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दाम और दिल-हिन्दी हाइकु


सुंदरता की
पहचान किसे है
सभी भ्रमित,

दरियादिली
किसे कैसे दिखाएँ
सभी याचक,

वफा का गुण
कौन पहचानेगा
सभी गद्दार,

खाक जहाँ में
फूलों की कद्र कहाँ
सांस मुर्दा है,

बेहतर है
अपनी नज़रों से
देखते रहें,

खुद की कब्र
खोदते हुए लोग
तंगदिली में,

भरोसा तोड़ा
जिन्होने खुद से
ढूंढते वफा,

उन चीजों में
जो दिल को छूती हैं
रूह को नहीं,

उनके दाम
सिक्कों में नपे हैं
दिल से नहीं।
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’ग्वालियर
poet, Writer and editor-Deepak ‘Bharatdeep’,Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
 
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समय गुजर जाता है-नववर्ष पर हास्य कविता और शायरी (samay gujar jaata hai-hasya kavita or poem and shayri on navvarsh or new year)


 वह बोले
“दीपक बापू
नव वर्ष की बधाई,
उम्मीद है इस साल आप सफल हास्य कवि  हो जाओगे,
फिर हमें जरूर दारू पिलाओगे।”
दीपक बापू बोले
“आपको भी बधाई
पर हम ज़रा गणित में कमजोर हैं,
भले ही शब्दों के  सिरमोर हैं,
यह कौनसा साल शुरू हुआ है
आप हमें बताओगे।”
वह तिलमिला उठे और
यह कहकर चल दिये
“मालूम होता तो
नहीं देते तुम्हें हम बधाई,
तुमने अपनी हास्य कविता वाली
जुबान हम पर ही  आजमाई,
वह तो हम जल्दी में हैं
इसलिए नए साल का नंबर याद नहीं आ रहा
फुर्सत में आकर तुम्हें बता देंगे
तब तुम शर्माओगे।”

दिन बीतता है
देखते देखते सप्ताह भी
चला जाता है
महीने निकलते हुए
वर्ष भी बीत जाता है,
नया दिन
नया सप्ताह
नया माह
और नया वर्ष
क्या ताजगी दे सकते हैं
बिना हृदय की अनुभूतियों के
शायद नहीं!
रौशनी में देखने ख्वाब का शौक
सुंदर जिस्म छूने की चाहत
शराब में जीभ को नहलाते हुए
सुख पाने की कोशिश
खोखला बना देती है इंसानी दिमाग को
मौज में थककर चूर होते लोग
क्या सच में दिल बहला पाते हैं
शायद नहीं!
————-
कवि, लेखक और संपादक-दीपक “भारतदीप”,ग्वालियर 
poet, writer and editor-Deepak “BharatDeep”,Gwalior

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