चीजें खरीदने से भला ख्वाब
कब पूरे हो जाते हैं,
इश्तहार देखकर
बाज़ार में जेब ढीली करने के बाद
खुद को लफ्जों के शिकार की तरह पाते हैं।
—————
गरीबों की गरीबी
इश्तहार में भी बिकने की लिये आती है,
बाज़ार में भलाई वह शय है
जो ख्वाबों के भाव बिक जाती है।
आम इंसान पर्दे का दीवाना है
बना दें जिसे सौदागर फरिश्ता
अदाओं के पीछे
उसकी औकात और असलियत
चंद नारों के पीछे छिप जाती है।
————-
कब पूरे हो जाते हैं,
इश्तहार देखकर
बाज़ार में जेब ढीली करने के बाद
खुद को लफ्जों के शिकार की तरह पाते हैं।
—————
गरीबों की गरीबी
इश्तहार में भी बिकने की लिये आती है,
बाज़ार में भलाई वह शय है
जो ख्वाबों के भाव बिक जाती है।
आम इंसान पर्दे का दीवाना है
बना दें जिसे सौदागर फरिश्ता
अदाओं के पीछे
उसकी औकात और असलियत
चंद नारों के पीछे छिप जाती है।
————-
लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर, मध्यप्रदेश
writer and editor-Deepak Bharatdeep,Gwalior, madhyapradesh
http://dpkraj.blogspot.com
यह आलेख/हिंदी शायरी मूल रूप से इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान-पत्रिका’पर लिखी गयी है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन के लिये अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की हिंदी पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.अनंत शब्दयोग
4.दीपकबापू कहिन
५.ईपत्रिका
६.शब्द पत्रिका
७.जागरण पत्रिका
८,हिन्दी सरिता पत्रिका
९शब्द योग पत्रिका
१०.राजलेख पत्रिका
writer and editor-Deepak Bharatdeep,Gwalior, madhyapradesh
http://dpkraj.blogspot.com
यह आलेख/हिंदी शायरी मूल रूप से इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान-पत्रिका’पर लिखी गयी है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन के लिये अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की हिंदी पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.अनंत शब्दयोग
4.दीपकबापू कहिन
५.ईपत्रिका
६.शब्द पत्रिका
७.जागरण पत्रिका
८,हिन्दी सरिता पत्रिका
९शब्द योग पत्रिका
१०.राजलेख पत्रिका
टिप्पणियाँ
A dream not necessary has to became a slogan or publicity…
But actually publicity can appeal to men dreams… to catch interest. Which isn’t exactly the seam meaning…
Serenity
claudine
http://claudine2007.splinder.com