तेल उधार लेकर
घर के चिराग न जलाएँ,
मांगी मिठाई से
दिवाली न मनाएँ,
अँधेरों में जीना,
जुबान चाहे मांगे स्वाद
अपने होंठ भूख से सीना,
वरना गुड़ बनकर
अमीरों के हत्थे चढ़ जाओगे।
फिर गुलामी की जज़ीरों से
लड़ते रहोगे
आज़ादी के लिए छटपटाओगे।
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मांगने से मिलती नहीं अमीरी
छीनने से सिंहासन नहीं मिल जाता है।
अपनी दौलत, शौहरत और ताकत
पर भले ही तुम इतराते रहो
अपने घमंड से काँपते देखो ज़माना
सच यह है कि
तुम्हारी ताकत से
क्या हिलेगा देश में कोई पेड़
किसी शहर का पत्ता तक हिल नहीं पाता है।
कवि, लेखक और संपादक-दीपक “भारतदीप”,ग्वालियर
poet, writer and editor-Deepak “BharatDeep”,Gwalior
http://rajlekh-patrika.blogspot.com
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है।