ज्ञान बेचने के लिये भ्रम फैलाते हैं-हिन्दी हास्य व्यंग्य कवितायें


शब्द सुंदर हैं, पर हृदय में नहीं दिखती हैं भावनायें,
आंखें नीली दिख रहीं हैं, पर उनमें नहीं हैं चेतनायें।
प्राकृतिक रिश्ते, कृत्रिम व्यवहार से निभा रहे हैं सभी इंसान,
चमकीले चेहरों का झुंड दिखता है, पर नहीं है उनमें संवेदनायें।
जल में नभ को नाचता देखकर नहीं बहलता उनका दिल
लगता है जैसे लोटे में भरकर उसे अपने ही पेट में बसायें।
कितनी संपदा बटोरी धनियों ने गरीबों का लहू चूसकर
फिर भी हाथ खाली रखते हैं, ताकि उससे अधिक बनायें।
धर्म की रक्षा और जाति की वफा के नारे लगा रहे हैं बुद्धिमान
ज्ञान बिके उनका सदा, इसलिये समाज में भ्रम और भय बढ़ायें।
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किस प्रदेश का नाम लिखें,
किस शहर को याद रखें,
जहां बरसों तक विकास का रथ सड़क और पुलों पर चला,
बिजली के खंभों पर चढ़ा,
और सुंदर इमारतों को अपना निवास बनाया।
मगर कमबख्त हर बरस की तरह
इस बार भी बरसात की पहली फुहार ने ही
विकास के चेहरे से
भ्रष्टाचार का नकाब हटाया।
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बरसात की पहली फुहार ने
मन में ढेर सारी उमंग जगायी।
मगर पल भर का सुख ही रहा
क्योंकि नाला आ गया सड़क पर
नाली घर में घुस गयी
बिजली ने कर ली अंधेरे से सगाई।
———–

कवि, लेखक और संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com

यह आलेख/हिंदी शायरी मूल रूप से इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान-पत्रिका’पर लिखी गयी है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन के लिये अनुमति नहीं है।
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