कभी खिलता हूं, कभी मुरझा जाता हूं-कविता


अपने घर पर रखे गमलों में
पौधों को लगाते हुए देखकर माली को
बहुत खुश होता हूं
उनमें कुछ मुरझा जाते हैं
कुछ खिलकर फूलों के झुंड बन जाते है
फिर वह भी मुरझा जाते हैं
अपना जीवन जीते हैं
फिर साथ छोड़ जाते हैं
फिर लगवाता हूं नये पौधे
इस तरह वह मेरे जीवन को
कभी महकाते हैं
तो कभी मुरझाकर दर्द दे जाते हैं
घर के बाहर खड़ा पेड़
जिसे पशुओं से बचाने के लिये
लगा गया था एक मजदूर बबूल के कांटे चारो ओर
खड़ा है दस बरस से
कई बार वही मजदूर काटकर
उसकी बड़ी डालियां ले जाता है
मैं उससे पेड़ को जीवन बनाये
रखने का आग्रह करता हूं
तो वह मुस्कराता है
कुछ दिन पेड़ उतना ही बड़ा हो जाता है
इस तरह प्रकृति का यह खेल देखकर
कई बार मैं मंद मंद मुस्कराता हूं
कभी खिलता हूं कभी मुरझा जाता हूं
…………………………………..

दीपक भारतदीप

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