क्योंकि कोई किसी का नहीं हुआ-हिंदी शायरी
हमने देखा था उगता सूरज
उन्होने देखा डूबता हुआ
वह कर रहे थे चंद्रमा की रौशनी में
जश्न मनाने की तैयारी
पर हमने बिताया था पूरा दिन
सूरज की तपती किरणों में
अपने पसीने में नहाते
हमारा मन भी था डूबा हुआ
वह आसमान में टिमटिमाते तारों की
बात करते रहे
उनकी रात
खुशियों की कहानी कह रही थी
जबकि हमारे बदन से पसीने की
बदबू बह रही थी
सबकी जमीन और आसमान
अलग-अलग होते हैं
किसी को रात डराती है तो किसी को दिन
किसी को भूख नहीं लगती किसी को सताती है
इसलिए सब होते हैं अकेले
क्योंकि कोई किसी का नहीं हुआ
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लेखक संपादक-दीपक भारतदीप
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दीपक भारतदीप, on
13/08/2008 at 14:56, under
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roshni. 2 टिप्पणियाँ
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टिप्पणियाँ
बढ़िया है.
आपकी कविता हमें भँवर में ले गइ। धन्यवाद।