उसके पीछे कौन है,
जवाब में वह मौन है।
कहें दीपक बापू जिंदगी में
इतने मंजर हमने देखे हैं
बस चेहरे बदलते हैं
ज़माने का भला करने की
अदायें पुरानी दिखाते हुए सभी
पर्दे पर टहलते है,
उनका जिस्म सजा है अपने आकाओं के
दान और चंदे पर,
भर लिये सोने और चांदी से अपने घर,
क्या जाने ज़माने का वह दर्द,
जज्बात हो गये उनके सर्द,
क्यों जानेंगे
दरवाजे पर बीमार, बेकार और भूखा
आकर खड़ा कौन है?
==================
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poem-Deepak Raj Kukreja “”Bharatdeep””
Gwalior, madhyapradesh
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका