छद्म नाम बताकर,
पराया फोटो लगाकर,
आशिक और माशुका ने
अपनी इश्क की कहानी रचाई,
हुई दोनों की पहली मीट
जो उनकी पहली और आखिरी मुलाकात का संदेश लाई।
माशुका गरजते बोली
‘हद हो गयी गयी इंटरनेट पर धोखे की,
कंप्यूटर की लोग इज्जत इतनी करते
जितनी कागज के खोखे की,
अब मैं एक माशुका एसोसियेशन बनाऊंगी,
आशिकों के धोखे से बचाने के लिये
नयी पीढ़ी की लड़कियों में
चेतना और जागरुकता पैदा करूंगी
जिसे बुढ़ापे तक चलाऊंगी,
कब तक सहूंगी यह सब
तुम्हारे साथ इश्क कर मैंने छठी बार चोट खाई।’
सुनकर आशिक भी दहाड़ा,
कविता ऐसे सुनाने लगा जैसे पहाड़ा,
आंखों से खून की धारा बह आई।
वह बोला
‘तुम्हारी एसोसिएशन के जवाब में
मैं भी आशिक एसोसिएशन बनाऊंगा,
छद्म नाम और पराये फोटो वाली
फर्जी माशुकाओं के जाल से बचाऊंगा,
इश्क के धोखे की इंटरनेट से कर दूंगा सफाई।’
सुन रहा था पास में एक
वेबसाईट लिखने वाला
उसके दिमाग में भी एक योजना आई।
मन ही मन कहने लगा
‘अच्छा है जो मेरे सामने हुई यह लड़ाई,
अब दोनों के पाठों का अपनी ’इश्क साईट’ पर लिंक दूंगा,
यह दोनों तो ठहरे फोकटिया,
मैं ठहरा पुराना पोपटिया,
इनका लिखा मजेदार होगा
पाठक मिलेंगे ज्यादा
जिससे अपने विज्ञापनों से चार पैसे कमा लूंगा,
फिर दावा करूंगा कि
इश्क जगत में कचड़ा साफ कर ला रहा हूं सफाई।
इसलिये आशिक माशुका एसोसिशन को
अपनी साईट से जोड़ रहा हूं
लोग पढ़ें और समझें
करें न एक दूसरे से बेवफाई।
अंतर्जाल लेखकों में माननीय भी हो जाऊंगा
इधर करूंगा कमाई।’
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कवि, संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com
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टिप्पणियाँ
्हा हा हा ……………दो की लडाई मे हमेशा तीसरा ही फ़ायदा उठाता है।
apki hasya byang kavita padh kar bahut achha laha
internet par affair ke shokino k liye achha sabak hai…….
good
good ……verygood…..very very good…