कोई लिखकर कहे या
अपनी जुबां से बोले
कोई ऐसे शब्द कान में अमृत घोले
मन में छा जाये प्रसन्नता की सरिता
इसी चाहत में उम्र गुजार दी
पर प्यासे रहे हमेशा
कोई नहीं बोल पाया
नहीं लिख पाया कुछ मीठे शब्द
हमने बोले कुछ प्यार के
तो लिखे भी बहुत
पर जमाना ही है लाचार और बेबस
जूझता है अपने दर्द और गमों से
कोई नहीं समझता
प्यार के शब्दों की असलियत
सभी ढूंढते हैं खुशी उधार की
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मैं कहां तलाश करूं प्यार से
सराबोर शब्दों की
सभी दरवाजे बंद हैं
अपने दिल के दर्द से टूटे लोग
ढूंढ रहे हैं खुशियां
रौशनी के पीछे अंधेरे में
अपने शब्दों से जला सकें
किसी के दिल में उम्मीद का चिराग
कोई ख्याल में भी नहीं लाता
सभी की सोच
अपने मतलब के घर में बंद है
………………………..
टिप्पणियाँ
पर प्यासे रहे हमेशा
कोई नहीं बोल पाया
नहीं लिख पाया कुछ मीठे शब्द””’
achchee prastuti..
अपने दिल के दर्द से टूटे लोग
ढूंढ रहे हैं खुशियां
रौशनी के पीछे अंधेरे में
अपने शब्दों से जला सकें
किसी के दिल में उम्मीद का चिराग
कोई ख्याल में भी नहीं लाता
सभी की सोच
अपने मतलब के घर में बंद है
bahut hi gehri baat magar sahi bhi,bahut khub badhai.
“अपने दिल के दर्द से टूटे लोग
ढूंढ रहे हैं खुशियां”
एक-एक पंक्तियाँ सच मे डूबी हुई.
बधाई.
wah..!!
kya baat hai..
dil k jazbaato ko udhel diya gaya hai shabdon me..
zindagi me hassne k lamhe sabhi ko bahut hi kam milte hain,
hum bhaagte hain khushiyon k peechhe aur waha bhi gam milte hain..
to gam ko hi kyu na dost bana liya jaye?
jo sath to nahi chhodti?
kyu hai na?
WAH KYA BAAT HAI.. BADHAAYI..