वफादारी और बिचारगी-हास्य कविताएँ ( vafadari aur bichargi-hasya kavitaen)


मतलब निकल जाये तो
दोस्त भी आंख फेर लेते हैं,
बात अगर पैसे की हो तो
वफादारी दांव पर धर देते हैं।
खुशफहमी है उनकी कि
हमने उन पर कभी भरोसा किया,
हालातों से मजबूर इंसान
कुछ भी कर सकता है
यह सच हमने भी जान लिया,
इसलिये गद्दारी को भी
हंस कर अपने पर लेते हैं।
————
खूब वफा के उन्होंने वादे किये
मौका आया तो अपनी
बिचारगी जता दी
जैसे कोई बेबस इंसान हो।
हमने जो मुंह फेरा वहां से
मस्त हो गये वह अपनी महफिल में
जैसे मस्ती ही उनका ईमान हो।
———-

कवि लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
————————

दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका पर लिख गया यह पाठ मौलिक एवं अप्रकाशित है। इसके कहीं अन्य प्रकाश की अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.अनंत शब्दयोग
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका
4.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान पत्रिका

Post a comment or leave a trackback: Trackback URL.

टिप्पणियाँ

  • jandunia  On 20/07/2010 at 22:48

    जानदार

  • harleen  On 31/08/2010 at 14:29

    superb

  • riya  On 14/02/2011 at 16:25

    good poem thori lambi hoti to mere liye acha reheta!!!!!!!!!

एक उत्तर दें

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  बदले )

Twitter picture

You are commenting using your Twitter account. Log Out /  बदले )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  बदले )

Connecting to %s

%d bloggers like this: