कुछ हादसों से सीखा
कुछ अफसानों ने समझाया।
सभी जिंदगी दो चेहरों के साथ बिताते हैं
शैतान छिपाये अंदर
बाहर फरिश्ता दिखाते हैं
आगे बढ़ने के लिये
पीठ पर जिन्होंने हाथ फिराया।
जब बढ़ने लगे कदम तरक्की की तरफ
उन्होंने ही बीच में पांव फंसाकर गिराया।
इंसान तो मजबूरियों का पुतला
और अपने जज़्बातों का गुलाम है
कुदरत के करिश्मों ने यही बताया।
…………………….
कदम दर कदम भरोसा टूटता रहा
यार जो बना, वह फिर रूठता रहा।
मगर फिर भी ख्यालात नहीं बदलते
भले ही हमारे सपनों का घड़ा फूटता रहा
हमारे हाथ की लकीरों में नहीं था भरोसा पाना
कोई तो है जो निभाने के लिए जूझता रहा।
…………………………
लेखक के अन्य ब्लाग/पत्रिकाएं भी हैं। वह अवश्य पढ़ें।
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान-पत्रिका
4.अनंत शब्दयोग
कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप
दीपक भारतदीप द्धारा
|
Also posted in अनुभूति, अभिव्यक्ति, मस्तराम, व्यंग्य, समाज, साहित्य, हास्य कविता, हिन्दी, हिन्दी पत्रिका, हिन्दी शायरी, हिन्दी शेर, dashboard, deepak bapu, deepak bharatdeep, E-patrika, hindi bhasakar, hindi culture, hindi epatrika, hindi jagran, hindi megzine, hindi nai duinia, hindi web, hindu culture, inglish, internet, mastram, vyangya, web bhaskar, web dunia, web duniya, web express, web panjab kesri, web patrika
|
Tagged कविता, मनोरंजन, शेर, हिंदी साहित्य, entertainment, hindi poem, kavita, shayri, sher
|
अपने साथ भतीजे को भी
फंदेबाज घर लाया और बोला
‘दीपक बापू, इसकी सगाई हुई है
मंगेतर से रोज होती मोबाइल पर बात
पर अब बात लगी है बिगड़ने
उसने कहा है इससे कि एक ‘प्रेमपत्र लिख कर भेजो
तो जानूं कि तुम पढ़े लिखे
नहीं भेजा तो समझूंगी गंवार हो
तो पर सकता है रिश्ते में खटास’
अब आप ही से हम लोगों को आस
इसे लिखवा दो कोई प्रेम पत्र
जिसमें हिंदी के साथ उर्दू के भी शब्द हों
यह बिचारा सो नहीं पाया पूरी रात
मैं खूब घूमा इधर उधर
किसी हिट लेखक के पास फुरसत नहीं है
फिर मुझे ध्यान आया तुम्हारा
सोचा जरूर बन जायेगी बात’
सुनकर बोले दीपक बापू
‘कमबख्त यह कौनसी शर्त लगा दी
कि उर्दू में भी शब्द हों जरूरी
हमारे समझ में नहीं आयी बात
वैसे ही हम भाषा के झगड़े में
फंसा देते हैं अपनी टांग ऐसी कि
निकालना मुश्किल हो जाता
चाहे कितना भी जज्बात हो अंदर
नुक्ता लगाना भूल जाता
या कंप्यूटर घात कर जाता
फिर हम हैं तो आजाद ख्याल के
तय कर लिया है कि नुक्ता लगे या न लगे
लिखते जायेंगे
हिंदी वालों को क्या मतलब वह तो पढ़ते जायेंगे
उर्दू वाले चिल्लाते रहें
हम जो शब्द बोले उसे
हिंदी की संपत्ति बतायेंगे
पर देख लो भईया
कहीं नुक्ते के चक्कर में कहीं यह
फंस न जाये
इसके मंगेतर के पास कोई
उर्दू वाला न पहूंच जाये
हो सकता है गड़बड़
हिंदी वाले सहजता से नहीं लिखें
इसलिये जिन्हें फारसी लिपि नहीं आती
वह उर्दू वाले ही करते हैं
नुक्ताचीनी और बड़बड़
प्रेम से आजकल कोई प्यार की भाषा नहीं समझता
इश्क पर लिखते हैं
पब्लिक में हिट दिखते हैं
इसलिये मुश्क कसते हैं शायर
फारसी का देवनागरी लिपि से जोड़ते हैं वायर
इसलिये हमें माफ करो
कोई और ढूंढ लो
नहीं बनेगी हम से तुम्हारी बात
……………………………………………………………….
यह आलेख ‘दीपक भारतदीप की हिंदी पत्रिका’पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका
लेखक संपादक-दीपक भारतदीप
दीपक भारतदीप द्धारा
|
Also posted in अनुभूति, अभिव्यक्ति, कला, कविता, जजबात, मस्तराम, व्यंग्य, शायरी, शेर, समाज, साहित्य, हास्य कविता, हास्य-व्यंग्य, हिन्दी, हिन्दी शायरी, हिन्दी शेर, blogging, Blogroll, deepak bharatdeep, E-patrika, FAMILY, friends, hindi bhasakar, hindi culture, hindi epatrika, hindi friends, hindi internet, hindi journlism, hindi kavita, hindi litreture, hindi megzine, hindi web, inglish, internet, mastram, Uncategorized, vyangya, web bhaskar, web dunia, web duniya, web panjab kesri, web patrika
|
Tagged उर्दू, देवनागरी, नुक्ताचीनी, प्यार, फारसी, भाषा, devnagari, FAMILY, farsi, love, nakutachini
|
अर्थाधीतांश्च यैवे ये शुद्रान्नभोजिनः
मं द्विज किं करिध्यन्ति निर्विषा इन पन्नगाः
जिस प्रकार विषहीन सर्प किसी को हानि नहीं पहुंचा सकता, उसी प्रकार जिस विद्वान ने धन कमाने के लिए वेदों का अध्ययन किया है वह कोई उपयोगी कार्य नहीं कर सकता क्योंकि वेदों का माया से कोई संबंध नहीं है। जो विद्वान प्रकृति के लोग असंस्कार लोगों के साथ भोजन करते हैं उन्हें भी समाज में समान नहीं मिलता।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या- आजकल अगर हम देखें तो अधिकतर वह लोग जो ज्ञान बांटते फिर रहे हैं उन्होंने भारतीय अध्यात्म के धर्मग्रंथों को अध्ययन किया इसलिये है कि वह अर्थोपार्जन कर सकें। यही वजह है कि वह एक तरफ माया और मोह को छोड़ने का संदेश देते हैं वही अपने लिये गुरूदक्षिणा के नाम भारी वसूली करते हैं। यही कारण है कि इतने सारे साधु और संत इस देश में होते भी अज्ञानता, निरक्षरता और अनैतिकता का बोलाबाला है क्योंकि उनके काम में निष्काम भाव का अभाव है। अनेक संत और उनके करोड़ों शिष्य होते हुए भी इस देश में ज्ञान और आदर्श संस्कारों का अभाव इस बात को दर्शाता है कि धर्मग्रंथों का अर्थोपार्जन करने वाले धर्म की स्थापना नही कर सकते।
सच तो यह है कि व्यक्ति को गुरू से शिक्षा लेकर धर्मग्रंथों का अध्ययन स्वयं ही करना चाहिए तभी उसमें ज्ञान उत्पन्न होता है पर यहंा तो गुरू पूरा ग्रंथ सुनाते जाते और लोग श्रवण कर घर चले जाते। बाबआों की झोली उनके पैसो से भर जाती। प्रवचन समाप्त कर वह हिसाब लगाने बैठते कि क्या आया और फिर अपनी मायावी दुनियां के विस्तार में लग जाते हैं। जिन लोगों को सच में ज्ञान और भक्ति की प्यास है वह अब अपने स्कूली शिक्षकों को ही मन में गुरू धारण करें और फिर वेदों और अन्य धर्मग्रंथों का अध्ययन शुरू करें क्योंकि जिन अध्यात्म गुरूओं के पास वह जाते हैं वह बात सत्य की करते हैं पर उनके मन में माया का मोह होता है और वह न तो उनको ज्ञान दे सकते हैं न ही भक्ति की तरफ प्रेरित कर सकते हैं। वह करेंगे भी तो उसका प्रभाव नहीं होगा क्योंकि जिस भाव से वह दूर है वह हममें कैसे हो सकता है।
दीपक भारतदीप द्धारा
|
Also posted in अध्यात्म, अनुभूति, अभिव्यक्ति, आलेख, मस्तराम, विकिपीडिया, संस्कार, समाज, साहित्य, blogging, Blogroll, chanakya, chankya, deepak bharatdeep, E-patrika, hindi epatrika, hindi internet, hindi jagran, hindi journlism, hindi litreture, hindi megzine, hindi nai duinia, hindi sansakar, hindi web, hindu culture, hindu life, inglish, mastram, web bhaskar, web dunia, web duniya, web panjab kesri, web patrika
|
Tagged Add new tag
|
कल बिहार में एक स्थान पर एक महिला को जादूटोना करने के आरोप जिस बहशी ढंग से अपमानित किया गया हैं वह देश के लिये शर्म की बात है। यह कोई पहली घटना नहीं है जो ऐसा हुआ है और न शायद यह आखिरी अवसर है। पहले भी ऐसी घटनाएं हो चुकी है। यह कोई अभी नहीं हो रहीं है बल्कि सदियो से हो रहीं हैं यह अलग बात है कि अब सूचना माध्यम के शक्तिशाली होने की वह राष्ट्रीय पटल पर आ जातीं है। ऐसी घटनाओं को देख कर अपने इस समाज के बारे में क्या कहें?
एक तरफ प्रचार माध्यम यह बताते हुए थकते नहीं हैं कि भारतीय संस्कृति को विदेशी लोग अपना रहे है- कहीं कोई विदेशी जोडा+ भारतीय पद्धति से विवाह कर रहा है तो कहीं कोई विदेशी दुल्हन देशी दूल्हे से विवाह कर देशी संस्कृति अपना रही है तो कहीं विदेशी दूल्हा देशी दुल्हन के साथ सात फेरे लेकर भारत की संस्कृति आत्मसात रहा है। एसी खबरें पढ़कर लोग खुश होते है कि हमारी संस्कृति महान है।
ऐसे प्रसंग केवल विवाह तक ही सीमित रहते है और हम मान लेते हैं कि हमारी संस्कृति और संस्कार महान है। मगर क्या हमारी संस्कृति विवाह तक ही सीमित है या हमारी सोच ही संकीर्ण हो गयी है। हिंदी फिल्मो में एक प्रेम कहानी जरूर होती है जो तमाम तरह के घुमाव फिराव के बाद विवाह पर समाप्त हो जाती है। फिल्म के लेखक विवाह के आगे इसलिये नहीं सोच पाते कि वह भारतीय समाज से जुड़े है या इन फिल्मों को देखते-देखते हमारे समाज की सोच विवाह के संस्कार तक ही सिमट गयी है यह अलग विचार का विषय है। हां, समाज पर फिल्म का प्रभाव देखकर तो यही लगता है कि अब लोग इससे आगे सोच नहीं पाते।
मैंने जब यह दृश्य देखा तो बहुत क्रोध आ गया। वजह! मेरा मानना है कि महिला चाहे कितनी भी बुरी हो वह क्रूर नहीं होती। उसे गांव का एक बुड्ढा आदमी मार रहा था और अन्य औरतें भी उसे मार रहीं थीं। उसके बाल काटे गये। इस बेरहमी पर उसे बचाने वाला कोई नहीं था। मुझे तो उन गंवारों पर बहुत गुस्सा आ रहा था मेरा तो यह कहना है कि उनमें जो महिलाएं थी उन सबसे खिलाफ भी कड़ी कार्यवाही होना चाहिए।
ऐसी घटनाऐं देखकर मन में अमर्ष भर जाता है। हम जिस कथित संस्कृति की बात करते हैं उसका स्वरूप क्या है? आज तक कोई स्पष्ट नहीं कर सका। यहां मैं बता दूं कि अध्यात्म अलग मामला है और उसका जबरदस्ती संस्कारों और संस्कृति से जोड्ने की जरूरत नहीं है क्यांकि कोई भी विवाह श्रीगीता का पाठ पढ़कर संपन्न नहीं कराया जाता जो कि हमारे अध्यात्म का मुख्य आधार है। उसे कई लोग अपनी जिन्दगी में नहीं पढ़ते और अपनी औलादों को भी नहीं पढ़ने देते कि कहीं उसे पढ़कर वह विरक्त न हो जायें और बुढ़ापे में हमारी सेवा न करें। अंधविश्वास और रूढियों के कारण इस देश का समाज पूरे विश्व में बदनाम है और हम जबरन कहते हैं कि बदनाम किया जा रहा है। गाव में अनपढ़ तो क्या शहर के पढ़े लोग भी अपनी समस्याओं के लिये जादूटोना करने वाले ओझाओं और पीरों के पास जाते है।
खानपान और रहन-सहन में कमी की वजह से बच्चा बीमार हो गया तो कहते हैं कि किसी की नजर लग गयी। मां.-बाप की लापरवाही की वजह से बच्चा बहुंत समय ठीक नहीं हो रहा है तो लगाते है आरोप लगाते कि किसी ने जादूटोना किया होगा।
कमअक्ली के कारण किसी भी काम में सफल नहीं हो रहे तो दूसरों को दोष देते हैं। गांव और शहर एक बहुंत बड़ा तबका अपने आलस्य और व्यसनों की आदतों की वजह से हमेशा संकट में रहता है। आदमी दारू पीते हैं अपने घर में खर्चा नहीं देते पर घर की महिलांए किसी को अपनी पीड़ा नहीं बतातीं और फिर अपना मन हल्का करने के लिए शुरू होता है जादूटोना वाले ओझाओं के पास जाने को दौर।
वह बताते हैं कि उपरी चक्कर है किसी ने जादूटोना किया है। कभी ‘अ’ से नाम बतायेंगे तो कभी ‘ब’ से। ऐसे में कोई निरीह औरत अगर उनके गांव में हो तो उसकी आफत। गांव में एक.दूसरे के प्रति अंदर ही अंदर दुश्मनी रखने वाले लोग मौके का फायदा उठाते हैं और अगर उस औरत को कोई नहीं है और गांव के बूढ़े जो बाहर से भक्त बनते है और अंदर के राक्षस हैं अपना मौका देखते है। ऐसे में कहना पड़ता हैं कि ‘रावण मरा कहां है’। एक निरीह औरत को मारती हुई औरतें क्या भली कहीं जा सकतीं है। आखिर ऐसी समस्या किसी पुरुष के साथ क्यों नहीं आती?
एक प्रश्न अक्सर समझदार और जागरुक लोग उठाते है कि ं हमारे देश में आजकल अनेक साधु संत हैं जिनका प्रचार पूरे देश में है पर इनमें से कोई भी इन चमत्कारों के खिलाफ नहीं बोलता बल्कि ईश्वरीय चमत्कारों की कथा सुनाकर वाहवाही लूटते है। भगवान श्रीकृष्ण और श्रीराम का नाम तो केवल लोग दिखावे के लिये लेते हैं। यह सही हैं कि यज्ञ, हवन, मंत्रजाप और मूर्ति पूजा से मानसिक लाभ होता है क्योंकि इससे आदमी के मन में विश्वास पैदा होता है और वह सात्विक कर्म करने के लिये प्रेरित होता है। इसका लाभ भी उसी का होता है जो स्वयं करता है। अगर एसा न होता तो ऋषि विश्वामित्र भगवान श्रीराम को अपने यज्ञ और हवन की रक्षा के लिये नहीं ले जाते और श्रीराम जी बाणों से राक्षसों का वध नहीं करते बल्कि खुद भी मंत्रजाप और यज्ञ-हवन करते। हमारें मनीषियों ने हमेशा ही जादूटोनों और चमत्कारों का विरोध करते हुए सत्कर्म को प्रधानता दी है। जबकि हमारें देश का एक बहंुत बड़ा वर्ग जो उनको मानने और उनके बताये रास्ते पर चलने के जोरशोर से चलने को दावा तो करता है पर वह ढोंगी अधिक है। आत्ममंथन तो कोई करना नहीं चाहता। इसमें कोई संदेह नहीं है कि भारतीय अध्यात्म हमारे देश की अनमोल निधि है पर अपने देश में जिस तरह जादूटोना ओर चमत्कारों का प्रचार होते देखते है तो यह कहने में भी संकोच नही होता कि दुनियां के सबसे अधिक बेवकूफ हमारे देश में ही बसते है एक ढूंढो हजार मिलते है।
दीपक भारतदीप द्धारा
|
Also posted in अध्यात्म, अभिव्यक्ति, आलेख, कला, संस्कार, समाज, हिन्दी पत्रिका, blogging, Blogroll, deepak bharatdeep, E-patrika, hindi bhasakar, hindi epatrika, hindi friends, hindi jagran, hindi journlism, hindi litreture, hindi megzine, hindi sahity, hindi sansakar, hindi web, hindu culture, hindu dharm, inglish, web bhaskar, web dunia, web duniya, web panjab kesri, web patrika
|
मैं पिछले कई दिनों से लगातार देख रहा हूँ कि कुछ लोग अपने साथ कोई लेबल लगा कर रहना चाहते हैं. यह मानव प्रवृति है कि वह कोई समूह बनाने के लिए अपने साथ कोई न कोई लेबल लगाना चाहता है ताकि वैसे ही लेबल लगाने वाले उससे जुड़ें. मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और उसकी यह स्वाभाविक प्रवृति है. इधर आजकल ब्लोगरों को एक समूह में पिरोने का विचार चल रहा है. ब्लोगर और साहित्यकार क्या अलग-अलग होंगे?यह प्रश्न मेरे सामने था और मैं उसका उत्तर लिखते ही ढूँढता हूँ-मेरी अक्ल लिखते ही काम करती है. अगर कोई मुझे कोई योजना बनानी होती है तो भले ही लिखने न हो पेन अपने हाथ में ले लेता हूँ और आगे बढ़ता हूँ.
मैं मूलत: एक लेखक हूँ और ब्लोग मेरे लिए कापी और पेन की तरह है. कापी और पेन कई लोगों के पास होती है पर सभी लेखक नहीं बन जाते. कापी या कागज़ लेकर क्लर्क, अधिकारी, और महाजन भी लिखते हैं पर लेखक नहीं कहलाते. ब्लोग से पहले कंप्यूटर शब्द का विश्लेषण कर लें C= केल्कूलेटर A= घड़ी m= मेज P= पेन U= अलमारी T= टाईप राईटर E= इलेक्ट्रोनिक R= रजिस्टर. मुझे यह बहुत पहले एक इंजीनियर ने अपनी किताब में दिखाया था और हो सकता है कि इसमें एक दो शब्द मुझे वैसे याद न हो. उसने कहा था कि कंप्यूटर और कुछ नहीं ऐसी चीजों का संग्रह है. मतलब ब्लोग कोई आसमान से टपकी चीज नहीं है, बस ऐसे ही जैसे पहले नौटंकी देखने घर से बाहर जाते थे अब टीवी पर ही देख लेते हैं. इसी तरह ब्लोग पर लेखक हैं पर साहित्यकार उनमें कौन अपने को मानता है यह उन्हीं पर छोड़ देना चाहिए, पर हाँ इसका उपयोग कुछ लोग डायरी की तरह भी कर सकते हैं तो कुछ मित्र बनाने के लिए भी कर सकते हैं तो कुछ अपने विज्ञापनों को क्लिक कराने के लिए ऐसी सामग्री रख सकते हैं जो पठनीय है, पर साहित्यकार वही होंगे जो अपनी मौलिक रचना प्रस्तुत करेंगे. जो मौलिक रचना देंगे वही होंगे साहित्यकार.
जब मैंने ब्लोग बनाना शुरू किया था तो मेरा विचार यह था कि देखें तो आखिर होता क्या है. मैं एक ईपत्रिका पर नारद को देखता था तब मुझे कभी नहीं लगा कि वहाँ साहित्य लिखने के लिए कोई जगह है वह तो जब मेरे हाथ ब्लोग लगे तो मैं उस पर अपनी ई-पत्रिका बनाने के लिए मैदान में उतरा था.
अब यहाँ तमाम तरह के सवाल आते हैं तो मुझे लगता है कि उनका मुझसे कोइ संबंध सिर्फ इतना है कि मैं एक लेखक हूँ और जब किसी बात का महत्व सार्वजनिक रूप से है तो मुझे उस पर लिखना चाहिए. कोई लिखने की इच्छा से यहाँ आ रहा है और उसे यहाँ आकर पता लगता है कि वह तो ब्लोगिंग कर रहा है पर आम पाठक के लिए एक लेखक है. मेरे दोस्त मुझे बाहर और कंप्यूटर पर एक लेखक के रूप में पढ़ते हैं. अगर ब्लोगरों का एक वर्ग यह चुनौती दे रहा है कि यहाँ ब्लोगर आगे रहेंगे और साहित्यकार नहीं तो वह उनका तर्क है. हकीकत यह है कि अंतरजाल पर पाठक तभी जुडेंगे जब उन्हें वैसा ही रुचिकर, ज्ञानवर्द्धक पढ़ने के मिलेगा और यह केवल साहित्य लिखने वालों के बूते की बात है. मैं इस बात से बहुत खुश हूँ कि यहाँ मैं कई ऐसे ब्लोग पर लिखने वाले देख रहा हूँ जो साहित्यकार बनने की संभावना वाले हैं. जिनमें लिखने की साहित्य वृत्ति है वह बहुत जल्दी परिणाम चाहने वाले नहीं है और वही ब्लोग की विधा को आगे ले जाने वाले हैं . अगर आगे रहने की बात है और उसका संबंध कमाने से है तो अभी ब्लोगर आगे रहेंगे. मैं एक साहित्य सृजन करना चाहता हूँ और मुझे पता है कि यहाँ मेरे लिए अर्थार्जन की कोई संभावना है क्योंकि उसमें लिखने के साथ दूसरी गतिविधियों की तरफ ध्यान देना होता है. जो कमाने के लिए उतरेंगे वह ब्लोगर संपादक बनाकर भी अपना ब्लोग चलाएंगे पर जो खुद लिखने वाले हैं उसके लिए यहाँ रास्ता आसान नहीं है, पर उनके बिना ब्लोगर एक कदम भी नहीं चल पायेंगे.
मेरा लक्ष्य साफ है कि अंतर्जाल पा हिन्दी भाषा की श्री वृद्धि करना और अपना साहित्य लिखना. मेरे जैसे लोगों की कमी नहीं है और जो साहित्य सृजन की दृष्टि से आये हैं उन्हें तमाम तरह के बंटवारों से दूर रहना चाहिऐ अपने लक्ष्य की तरफ बढ़ना चाहिए क्योंकि साहित्य श्रेणी का कोई बंटवारा तो है ही नहीं भले ही वह अंतर्जाल तकनीकी के बारे में हो. एक बात जो साहित्य श्रेणी के लेखक ब्लोगरों को करना चाहिऐ कि वह बाहर भी सक्रिय रहें और अखबार आदि में भी प्रचार करें क्योंकि अभी जो इस बारे में जानकारी वहाँ छप रही है और कुछ ब्लोगरों के प्रचार तक सीमित है. इतना ही नहीं यहाँ छपने वाले लेखों में भी यह साबित की जा रही हैं कि बस वहीं है सब कुछ. अब अगर ब्लोगरों और साहित्यकारों में विभाजन हो ही रहा है तो फिर साहित्य श्रेणी के लेखक ब्लोगरों को एक दूसरे का हाथ पकड़कर चलना होगा. इसलिए अगर अखबार वगैरह में ऐसे लोगों का भी प्रचार करें जो साहित्यक श्रेणी के हों. वर्तमान में कुछ ब्लोगर बाहर लिख रहे हैं वह पूर्ण नहीं है और जो पत्रिका वगैरह में लेख भेजें वह साहित्य लेखन से लिखे जा रहे ब्लोग का उल्लेख प्रभावपूर्ण ढंग से करें. अभी तो शुरूआत है और अभी तय होना बाकी है कि कौन श्रेष्ट है कौन नहीं.
वैसे एक सत्य और भी है कि अभी साहित्यक श्रेणी के लोगों को बहुत बड़ी रचनाएं लिखने से बचना चाहिए और गागर में सागर की नीति अपनानी चाहिए और यह काम केवल साहित्यकार ही कर सकता है. वैसे एक बात और कि अगर सादा हिन्दी फॉण्ट का उपयोग अगर संभव हो जाये तो साहित्य श्रेणी के लेखक ब्लोगर अपनी बढत बहुत जल्दी कायम कर लेंगे. दिलचस्प बात यह है के एक मेरा ब्लोग है जिस पर केवल साहित्य ही है और वह कई लोगों की पसंद बना हुआ है. मैं उस पर कम ही लिखता हूँ कि उस पर लिखी पोस्टें तत्काल कोई अधिक नहीं देखी जातीं. उसी ब्लोग को देखकर मेरा यह मानना है कि अच्छा साहित्य लिखने वाले यहाँ सफल होंगे. इस ब्लोग जगत में मेरे बहुत मित्र हैं और कई लोगों से मैं असहमत होता हूँ पर गुस्सा आने की बजाय उस पर लिखता हूँ यह बताने के लिए मुझे मत भूलो क्योंकि आप ही लोग मुझे लाये हो. अगर मैं साहित्यकार नही होता और मुझमें साहित्य के प्रति झुकाव नहीं होता तो भला क्या मैं टिकता. सादा हिन्दी फॉण्ट में लिखने वाला कोई अगर यूनीकोड में लिखने के लिए तैयार हो सकता है तो वह साहित्यकार ही हो सकता है.
इसलिए मेरे साहित्य श्रेणी के नये और फ्लॉप ब्लोग लेखकों और लेखक ब्लोगरों तुम अपने लिखने की तरफ ध्यान देते रहो. कई और तरह के बदलाव आने वालें है और उनका सामना तभी कर पाओगे जब खुद लिखोगे. अभी कई तरह की चालाकिया होना शुरू हो गयीं हैं. गुटबंदी साफ दिखाई दे रही है. तुम उस तरह लिखो कि कोई तुम्हारी उपेक्षा नहीं कर सके. मुझे ऐसा कभी नही लगा था कि लोगों के उसूल किसी के लिए एक तो दूसरे के लिए दूसरे होते हैं. साहित्यकार का मन कोमल होता है और वह छोटी बातों को अनदेखा कर देते हैं पर जब एक सामूह का प्रश्न हो तो उसे उठाते हैं और उनका लिखा साहित्य ही होता है.
दीपक भारतदीप द्धारा
|
Also posted in अभिव्यक्ति, आलेख, कला, व्यंग्य, समाज, साहित्य, हास्य, हास्य-व्यंग्य, blogging, Blogroll, deepak bharatdeep, deshboard, E-patrika, friends, hindi bhasakar, hindi epatrika, hindi friends, hindi hasya, hindi jagran, hindi journlism, hindi litreture, hindi megzine, hindi nai duinia, hindi sahity, inglish, web bhaskar, web dunia, web duniya, web panjab kesri, web patrika
|