बादशाह और अमीर दौलत खर्च कर
पत्थरों के बनवाते महल और घर
तिनके तिनके जोड़कर अपनी झौंपड़ी
बनाता है गरीब बसाता है शहर
बसा कर होता है दर-ब-दर
रहकर महलों और और बड़े मकानों में
नहीं चैन से रह पाते बड़े लोग
लग जाते हैं उनको राजरोग
अपने पसीने से नहाया
अपनी ही कमाई का खाया
गरीब जीवन गुजारता चैन से
नहीं सह पाते ऊंचे लोग यह सब तो
कभी शहर की रौनक के नाम पर
कभी तरक्की के पाने की दाम पर
उजाड़ देते हैं उनके आशियाने
तिनके-तिनके घर हो जाता दाने-दाने
बेहयाई होती है हमेशा बेकदर
इस दुनियां में मच गया है चारों और
तरक्की करो का शोर
हमदर्दी के नाम पर आंसू बहाने वाले
सब तरफ मिल जाते हैं
टीवी और फिल्मों में बिकता दर्द
खरीदने वाले मिल जाते हैं
जमीन पर उतर कर कौन किसका
दर्द समझता है
अमीर तो सब खरीद लेता है
सिवाय अपने चैन के
पर गरीब का दर्द सभी को नाटक लगता है
बुलंद इमारते टिकी हैं कई लोगों की आहों पर
इसलिये अमन के फरिश्ते वहां नहीं बसते हैं
जमीन पर गरीब के घर में रहते वह
उनके उजड़ने पर वह भी हटते हैं
आसमान में अमन और प्यार ढूंढने वालों
वहां से कुछ टपकने वाला नहीं है
तक तक तरसते रहोगे
जब तक नहीं करोगे
जमीन पर बसने वाले मेहनतकशों की कदर
तक दुनियां ही रहेगी दर-ब-दर
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दीपक भारतदीप
टिप्पणियाँ
बहुत खूब।