अंगद जैसे उनके पांव नहीं पर फिर भी सेवा के लिये अड़े हैं,
चंदे और दान से व्यापार चलाते शर्म नहीं वह चिकने घड़े हैं।
कागजों पर अपना खुद लिखते हुए इतिहास वह बन गये महान,
मदद का पैसा आत्मप्रचार पर फूंककर पर्दे पर सीना रहे तान,
अपनी चाहतों का पूरा करने के लिये दूसरे का दर्द दिखाते,
खुद करते कमाई ज़माने को तरक्की के सपने देखना सिखाते,
सबके चरित्र पर दाग हैं उन पर कोई उंगली नहीं उठायेगा,
बेआबरुओं से सभी डरते हैं अपनी इज्जत कोई नहीं लुटायेगा,
मशहुर हुए वह करके बाज़ारों के सौदागरों से गठबंधन,
जिनके नाम का लिया सहारा उन बेबसों का जारी है क्रंदन,
कहें दीपक बापू अपनी सेहत बचाने का जिम्मा खुद पर है
देह हो या दिल की बीमारी दवा के दाम में उनके हिस्से बड़े हैं।
—————-
लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poem-Deepak Raj Kukreja “”Bharatdeep””
Gwalior, madhyapradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
poet, Editor and writer-Deepak ‘Bharatdeep’,Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com
————————-
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
४.शब्दयोग सारथी पत्रिका