दिखावे की दोस्ती -हिंदी शायरी (dikhave ki dosti-hindi shayri)



बेसुरा वह गाने लगे।
किसी के समझ न आये
ऐसे शब्द गुनगनाने लगे।
फिर भी बजी जोरदार तालियां
मन में लोग बक रहे थे गालियां
आकाओं ने जुटाई थी किराये की भीड़
अपनी महफिल सजाने के लिये
इसलिये लोगों ने अपने मूंह सिल लिये
पहले हाथों से चुकाई ताली बजाकर कीमत
दाम में पाया खाना फिर खाने लगे।
………………………
कमअक्ल दोस्त से
अक्लमंद दुश्मन भला
ऐसे ही नहीं कहा जाता है।
दुश्मन पर रहती है नजर हमेशा
दोस्त का पीठ पर वार करना
ऐसे ही नहीं सहा जाता है।
जमाने में खंजर लिये घूम रहा है हर कोई
अकेले भी तो रहा नहीं जाता है
इसलिये दिखाने के लिये
बहुत से लोगों को दोस्त कहा जाता है।

……………………………..

यह कविता/आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की अभिव्यक्ति पत्रिका’ पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
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टिप्पणियाँ

  • krishna bhagat  On 02/12/2009 at 13:28

    बेसुरा वह गाने लगे।
    किसी के समझ न आये
    ऐसे शब्द गुनगनाने लगे।
    फिर भी बजी जोरदार तालियां
    मन में लोग बक रहे थे गालियां
    आकाओं ने जुटाई थी किराये की भीड़
    अपनी महफिल सजाने के लिये
    इसलिये लोगों ने अपने मूंह सिल लिये
    पहले हाथों से चुकाई ताली बजाकर कीमत
    दाम में पाया खाना फिर खाने लगे।
    ………………………
    कमअक्ल दोस्त से
    अक्लमंद दुश्मन भला
    ऐसे ही नहीं कहा जाता है।
    दुश्मन पर रहती है नजर हमेशा
    दोस्त का पीठ पर वार करना
    ऐसे ही नहीं सहा जाता है।
    जमाने में खंजर लिये घूम रहा है हर कोई
    अकेले भी तो रहा नहीं जाता है
    इसलिये दिखाने के लिये
    बहुत से लोगों को दोस्त कहा जाता है।

  • atul  On 24/05/2010 at 12:47

    wah kya baat hai

  • Johny  On 31/07/2010 at 18:45

    These few lines are not just few lines. Likhne vaale ne samaaj ko ek bahut zaroori sandesh dene ki koshish ki hai.

    well said.

  • manali mohan rahate  On 08/08/2011 at 22:27

    these few lines are so nice.

  • P.C.SHAMA  On 05/08/2012 at 22:43

    BAHUT HI SANDA HAI.VERRY NICE.

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