यह खौफ क्यों सताता है तुमको
कि देश बिक जायेगा
कमबख्त, पहले लुटेरे
खुद लूटने आये इस देश का खजाना,
देश फिर भी फलाफूला
हो गये वह अपने देश रवाना,
अब उनके दलाल कमाकर दलाली
जमा कर रहे लुटेरों के घर दौलत,
फिर उसे उधार लेकर आते हैं,
ब्याज भी यहीं से कमाते हैं
अपने बनकर पा रहे वफादार जैसी शौहरत
सब मिट जायेंगे एक दिन
देश फिर भी अपना कमाकर खायेगा
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कि देश बिक जायेगा
कमबख्त, पहले लुटेरे
खुद लूटने आये इस देश का खजाना,
देश फिर भी फलाफूला
हो गये वह अपने देश रवाना,
अब उनके दलाल कमाकर दलाली
जमा कर रहे लुटेरों के घर दौलत,
फिर उसे उधार लेकर आते हैं,
ब्याज भी यहीं से कमाते हैं
अपने बनकर पा रहे वफादार जैसी शौहरत
सब मिट जायेंगे एक दिन
देश फिर भी अपना कमाकर खायेगा
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कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
poet, Editor and writer-Deepak ‘Bharatdeep’,Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com
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