मनोरंजन के गुलाम-हिंदी कविताएँ


लगातार रौशनी में

जीने की आदत

अंधेरे की आशंका से डरा देती है।

प्रतिदिन चुपड़ी रोटी

खाने की आदत

भूख की आशंका से डरा देती है।

हमेशा आसमान में

उड़ने की आदत

जमीन पर पांव पड़ने की

आशंका से डरा देती है।

कहें दीपक बापू इंसान की देह

फंसती है आलस्य और विलासिता में

भोग की राह पर चलने की आदत

रोग की आशंका से डरा देती है।

———–

जमीन पर चलते हुए लोग

आकाश की तरफ देखकर सोचते हैं

घर की छत पर सितारे सजाने का देखते सपना,

साफ न नीयत है न आंगन

मनोरंजन के गुलाम हो चुके सभी

क्या प्यार करेंगे कुदरत के तोहफे से

पल पल में बदलते ख्याल अपना।

कहें दीपक बापू अपने हाथ से कचड़ा फैलाकर

दूसरे पर डालते सफाई की जिम्मेदारी,

बीमार आदतों के मालिक

क्या करेंगे बदतर हालत के शिकार की तीमारदारी,

चलते फिरते सभी पर टांगों को तमीज नहीं,

सफेदपोश काले कारनामों से करते नहीं परहेज

फिक्र उनको भी है कि मैली न हो जाये कमीज कहीं,

अपने मतलब में मस्त है जमाना

लालच के अलावा कोई नहीं किसी का अपना।

—————–

लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा “भारतदीप”

ग्वालियर, मध्यप्रदेश 

Writer and poet-Deepak Raj Kukreja “Bharatdeep”

Gwalior, Madhya pradesh

कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’ग्वालियर
jpoet, Writer and editor-Deepak ‘Bharatdeep’,Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com

यह कविता/आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की अभिव्यक्ति पत्रिका’ पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।

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