बाहर हंसने की
नाकाम कोशिश करते लोग
मगर उनके दिल टूटे हैं।
शब्दों का मायाजाल
बुनने में सभी माहिर होते
अनुमान नहीं लगता कि
अर्थ कितने सत्य कितने झूठे हैं।
कहें दीपक बापू सभी के दिल
लगे हैं माया जोडने में,
कुछ उड़ाते
वफा का वादा हवा में
कुछ लगे रिश्ते तोड़ने में,
कमाई के जरिये पर
कोई सवाल नहीं करता
जानना चाहते हैं कि
किसने कितने सिक्के लूटे हैं।
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पद पैसे और प्रतिष्ठा के
शिखर पर आकर
हर कोई वाणी के नियम से
मुक्त हो जाता है।
चला न जाता
स्वयं जिस पथ पर
उसके प्रदर्शक बनने की
योग्यता से युक्त हो जाता है।
कहें दीपक बापू रबड़ की जीभ
धरा पर तलवार की तरह चलती
तब कोई नहीं देखता
चढ़ जाये सफलता के सिर पर
हर किसी की नज़र में
इंसान का मुख वाक्य
अलंकार से संयुक्त हो जाता है।
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लेखक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’
लश्कर, ग्वालियर (मध्य प्रदेश)
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
hindi poet,writter and editor-Deepak ‘Bharatdeep’,Gwalior
http://dpkraj.blgospot.com
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