहीं करती।
           बाबा रामदेव ने पतंजलि के आष्टांग योग की चर्चा अनेक बार की पर वह प्राणायाम तथा योगासनों के अलावा बाकी छह भागों में अपनी विशिष्टता प्रमाणित नहीं कर पाये थे। मुख्य बात यह कि ध्यान की शक्ति का महत्व वह सिद्ध नहीं कर पाये जो कि सबसे अधिक आवश्यक था। अगर वह आगे योगशिक्षा जारी रखते हैं तो उनको ध्यान और धारणा का महत्व भी बताना चाहिए।
            अपने भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के दौरान उन्होंने राजनीतिक विषयों में अपनी अपरिपक्वता का ही प्रमाण उन्होंने दिया। उनके कुछ बयान तो चौंकाने वाले थे जो कि यह बात साफ करते थे कि अभी उनको अपने ही शब्दों का प्रभाव नहीं मालुम। अपने समकक्ष ही खड़े अन्ना हजारे के आंदोलन के ऐसे मुद्दों पर अपनी असहमति दी जिनकी कोई आवश्यकता नहीं थी। उनका यह बयान उनके प्रशंसकों चौंकाने वाला लगा था। किसी महत्वपूर्ण मुद्दे पर देश में चर्चा होती है तो तमाम तरह के पहलू देखकर ही कोई निष्कर्ष निकलता है। ऐसे में अपने बयान सोच समझकर देना चाहिए।
उस समय कुछ लोगों को लगा कि वह अपना गुप्त लक्ष्य लेकर ही वह सत्याग्रह चला रहे हैं। एक मजे की बात यह है कि दिल्ली आने तक यह पता नहीं था कि वह धरना देंगे कि सत्याग्रह करेंगे या आमरण अनशन। वह तीनों का मतलब भी नही जानत लग रहे थे। अनशन तो उनको करना ही नहीं था क्योंकि वह अन्न ग्रहण ही नहीं करते तब उसे छोड़ना कैसा?
                वह शायद श्री अन्ना हजारे का अनशन देखकर वह प्रभावित हुए थे। जब नौ दिन के अनशन से बाबा रामदेव का शरीर अस्थिर हो गया तो उनके सहयोगी एक नेता ने कहा कि उनको तो नीबू पानी पीकर अनशन करना था। कुछ लोग उनको अन्ना हजारे की अपेक्षा दैहिक रूप से कमजोर बता रहे हैं जो कि सोलह दिन तक अनशन कर चुके हैं। चिकित्सकों ने यह बात मानी थी कि उनके शरीर में चर्बी की कमी है इसलिये उन पर अनशन का बुरा प्रभाव जल्दी पड़ा। दरअसल यह बाबा रामदेव के ही अपरिपक्व होने के साथ ही पतंजलि योग से पूरी तरह अनभिज्ञ होने का प्रमाण है। अन्ना हजारे अन्न खाते हैं इसलिये उनके शरीर में इतनी चर्बी मौजूद रहती है जो अनशन के समय उनकी सहायक बनती है। बाबा रामदेव अन्न नहीं खाते इसलिये उनके शरीर में चर्बी की कमी है इसलिये भूखे रहना अपने शरीर से खिलवाड़ करने जैसा ही है।
          श्रीमद्भागत गीता में कहा गया है कि न कम खाने वाले का न ज्यादा खाने वाले का, न कम सोने वाले का न अधिक सोने वाले का और न ही असंयमी का कभी योग सिद्ध नहीं होता। ऐसे में अन्न का त्याग कर चुके बाबा रामदेव को सतर्क रहना चाहिए था। स्थिति यह हो गयी कि दूसरों को स्वस्थ रहने के लिये योग शिक्षा देने वाले बाबा रामदेव को अंग्रेजी शिक्षा पद्धति के वही डाक्टर परामर्श दे रहे थे जिनके बारे में बाबा रामदेव का दावा था कि वह उनके पास कभी नहीं जायेंगे। आधुनिक राजनीतिक क्षेत्र में जय पराजय का महत्व नहीं होता पर योग में यह पराजय बाबा रामदेव के लिये एक चुनौती है। इसे वह योग साधना से ही विजय में बदल सकते हैं। पिछले अनेक दिनों से वह योग शिविरों में नहीं दिख रहे पर इसका मतलब यह नहीं है कि योग शिक्षा का काम कहीं नहीं चल रहा है यह अलग बात है कि उसे प्रचार न मिलता है न जरूरत है।
               इस देश में एक नहीं सैंकड़ों योग शिक्षक हैं। भारतीय योग संस्थान इसके लिये मुफ्त में अनेक शिविर लगाता है। उसके अनेक शिक्षक योग विज्ञान में इतना प्रमाणिक रूप से पारंगत हैं कि अनेक लोग उनका लोहा मानते हैं। समस्या यह है कि योग साधना में सक्रियता यानि एक्शन नहीं है। एक्शन वाले आसन व्यायाम होते हैं। इसके अलावा प्राणायाम, ध्यान, धारणा और समाधि में तो व्यक्ति एकदम निष्क्रिय रहता इसलिये प्रभावी नहीं लगता। जबकि बाबा रामदेव सतत सक्रिय रहते हैं। उनके कई आसान सामान्य व्यायाम की तरह हैं इसलिये ही शायद आलोचना अधिक हो रही है पर सच यह है कि उनके पास आने वाली भीड़ आती भी इसलिये है। बहरहाल आगे वह क्या करेंगे यह देखने वाली बात होगी। अलबत्ता उन्होने अपने आलोचकों को अपने भड़ास निकालने का अवसर दे दिया है। हालांकि इस बात की भी संभावना है कि उन जैसा योगी अधिक समय तक चुप नहीं बैठ सकता।
कवि, लेखक और संपादक-दीपक “भारतदीप”,ग्वालियर 
poet, writer and editor-Deepak “BharatDeep”,Gwalior

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