इश्क के किस्से में
तब मोड़ आता है
जब उसकी चर्चा
चौराहे पर हो जाती है।
माशुका चलती आशिक की राह
तब तक ठीक रहता
मुश्किल होती जब
वह दोराहे पर खो जाती है।
कहें दीपक बापू इश्क में
परंपराओं के रास्ते बदलने का
ख्वाब देख रहे हैं नयी सोच वाले
शादी के पुरानी प्रथा से जुड़कर,
हमेश बंधन में रहे माशुका आशिक के
देखे न पीछे मुड़कर,
इस सच से मुंह छिपाते
हर माशुका आखिर
आशिक की बंधुआ हो जाती है।
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प्रसिद्धि की खातिर कोई विद्वता का लबादा ओढ़ता
कोई दूसरों को हंसाने के लिये बनता जोकर,
यह अलग बात है प्रचार में कोई नायक बनता
किसी के हिस्से आती केवल ठोकर,
सभी के लिये समय एक जैसा नहीं होता,
शब्दों का जादूगर अपना असर देखकर हंसता है,
जग को हंसाने वाला अकेले में अपने हाल पर रोता,
ज़माने का दिल बहलाते हैं लोग कमाने के लिये,
अपने अंधेरे से भागते दूसरों का देते जलाकर दिये,
कहें दीपक बापू गोल दुनियां में हालातों में डोलता इंसान
जिस शान पर इतराता बेबस हो जाता उसे खोकर।
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लेखक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’
लश्कर, ग्वालियर (मध्य प्रदेश)
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
hindi poet,writter and editor-Deepak ‘Bharatdeep’,Gwalior
http://dpkraj.blgospot.com
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