आसमान से जो देखा धरती पर
तो इंसान चींटियों की तरह
सड़क पर रेंगता नजर आया
वैसे भी धरती पर इंसान
कब इंसान की तरह चल पाया
चींटियों की रानी लेती है
अपनी प्रजा से सेवा
पर इंसान ढूंढता है
अपने आराम से रहने के लिये कोई राजा
जो उसे खिलाये मुफ्त में मेवा
दौड़ सकता है अपनी टांगो के सहारे
पर फिर भी रैंगना उसे पसंद है
करता है पहाड़ जैसी बातें पर
इंसान का चरित्र हमेशा बौना नजर आया
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शिखर पर पहुंचे हैं वह लोग
जिनके चरित्र बौने हैं
बांस की टांगों के सहारे
वह दिखते हैं बहुत लंबे
पर जब हट जाती हैं वह
तो लगते वह रोने हैं
बांसों के सहारे हो रहा है शासन
बांस भी रूप बदलता है
कहीं पद तो कहीं बनता है आसन
एक बार लग जाये तो
फिर आदमी सलामत हो जाता
हर कोई उसे सलाम ठोकने द्वार पर आता
मिल जाये एक बांस
तो मिल जाती है प्रसिद्धि की सांस
जिसके हाथ में आया, वह तो हो गया राजा
अपना लिखा हुक्म ही समझ में न आये
पर बांस के जोर पर
उसके पाप तो प्रजा को ढोने हैं
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टिप्पणियाँ
वैसे भी धरती पर इंसान
कब इंसान की तरह चल पाया
चींटियों की रानी लेती है
अपनी प्रजा से सेवा
पर इंसान ढूंढता है
अपने आराम से रहने के लिये कोई राजा
जो उसे खिलाये मुफ्त में मेवा
bahut vastavik chitran sundar badhai
अच्छी रचनाऐं हैं.