अपने दर्द से भला कहां
हमारे आंखों में आसू आते हैं
दूसरों के दर्द से ही जलता है मन
उसी में सब सूख जाते हैं
अगर दर्द अपना हो तो
बदन का जर्रा जरौ
जंग में लड् जाता है
तब भला आंखों से आंसु बहाने का
ख्याल भी कब आता है
जो बहते भी हैं आंखों के कभी तो
वह दूसरों के दर्द का इलाज न कर पाने की
मजबूरी के कारण बह आते हैं
कोई नहीं आया इस पर
कभी रोना नहीं आता
कोई नापसंद शख्स भी आया
तो भी कोई बुरा ख्याल नहीं आता
कोइ वादा कर मुकर गया
इसकी कब की हमने परवाह
हम वादा पूरा नहीं कर पाये
कभी कभी इस पर आंखों से आंसू आ जाते हैं
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दीपक भारतदीप
टिप्पणियाँ
अपने दर्द से भला कहां
हमारे आंखों में आसू आते हैं
दूसरों के दर्द से ही जलता है मन
उसी में सब सूख जाते हैं
bhut sundar paktiya.likhate rhe.
bahut bhavuk kavita,dil ko chu gayi,bahut sundar badhai
बहुत उम्दा.
बारहवाँ खिलाडी
खुशनुमा मौसम में
अनगिनत तमाशयी
आते है अपने ग्यारह की
टीम का हौसला बढाने को
दिलों जान से चाहते है जिसको
उन सब से अलग में धतकारा लगाता हूँ
बारहवें खिलाडी को
क्या अजब खिलाडी है
क्या गजब खिलाडी है
दो ओवरो के बीच
जब इसका मौका आता है
हाथ में पानी की बौतल
कंधे पर तौलिया लिये
वो दौड पडता है
टीवी का कैमरा तक इससे मुहँ मोड लेता है
तेज हुददंग के बीच ओरों से अलग
ये उस लम्हे का इंतजार करता रहता है
जब कोई बलवा हो जाए
काई गर्मी से गश खा जाए
उसे खेलने का बस एक मौका मिल जाए
उसे भी तमाशयियों की तालियाँ मिल जाए
उसका नाम भी कहीं टी वी पर दिख जाए
जब टीम जश्न बनाती है
बारहॅवा खिलाडी भी नाचता है गाता है
मन कोंधता है उसका
तौलिया उठा कर
तू क्यों खुश है इतना
काश
कोई हादसा हो जाए
मुझे अगले मैच में एक मौका मिल जाए
मेरा भी फोटो अखबार में छप जाए
मुझे भी टीम में शामिल कर लिया जाए
मैच दर मैच
बारहवा खिलाडी
ऐसा ही खेल दिखाता है
कभी मौका मिले तो कैच लपक जाता है
संजीव तु अपना जश्न
दूसरों के गम से ही क्यों बना पाता है ।