बहु ने लिखी कविताएँ-व्यंग्य शायरी


नयी बहू कवियित्री है
जब सास को पता लगी
तो उसकी परीक्षा लेने की बात दिमाग में आयी
उसने उससे अपने ऊपर कविता लिखने को कहा
तो बहू ने बड़ी खुशी से सुनाई
‘मेरी सास दुनियां में सबसे अच्छी
जैसे मैंने अपनी मां पायी
बोलना है कोयल की तरह
चेहरा है लगता है किसी देवी जैसा
क्यों न सराहूं अपना भाग्य ऐसा
चरण धोकर पीयूं
ऐसी सास मैंने पायी’

सास खुश होकर बोली
‘अच्छी कविता करती हो
लिखती रहना
मेरी भाग्य जो ऐसी बहू पाई’

दो साल बाद जब वह
कवि सम्मेलन जाने को थी तैयार
सास जोर से चिल्लाई
‘क्या समझ रखा है
घर या धर्मशाला
मुझसे इजाजत लिये बिना
जब जाती और आती हो
भूल जाओं कवि सम्मेलन में जाना
हमें तुम्हारी यह आदत नहीं समझ मंें आयी’

गुस्से में बहू ने अपनी यह कविता सुनाई
‘कौन कहता है कि सास भी
मां की तरह होती है
चाहे कितनी भी शुरू में प्यारी लगे
बाद में कसाई जैसी होती है
हर बात में कांव कांव करेगी
खलनायिका जैसा रूप धरेगी
समझ लो यह मेरी आखिरी कविता
जो पहली सुनाई थी उसके ठीक उलट
अब मत रोकना कभी
वरना कैसिट बनाकर रोज
सुनाऊंगी सभी लोगों को
तुम भूल जाओ अपना रुतवा
मैं नहीं छोड़ सकती कविताई’

सास सिर पीटकर पछताई
‘वह कौनसा मुहूर्त था जो
इससे कविता सुनी थी
और आगे लिखने को कहा था
अब तो मेरी मुसीबत बन आई
अब कहना है इससे बेकार
कहीं सभी को न सुनाने लगे
क्या कहेगा जब सुनेगा जमाई
वैसे ही नाराज रहता है
करने न लगे कहीं वह ऐसी कविताई

…………………………………..

दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका पर लिख गया यह पाठ मौलिक एवं अप्रकाशित है। इसके कहीं अन्य प्रकाश की अनुमति नहीं है।
कवि एंव संपादक-दीपक भारतदीप

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