खेल भी नाटक की तरह पहले पटकथा लिखकर होते हैं,
जुआ और सट्टे के दाव पर लोग कभी हसंते कभी रोते हैं,
अभिनेता और खिलाड़ी में नहीं रह गया अंतर,
सभी पैसे के लिये अदायें बेचते जपते हैं मनोरंजन मंतर,
गेंद पर आंकड़ा बढ़ेगा कि विकेट गिरेगा पहले ही तय है,
फुटबाल हो या टेनिस हर प्रहार बिकने की शय है,
मिल बैठते हैं खिलाड़ी और अभिनेता नायकों की तरह,
दर्शकों के भगवान धनवानों के गीत गाते गायकों की तरह,
कहें दीपक बापू पर्दे पर चल रहे हर दृश्य पर होता शक
चतुर बेचते अपनी चाल मूर्ख भ्रम को सच समझ रहे होते हैं।
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देश के विकास का हमने अब रिश्ता महंगाई से जोड़ लिया है,
घर के रिश्तों के दाम का आंकलन भी बाज़ार पर छोड़ दिया है।
ईंधन के दाम हर रोज बढ़ने का समाचार आता है
मन में चिंताओं का उठता धुंआ ख्याल पर अंधेरा छा जाता है,
शादी हो या गमी अपनी इज्जत बढ़ाने के लिये लोग खाना बांटते,
कुछ लेते कर्जा कुछ अपनी तिजोरियों में रुपये छांटते,
तत्वज्ञान बघारने वाले बहुत है मगर पाखंड कोई नहीं छोड़ता,
रस्म निभाने के लिये जिंदगी गंवाकर हर कोई दौलत जोड़ता,
कहें दीपक बापू दिन-ब-दिन समाज सिकुड़ रहा है
सामानों की चाहतों ने इंसान के दिल के रिश्तों को तोड़ दिया है।
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लेखक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’
लश्कर, ग्वालियर (मध्य प्रदेश)
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
hindi poet,writter and editor-Deepak ‘Bharatdeep’,Gwalior
http://dpkraj.blgospot.com
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