कल सुबह बिजली न होने के कारण मैं घर से अपने किसी भी ब्लाग पर कोई भी पाठ प्रकाशित किये बिना ही चला गया। वैसे भी परसों रात मेरे सारे पाठ हिंदी के सभी ब्लाग एक जगह दिखाने वाले फोरमों पर फ्लाप हो गये थे तो मैं और आधा घंटा बिजली का इंतजार कर कोई पाठ प्रकाशित करने की मनस्थिति में नहीं था। मेरी पत्नी से मुझसे कहा-‘‘गेहूं का आटा पिसवाना है। शाम के आप पिसवा कर आयेंगे या मैं ही पिसवा का आऊं?‘‘
यह काम कई वर्षों से मैं करता रहा था पर अब आटे की चक्की घर से थोड़ी दूरी पर ही खुल गयी है और हमारी पत्नी झोले में गेहूं डालकर पिसवा लाती है। कभी-कभार मैं साइकिल पर रखकर पिसवा लाता हूं। जब से ब्लाग लिखना शुरू किया है मेरी पत्नी इस तरह घर के प्रति लापरवाह होने की बात कहती हैं। हकीकत यह है कि हम अपने टीवी और फालतू काम से घूमने का समय ही इसमे ंलगाते हैं। वह चाहतीं थीं कि मैं कहूं कि ‘तुम ही पिसवा आओ‘ पर नहीं कहा क्योंकि फिर ब्लाग लिखने का ताना मिलना था। इसलिये कह दिया-‘‘शाम को आते ही गेहूं पिसवा लाऊंगा।’
शाम को घर आने के बाद थोड़ा विश्राम कर चाय पी और साइकिल पर गेहूं से भरा झोला रखकर जैसे ही बाहर निकलने को हुआ बिजली चली गयी। मैंने सड़क पर देखा तो चारों तरफ अंधेरा दिख रहा था। यदि उस समय मैं आटा पिसवाने जाता तो वहां से वैसे ही लौटना था जैसे मेरे अधिकतर ब्लाग आजकल बिना सफलता के विभिन्न फोरमों से लौट रहे हैं।
थोड़ी देर बार लाईट आई तो फिर हम गेहूं पिसवाने के लिए निकला तो हमारी पत्नी बोली-‘वहां गेहूं पिसवाते हुए जरा घ्यान रखने किसी से अपने ब्लाग की चर्चा में ध्यान मत लगा देना। हो सकता है चक्की वाला गेहूं बदल दे या बदले हुए गेहूं का आटा दे। वहां से बिल्कुल मत हटना। हमारा गेहूं अच्छा होता है और गेहूं पीसने वाले उसे बदल देते हैं।’
हमने मान लिया । आटा वापस लेकर लौटै तो मेरी श्रीमती ने पूछा-‘‘अपने सामने ही पिसवाया न?’
हमने कहा-‘हां।’
आज सुबह जब अपने काम पर जा रहे थे तो वह भोजन का डिब्बा हमारे हाथ में देते हुए बोलीं-‘आपने शायद कल आटा पिसवाते समय ध्यान नहीं दिया ऐसा लगता है कि उसमें मिट्टी भरी हुई है।’
मैने कहा-‘कल कितनी आंधी आई थी और उसकी वजह से पानी के पंपों में पानी घुस गया। देखा नहीं आज कैसे गंदा पानी आ रहा है। उसकी चक्की में भी मिट्टी घुस गयी होगी।’
मेरा उत्तर उसको शायद जंच गया क्योंकि कल आंधी ने जो हालत इस शहर की उसके बाद मेरी दिमाग में भी यही बात घर कर गयी थी। फिर मैंने कहा-‘‘आजकल पूरी तरह ईमानदारी से व्यवहार की आशा तो किसी व्यक्ति से नहीं करो। जब इस विश्व में मनुष्य की जीवन लीला प्रारंभ हुई तो सबसे पहली चोट ईमानादारी पर ही हुई होगी और शतप्रतिशत ईमानदारी की अपेक्षा करने की बात तो उसी समय ही समाप्त हो गई होगी। फिर अभी तक तो अधिकतम ईमानदारी की बात ही सोची जा सकती है पर अब तो न्यूनतम के स्तर पर ही देखना होगा। सब्जी, दूध, कपड़ा या अन्य सामान खरीदते समय तुम यह देखा करो कि लोग न्यूनतम ईमानदारी के साथ व्यवहार कर रहे हैं या नहीं।
मेरी पत्नी हंसने लगी और कहा-‘बोली अपनी यह बात शाम को आकर अपने ब्लाग पर लिखना। जब से ब्लाग लिखना शुरू किया है दूसरे उसको पढ़ते हो या नहीं तुम जरूरी ज्ञानी होते जा रहे हो। ’
मैंनं कहा-‘‘ तुमने उस दिन टीवी पर नहीं देखा था कि अपने आसपास किस तरह सिंथेटिक का दूध बन रहा है। तुम अब शुद्ध दूध की बात तो छोड़ो और पानी मिले दूध से ही संतुष्ट होना सीख लो। यह देखा करो कि दूध में कितना कम पानी मिला है और कहीं ऐसा तो नहीं कि वह दूध न हो बल्कि कहीं नकलीे बनाया गया हो। शून्य प्रतिशत ईमानदारी स्वीकार्य नहीं करना। दूध असली हो भले ही उसमें पानी नब्बे प्रतिशत हो उससे कोई हानि नहीं होगी पर नकली दूध तो बीमार कर देता है।’
मैं काम पर चला गया और रास्ते में सोचता रहा कि ईमानदारी का न्यूनतम स्तर शब्द बोलते समय से मेरे दिमाग में क्या रहा होगा? कई बार दिमाग कंप्यूटर की तरह अपनी बात तेजी से कह देता है और मैं उसे देर से पकड़ पाता है। थोड़ी देर बाद याद आया कि कोई दस तो कोई पंद्रह या उससे अधिक बीस प्रतिशत ईमानदारी से व्यवहार है। उसमें हमें बीस प्रतिशत वाले से व्यवहार करना चाहिए क्योंकि उसकी न्यूनतम ईमानदारी का यही न्यूनतम पैमाना होता है तो स्वीकार करना ही होगा। यह कुछ लोग कह सकते हैं कि तुलना में इसे ईमानदारी का अधिकतम व्यवहार क्यों नहीं कहते। साहब, मैं ऐसे अवसरों पर ईमानदारी का ही न्यूनतम स्तर देखता हूं तब उसे ईमानदारी का अधिकतम स्तर कैसे मान सकता हूं?
प्रसंगवश कल भी फोरमों पर मेरे तीन पाठ फ्लाप । कल रात को जब मैंने देखा कि वह फ्लाप हो रहीं हैं तो अनुमान किया कि उस समय कोई क्रिकेट मैच हो रहा होगा। आज अखबार में देखा तो श्रीलंका के सनत जयसूर्या ने कल जोरदार बैटिंग की थी शायद इसी वजह से लोग उधर ध्यान दे रहे होंगे। वैसे जब इस तरह पाठ पिटते हैं तो मेरे अंदर एक नया जज्बा पैदा होता है सोचता हूं चाहे जो लिखो कौन इसको तत्काल पढ़कर बताने वाला है।
आजकल कभी अंग्रेजी ब्लाग देखता हूं और उन पर रुचिकर सामग्री की तलाश करना अच्छा लगता है। इधर एक चर्चा और है कि कोई ऐसा टूल आया है जिससे हिंदी से उर्दू तो अच्छी हो जाती है पर उर्दू से हिंदी में नहीं हो पाता। उन हिंदी भाषी पाठकों के लिए यह दूसरा झटका है जो हिंदी में लिखे को अच्छा नहीं समझते। इससे पहले अंग्रेजी के टूल में भी ऐसा ही हुआ था। दोनों मामलों में हिंदी के लेखक फायदे में है क्योंकि दोनों में उनका लिखा 90 प्रतिशत सही हो जाता है। हालांकि इसका लाभ तभी वह उठा सकते हैं जब वह दिल खोलकर अपनी बात लिखें और अपने अंदर अंग्रेजी या उर्दू न आने की कुठा से परे रहें।
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टिप्पणियाँ
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