Tag Archives: दर्द

आपसी द्वन्द्व-हिन्दी कविताएँ


अब मंच और पर्दे के नाटक
नहीं किसी को भाते हैं,
खबरों के लिए होने वाले
प्रायोजित आंदोलन और अनशन ही
मनोरंजन खूब कर जाते हैं।
——————
हर मुद्दे पर
उन्होने समर्थन और विरोध की
अपनी भूमिका तय कर ली है,
उनके आपसी द्वन्द्व के
पर्दे पर चलते हुए दृश्य को
देखकर कभी व्यथित न होना
कुछ हंसी तो
कुछ दर्द की
चाशनी में नहाये शब्दों से
उन्होंने  पहले ही अपनी  पटकथा भर ली है।
लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर, मध्यप्रदेश
writer and editor-Deepak Bharatdeep,Gwalior, madhyapradesh
http://dpkraj.blogspot.com

                  यह आलेख/हिंदी शायरी मूल रूप से इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान-पत्रिका’पर लिखी गयी है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन के लिये अनुमति नहीं है।
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८,हिन्दी सरिता पत्रिका 
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पहले लिखी आंदोलन की पटकथा-हिन्दी व्यंग्य कविता


अब मंच और पर्दे के नाटक
नहीं किसी को भाते हैं,
खबरों के लिए होने वाले
प्रायोजित आंदोलन और अनशन ही
मनोरंजन खूब कर जाते हैं।
——————
हर मुद्दे पर
उन्होने समर्थन और विरोध की
अपनी भूमिका तय कर ली है,
उनके आपसी द्वन्द्व के
पर्दे पर चलते हुए दृश्य को
देखकर कभी व्यथित न होना
कुछ हंसी तो
कुछ दर्द की
चाशनी में नहाये शब्दों से
उन्होंने  पहले ही अपनी  पटकथा भर ली है।
लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर, मध्यप्रदेश
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६.शब्द पत्रिका 
७.जागरण पत्रिका 
८,हिन्दी सरिता पत्रिका 
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हंसी के खजाने की तलाश-हिंदी शायरी (hansi ka khazana-hindi shayri)


अपने पर ही यूं हंस लेता हूं।
कोई मेरी इस हंसी से
अपना दर्द मिटा ले
कुछ लम्हें इसलिये उधार देता हूं।
मसखरा समझ ले जमाना तो क्या
अपनी ही मसखरी में
अपनी जिंदगी जी लेता हूं।
रोती सूरतें लिये लोग
खुश दिखने की कोशिश में
जिंदगी गुजार देते हैं
फिर भी किसी से हंसी
उधार नहीं लेते हैं
अपने घमंड में जी रहे लोग
दूसरे के दर्द पर सभी को हंसना आता है
उनकी हालतों पर रोने के लिये
मेरे पास भी दर्द कहां रह जाता है
जमाने के पास कहां है हंसी का खजाना
इसलिये अपनी अंदर ही
उसकी तलाश कर लेता हूं।

…………………………….

दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका पर लिख गया यह पाठ मौलिक एवं अप्रकाशित है। इसके कहीं अन्य प्रकाश की अनुमति नहीं है।
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शराब पीना बन गयी है आज़ादी का पैमाना -हिंदी व्यंग्य कविता


अब खूब पीना शराब
नहीं कहेगा कोई खराब
क्योंकि वह आजादी का पैमाना बन गयी है
कदम बहकने की फिक्र मत करना
इंसानी हकों के के नाम पर लड़ने वाले
तुम्हें संभाल लेंगे
इंतजार में खड़े हैं मयखानों के बाहर
कोई लड़खड़ाता हुआ आये तो
उसे सजा सकें अपनी महफिल में
हमदर्दी के व्यापार के लिये
उनके ठिकानों पर दर्द लेकर आने वालों की
भीड़ कम हो गयी है
………………………….
अपनी अक्ल का इस्तेमाल करोगे
तो दुश्मन बहुत बन जायेंगे
क्योंकि दूसरों पर
अपनी समझ लादने वालों की भीड़ बढ़ गयी है
जो ढूंढते हैं कलम और तलवार
अपने हाथों में लेकर
जो सच में तुम आजाद दिखे तो
डर जायेंगे
आजादी की बात कर
वह तुम्हें गुलाम बनायेंगे
नहीं माने तो विरोधी बन जायेंगे

…………………………….

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